चांदूर बाजार/प्रतिनिधि दि.4 – आज की युवा पीढ़ी जिस तरीके से स्मार्ट फोन के इस्तेमाल में डूबी दिखाई देती है, उसे देखते हुए लगता है कि उन्हें स्मार्ट फोन का व्यसन लग गया है. वैद्यकीय क्षेत्र में व्यसन को नोमोफोबिया नाम से जाना जाता है.
मोबाइल पास में नहीं रहने पर बेचैनी होने लगती है. मोबाईल के बगैर जीने में डर लगता है. यानि नोमोफोबिया मोबाइल यह आज की पीढ़ी के लिए एक व्यसन ही बन गया है. मोेबाइल हाथ में आते ही कुछ लोग अपने में ही मग्न हो जाते हैं. ऐसे समय उन्हें अपने आस पास क्या हो रहा है या वे किस जगह पर है, इसका भान नहीं रहता. आभासी जीवन में जीने के कारण हम वास्तविक जीवन से दूर हो रहे हैं, इसका अहसास उन्हें नहीं होता.
लगातार कान में मोबाइल व हेडफोन लगाकर चलने वाले व्यक्ति आजू बाजू कौन है, इसका भान नहीं रख पाते. मोबाइल का अति इस्तेमाल करने से स्वास्थ्य पर असर होने की बात भी सामने आने लगी है. मोबाइल से निकलने वाले रेडिएशन के कारण उसका मेंदू पर परिणाम होकर स्मरणशक्ति कम होने, ध्यान केंद्रित न होने, सिर दर्द, बहरापन सरीखी बीमारी पैदा हो रही है. बावजूद इसके मोबाइल पर एक सरीखे समय बिताने के कारण गर्दन, पीठ की बीमारी घर करने लगती है. एक सरीखे इस्तेमाल करने का असर दृष्टि पर भी हो रहा है. मोेबाइल व तकनीकी का प्रसार तेजी से हुआ है. फिर भी इस बाबत की साक्षरता नहीं आयी है.
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ये है लक्षण
रात को सोते समय मोबाइल साथ में लेकर सोना, मोबाइल साथ में न होने पर नींद न लगना, टॉयलेट में मोबाइल साथ लेकर जाना, दो मोबाइल हमेशा इस्तेमाल करना, बॅटरी लो होने पर मूड ऑफ होना, बार-बार मोबाइल चालू स्थिति में है या नहीं, यह देखना, मोबाइल स्वीच ऑफ करना पड़े तो अस्वस्थ लगना, मोबाइल में एक से अधिक पासवर्ड सेट करना, डाटा डिलीट होने के भय से हमेशा तनाव में रहना.
मेरे बेटे बाबत अनुभव आया था.अचानक वह रात को उठता था और दिनभर मोबाइल में देखा हुआ बड़बड़ाता था. उसे किसी प्रकार की भूतबाधा होने का संशय हमें होने लगा था. उस दृष्टि से उपचार किया. पश्चात सत्य स्थिति सामने आयी. उसे दो महीने के लिये गांव भेजने के बाद व मोबाइल से दूर रखने के बाद अब कही वह सामान्य हो पाया है.
– एक पालक, चांदूर बाजार
महाराष्ट्र राज्य शिक्षा महामंडल व्दारा विद्यार्थियों व्दारा हो सकेगा उतना ही अभ्यास मोेबाइल पर भी डाला जाता रहा है. अब विद्यार्थी मोबाइल का इस्तेमाल अधिक मात्रा में करने लगे हैं. लेकिन इसके लिये पालकों को ही समुपदेशन होना चाहिए. उन्होंने कितने समय तक अपने बच्चों को मोबाइल का इस्तेमाल करने देना चाहिए यह निश्चित व पक्का नियोजन करना चाहिए अन्यथा उनका भविष्य अंधेरे में होगा.
– एक पालक, चांदूर बाजार