मात्र चौथी तक शिक्षित सिंधुताई का 25 देशों में रहा सम्मान
तीसरे स्मृति दिवस पर सिंधुताई की यादों को किया गया ताजा
* तृतीय पुष्प शब्दांजलि महोत्सव हुआ सफलतापूर्वक संपन्न
चिखलदरा /दि.8– अनाथों की मां के तौर पर पहचान रखने वाली पद्मश्री सिंधुताई सपकाल के तीसरे स्मृति दिवस निमित्त तृतीय पुष्प श्रद्धांजलि महोत्सव का आयोजन सिंधुताई द्वारा स्थापित की गई सावित्रीबाई फुले आश्रमशाला के प्रांगण में किया गया. सिंधुताई पर प्रेम रहने वाले राजनीतिक, सामाजिक व शैक्षणिक क्षेत्र के गणमान्यों सहित अनेकों ने सिंधुताई की यादों को ताजा किया. इस समय विशेष तौर पर उपस्थित महाराष्ट्र के सेवानिवृत्त अतिरिक्त पुलिस महासंचालक डॉ. टी. एस. भाल ने सिंधुताई सपकाल के साथ जुडी अपनी यादों का विशेष रुप से उल्लेख किया. साथ ही इस अवसर पर सिंधुताई सपकाल को मौन श्रद्धांजलि अर्पित की गई. इस कार्यक्रम में मेलघाट के विधायक केवलराम काले, दर्यापुर के विधायक गजानन लवटे, पूर्व विधायक प्रभूदास भिलावेकर, गवली समाज संगठन के अध्यक्ष सदाशिव खडके व सिंधुताई सपकाल के सुपुत्र अरुण सपकाल प्रमुख रुप से उपस्थित थे. साथ ही पद्मश्री सिंधुताई सपकाल द्वारा स्थापित किये गये सावित्रीबाई फुले छात्रावास में रहने वाली छात्राएं तथा परिसरवासियों की अच्छी खासी उपस्थिति रही.
इस अवसर पर सेवानिवृत्त अतिरिक्त पुलिस महासंचालक डॉ. टी. एस. भाल ने सिंधुताई सपकाल से जुडी अपनी यादों को ताजा करते हुए बताया कि, उन्हें सिंधुताई सपकाल का सानिध्य सन 1978 से प्राप्त रहा. जब वे विज्ञान शाखा में पदव्युत्तर की पदवी प्राप्त करने के उपरान्त वर्धा में नौकरी कर रहे थे. तब उनका परिचय भजन गाने वाली सिंधुताई से हुआ था. आगे चलकर जब वे पुलिस विभाग की सेवा में शामिल हुए, तो जलगांव में पहली बार सिंधुताई सपकाल के सामाजिक कार्य सबके सामने आये. इसके उपरान्त जब वे वर्ष 1991 में अमरावती के पुलिस अधीक्षक नियुक्त हुए, तो उस समय सिंधुताई सपकाल का मेलघाट के चूरणी परिसर में गवली समाजबंधुओं के अधिकारों हेतु व्याघ्र प्रकल्प के साथ संघर्ष शुरु था और इसके बाद ही उनके महान सामाजिक कार्य उंचे शिखर पर जाकर पहुंचे. समाज को एक बडी राहत देने वाली सिंधुताई सपकाल के अंतिम क्षण तक मुझे उनका सानिध्य मिला. यह मेरे लिये काफी सौभाग्य वाली बात रही.
इस अवसर पर सिंधुताई सपकाल के सुपुत्र अरुण सपकाल ने बताया कि, सिंधुताई सपकाल केवल कक्षा चौथी तक ही पढी थी. लेकिन उन्हें 25 देशों में जाने का अवसर मिला तथा सभी देशों में उनका गौरवपूर्ण सत्कार किया गया. खास बात यह रही कि, हर देश मेें भाषण हेतु खडे होने पर उपस्थितों को पहले यही महसूस होता था कि, यह साधी व सामान्य महिला क्या बोलेगी. परंतु सिंधुताई की जिव्हा पर सरस्वती का वास था और जब वे बोलना शुरु करती थी, तो कठोर से कठोर हृदय वाले व्यक्ति का दिल भी पसीज जाता था.
* चिखलदरा में खोला था पहला आश्रम
सिंधुताई सपकाल ने वर्ष 1992 में निराधार बच्चियों हेतु चिखलदरा में क्रांति ज्योति सावित्रीबाई फुले के नाम पर पहला आश्रम शुरु किया था. जहां पर आज 60 से 70 निराधार बच्चियां रहती है और उनके भविष्य को नई दिशा देने का काम हो रहा है. उक्ताशय की जानकारी देते हुए अरुण सपकाल ने बताया कि, चिखलदरा के अनाथ आश्रम की जबाबदारी सिंधुताई सपकाल ने बेटे के तौर पर उन्हें सौपी थी. चूंकि वे खुद भी इसी अनाथ आश्रम में रहने वाले अनाथ बच्चों के साथ रहते हुए बडे हुए है. ऐसे में वे इस अनाथ आश्रम के बच्चों को सिंधुताई की तरह ही प्रेम व स्नेह देने का प्रयास कर रहे है. साथ ही यहां रहने वाले बच्चे अपने पैरों पर खडे होकर आत्मनिर्भर बने. इस हेतु तमाम आवश्यक प्रयास कर रहे है. इस कार्य हेतु समाज के विभिन्न घटकों से अपेक्षित सहायता प्राप्त होती है. जो आगे भी मिलती रहेगी. ऐसी पूरी उम्मीद है.