
अमरावती/दि.10– कृत्रिम रासायनिक रंग का इस्तेमाल करने की बजाय रंगपंचमी के दिन नैसर्गिक रंग का इस्तेमाल किया, तो किसी की खुशी कम नहीं होगी. इस बाबत अनेक बार जनजागरण करने के बावजूद नैसर्गिक रंग का ज्यादा कोई इस्तेमाल करता दिखाई नहीं देता.
* इससे बनाया जाता है नैसर्गिक रंग
– बीट, पलसफुल : बीट कंद के छिलटे अथवा लूदा पानी में डालकर मिश्रीत किया, तो जामूना रंग तैयार होता है.
– हल्दी और आटे का मिश्रण : एक भाग हल्दी और दो भाग कोई भी आटा लेकर उसका मिश्रण किया, तो पीला रंग तैयार होता है.
– आवले का फल : आवला फल का किस तवे पर डालकर उसमें पानी डालकर उबाला, तो काला रंग तैयार होता है. साथ ही झंडू अथवा गहरे पीले रंग के फुल से रंग तैयार होता है.
* रासायनिक रंग से त्वचा और आंखों को खतरा
रंगपंचमी के दिन सभी लोग रंग खेलते है. खेलते समय रासायनिक रंग का इस्तेमाल अधिक मात्रा में किया जाता है. सबसे पहले चेहरे पर यह रंग लगाया जाता है. जिस कारण चेहरे की नाजूक त्वचा और आंखों को इस रंग से सर्वाधिक खतरा हो सकता है. इस कारण नैसर्गिक रंग ही खेलना आवश्यक है.
* होली के लिए बाजार सजे
होली के पर्व को केवल तीन दिन शेष है. इस कारण बाजार धीरे-धीरे सजने लगे है. विविध तरह के रंग, पिचकारी और शक्कर की गांठे विक्री के लिए आ गई है.
* नैसर्गिक रंग सुरक्षित
नैसर्गिक रंग सुरक्षित रंग माना जाता है. इस रंग का असर त्वचा पर अथवा स्वास्थ्य पर नहीं होता. रासायनिक रंग महंगा रहता है और नैसर्गिक रंग खेलने से पैसों की भी बचत होती है. इस कारण नैसर्गिक रंग ही खेलना आवश्यक है.
* हर्बल रंग का इस्तेमाल करें
होली खेलते समय नैसर्गिक व हर्बल रंग का इस्तेमाल करें. कृत्रिम रंग, पेंट, डामर, मिट्टी का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. नाजूक त्वचा और आंखों का इस रंग से सर्वाधिक खतरा हो सकता है. नैसर्गिक रंग बाजार में मिलता है अथवा घर पर ही तैयार करने की सलाह त्वचा रोग तज्ञ देते है.