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खुद को शरणार्थी नहीं, बल्कि पुरुषार्थी समझना शुरु करे सिंधी समाज

अमरावती मंडल के संपादक अनिल अग्रवाल का कथन

* दस्तुर नगर समाज मंदिर में गणतंत्र दिवस पर किया ध्वजारोहण
* सिंधी व राजस्थानी समाज को देश के विकास के दो प्रमुख घटक बताया
अमरावती/ दि.26 – विभाजन पश्चात पाकिस्तान से विस्थापित होकर भारत में आने वाले सिंधी समाज बंधुओं ने विगत 75 वर्षों के दौरान बेहद विपरित हालात से जुझते हुए न केवल भारतीय समाज व्यवस्था में अपना मजबूत स्थान बनाया बल्कि अपने व्यापार व्यवसाय के कौशल्य के जरिये देश की अर्थव्यवस्था को भी मजबूती देने का काम किया. आज राजस्थानी समाज की तरह ही सिंधी समाज का भी व्यापार व्यवसाय के साथ-साथ शैक्षणिक, सामाजिक व धार्मिक क्षेत्र में अच्छा-खासा दखल है और देश का शायद ही कोई ऐसा शहर या जिला होगा, जिसमें राजस्थानी व सिंधी समाज की मौजूदगी नहीं होगी. अत: आजादी के अमृत महोतसव वर्ष के अवसर पर सिंधी समाज ने पुरानी बातों को भुल जाना चाहिए. साथ ही खुद को शरणार्थी कहना भी बंद कर देना चाहिए. क्योंकि इन सात दशकों के दौरान सिंधी समाज ने अपने आप को सही मायनों में पुरुषार्थी साबित किया है, इस आशय का प्रतिपादन दैनिक अमरावती मंडल व मातृभूमि के संपादक तथा राजस्थानी हितकारक मंडल के अध्यक्ष अनिल अग्रवाल ने किया.
भारतीय गणतंत्र दिवस की 73 वीं वर्षगाठ के अवसर पर पूज्य पंचायत दस्तुर नगर व्दारा आज स्थानीय दस्तुर नगर परिसर स्थित समाज मंदिर में ध्वजारोहण व ध्वजावंदन कार्यक्रम का आयोजन किया गया था. इस समय साई जशनलालजी की अध्यक्षता में आयोजित समारोह में अनिल अग्रवाल के हाथों राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा झंडा फहराया गया और राष्ट्रध्वज को सलामी दी गई. इस अवसर पर संपादक अनिल अग्रवाल अपने विचार व्यक्त कर रहे थे. इस समय मुख्य अतिथि के रुप में पूज्य पंचायत दस्तुर नगर के सचिव संतोष नथानी, पूर्व पार्षद ऋषि खत्री सहित हरिराम कापडिया, हरगुणदास घुंडियाल, दयानंद खत्री, चमनलाल खत्री, कृष्णलाल तरडेजा व जगदीश घुंडियाल उपस्थित थे.
इस समय अपने विचार व्यक्त करते हुए संपादक अनिल अग्रवाल ने कहा कि, आज सिंधी समाज अपने आप में पूरी तरह से समर्थ व सक्षम हो चुका है. यद्यपि सिंधी समाज ने उद्योग व व्यापार जगत में अच्छी-खासी सफलता प्राप्त की है, लेकिन अब सिंधी समाज के युवाओं ने उच्च शिक्षा और स्पर्धा परीक्षा के क्षेत्र में भी हाथ आजमाना चाहिए ताकि सिंधी समाज से भी कई युवा आईएएस व आईपीएस जैसी परीक्षाओं में उत्तीर्ण होकर देश की प्रशासनिक व्यवस्था में आये. इस समय राजस्थानी हितकारक मंडल का अध्यक्ष होने के नाते खुद को पूरी तरह से सिंधी समाज के साथ बताते हुए संपादक अनिल अग्रवाल ने कहा कि, राजस्थानी और सिंधी समाज के योगदान के बिना अमरावती शहर का इतिहास और विकास अधुरा है. अत: दोनों ही समाजों ने अब एकसाथ आकर काम करना चाहिए ताकि शहर को विकास की बुलंदियों पर पहुंचाने के साथ ही आने वाले वक्त के लिए स्वर्णिम इतिहास लिखा जा सके. इस समय उन्होंने यह भी कहा कि, सिंधी समाज की जो भी समस्याएं है, उन्हें लेकर एक ड्राफ्ट तैयार किया जाए, जिसे राज्य के उपमुख्यमंत्री व जिला पालकमंत्री देवेंद्र फडणवीस तक पहुंचाने के लिए वे स्वयं हर संभव सहयोग प्रदान करेंगे.
ध्वजारोहण समारोह के साथ ही इस आयोजन में सिंधी समाज के बुजुर्गों का भी सत्कार किया गया. जिसके तहत डॉ. सी. के. दारा, अर्जुनदास दादलानी, मदनलाल हरवानी, रोशनलाल घुंडियाल, दयानंद पोपली, मुरलीधर तरडेजा, चेतनदास दादलानी, आतमदेव कापडी, कन्हैयालाल भागवानी, दयाराम कुकरेजा, हरगुणदास घुंडियाल व बिहारिलाल गगलानी का उपस्थित गणमान्यों व्दारा भावपूर्ण सत्कार किया गया.
इस कार्यक्रम में मंच संचालन सुरेश दिवान व आभार प्रदर्शन विनोद गुरु ने किया. कार्यक्रम में पूज्य पंचायत दस्तुर नगर के कार्यालय मंत्री रवि कावना व दीपक दादलानी सहित राजेश तरडेजा, ओमप्रकाश तरडेजा, सनी दादलानी, राजकुमार बुलानी, विजय घुंडियाल, अनुराग तरडेजा, उर्मिला दादलानी, आशा दादलानी, पवन दादलानी, राजू बुलानी, बाबूसेठ मतानी, महेश गगलानी, संजय गगलानी, किशोर भागवानी, संजय भागवानी, किशोर भागवानी, अजय हरवानी, राजेश पेशुराम तरडेजा, पुष्पा दादलानी, लाजी नथानी, सुनीता बुलानी, लक्ष्मी दादलानी, मीना बुलानी, कमल लालवानी, संतोष लालवानी, सुनील मतानी, प्रताप नथानी, सुदर्शनलाल मतानी, मीना नथानी, अजय तरडेजा, संगीता भारत तरडेजा, भारत कापडी, कमला मेहता, महाराज झामनदास, राजेश मुरलीधर तरडेजा, महेश दादलानी, गौरव मतानी, गौरव अरोरा अंकित मतानी, अजय गेही आदि सहित दस्तुरनगर परिसर के अनेकों गणमान्य उपस्थित थे.

तीन पीढियों ने खुद को संघर्ष में खपा दिया
* साई जशनलालजी ने याद किया पुराने दिनों को
इस समारोह की अध्यक्षता करते हुए अमर शहीद संत कंवरराम साहिब के पौत्र साई जशनलालजी ने विभाजन की विभिषिका को याद करते हुए कहा कि, सन 1947 में आजादी के साथ ही देश का बटवारा हुआ था. जिसके आठ वर्ष बाद सन 1955 में संत श्री का परिवार पाकिस्तान से निकलकर भारत आया और सीधे अमरावती के दस्तुर नगर परिसर ही पहुंचा. कुछ समय यहां रहने के उपरांत उनका परिवार वर्ष 1961 के आसपास गोविंद नगर में रहने गया. जहां से वर्ष 1985 में बाबा हरदासराम सोसायटी में स्थलांतरित हुआ. जहां पर पूज्य देवरी साहब की विधिवत स्थापना हुई. अपनी सामाजिक पहचान और संस्कृति को बचाए रखने के साथ-साथ सिंधी समाज की तीन पीढियों ने लगातार विपरित स्थितियों से संघर्ष किया. जिसकी बदौलत आज समाज की चौथी व पांचवीं पढी के हिस्से में कुछ अच्छे दिन आये है. अत: बेहद जरुरी है कि, सिंधी समाज के युवाओं ने हमेशा ही अपने बडे बुजुर्गों व्दारा किये गए त्याग व संघर्ष को याद रखना चाहिए. साथ ही साथ अगली पीढियों को बेहतर भविष्य देने के लिए भी काम करना चाहिए. पूज्य साई जशनलालजी ने इस समय आजादी के सात दशक बाद भी सिंधी समाज के सामने मौजूद समस्याओं व दिक्कतों को भी सबके सामने रखते हुए इनके समाधान हेतु सामुहिक रुप से प्रयास किये जाने की जरुरत प्रतिपादित की.

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