कभी शहर से बाहर थे स्मशान, अब स्मशान के आसपास बस गया शहर
अमरावती/दि.25 – किसी जमाने में मृत व्यक्तियों के शवों पर अंतिम संस्कार करने हेतु स्मशानभूमि को शहर से बाहर बनाया जाता था. लेकिन धीरे-धीरे शहर की रिहायशी बस्तियों का विस्तार होने लगा और अब स्मशानभूमि के चारों ओर रिहायशी बस्तियां बस गई है. जिसके चलते अब स्मशानभूमि शहर के भीतर आ गई है. ऐसे में स्मशानभूमि के आसपास रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य को लेकर चिंता एवं सवालियां निशान बनने लगे है. क्योंकि स्मशान भूमि में होने वाले अंतिम संस्कारों की वजह से उठने वाले धुएं व राख के कण हवा में उडकर आसपास स्थित रिहायशी बस्तियों के घरों में चले जाते है.
उल्लेखनीय है कि, 20 वर्ष पहले अमरावती शहर का विस्तार 10 किमी के दायरे में हुआ करता था. जो अब बढकर 25 किमी के दायरे में हो चुका है. ऐसे में उस समय शहर से बाहर रहने वाली स्मशानभूमियां अब शहरी क्षेत्र में ही शामिल हो गई है. साथ ही स्मशानभूमिओं से लगकर ही रिहायशी बस्तियां बस गई है. जहां पर अंतिम संस्कार हेतु किए जाने वाले क्रियाकर्म का असर इन रिहायशी बस्तियों पर भी देखा जाता है.
* शहर मेें है 7 स्मशानभूमियां
अमरावती शहर के विभिन्न हिस्सों में 7 स्मशानभूमिायां है और प्रत्येक समाज की स्मशानभूमि अलग-अलग है. जिसमें भुतेश्वर चौक के पास स्थित हिंदू स्मशानभूमि के साथ ही फ्रेजरपुरा, वडाली, नवसारी, विलास नगर व लालखडी परिसर में स्मशानभूमि है. इन सभी स्मशानभूमियों के आसपास अब रिहायशी बस्तियां बस गई है. साथ ही साथ स्मशानभूमि के अगल-बगल में ही किराना व साग-सब्जी की दुकानें भी लगने लगी है.
* 30 वर्ष पहले शहर से बाहर थे मरघट
30 वर्ष पहले अमरावती शहर का बहुत अधिक विस्तार नहीं हुआ था और उस समय अंबादेवी मंदिर से लगकर रहने वाले अंबानाले के किनारे पर स्थित स्मशानभूमि रिहायशी बस्तियों से काफी दूर थी. जिसके चलते लोगों को अंतिम संस्कार के क्रियाकर्म से कोई विशेष तकलीफ नहीं हुआ करती थी. परंतु अब स्मशानभूमि से सटकर ही रिहायशी बस्तियां बस गई हैे. ऐसे में उन बस्तियों मेें स्मशानभूमि से निकलने वाले धुएं व राख की तकलीफ होने लगी है.
* स्वास्थ्य पर क्या परिणाम होता है?
अंतिम संस्कार करते समय शव का दहन किया जाता है. जिसकी वजह से काफी बडे पैमाने पर धुआ निकलता है और इस धुएं के जरिए वातावरण में कार्बन डायऑक्साइड घुल जाता है. जिससे उस परिसर का वातावरण प्रदूषित होता है और इसके परिणाम स्वरुप उस परिसर में रहने वाले लोगों में श्वसन संबंधित बीमारियां होने की संभावना काफी अधिक रहती है.
– डॉ. सतीश हुमने,
फिजिशियन, जिला सामान्य अस्पताल
* कोविड काल के दौरान गैस मशीन के जरिए अंतिम संस्कार करते समय परिसरवासियों ने आक्षेप लिया था. लेकिन इसके अलावा अन्य कोई पर्याय नहीं रहने की बात हमने नागरिकों को समझायी थी. यहां पर काफी पहले से स्मशानभूमि स्थित है. जहां विगत अनेक दशकों से अंतिम संस्कार होते आ रहे है.
– एकनाथ इंगले,
व्यवस्थापक, हिंदू स्मशानभूमि