अमरावती

जलती चिताओं से उठने वाला धुआ साबित हो रहा जानलेवा

जिले में रिहायशी व व्यवसायिक क्षेत्रों के बीच आ गई है कई स्मशान भूमियां

अमरावती /दि.6– किसी समय स्मशान भूमि को शहर से बाहर बनाया जाता था, जो लगातार बढती जनसंख्या एवं शहरों के होते विस्तार की वजह से अब शहर के रिहायशी व व्यवसायिक क्षेत्र से बीचोबीच आ गई है. ऐसे में स्मशान भूमि में जलने वाली चिताओं के जरिए निकलने वाला धुआं आसपास के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए स्वास्थ्य हेतु हानिकारक व जानलेवा साबित हो रहा है. चिताओं से निकलने वाले धुएं की वजह से बडे पैमाने पर प्रदूषण होता है. जिसकी वजह से छोटे बच्चों व बुजुर्गों को काफी तकलीफों का सामना करना पडता है.

उल्लेखनीय है कि, अमरावती शहर की 2 प्रमुख स्मशान भूमियां पहले शहर से बाहर हुआ करती थी और स्मशान भूमियों के आसपास कोई रिहायशी बस्तियां नहीं हुआ करती थी. परंतु शहर का विस्तार होने के साथ ही स्मशान भूमि के आसपास रिहायशी इलाकों के साथ-साथ बडे पैमाने पर व्यवसायिक संकुल भी साकार हो गए. साथ ही शहर में 2 से 3 नई स्मशान भूमि भी तैयार हो गई. शहर की प्रत्येक स्मशान भूमि में रोजाना कम से कम 4 से 5 पार्थिवों का अंतिम संस्कार कराया जाता है. वहीं मुख्य स्मशान भूमि में गैस शवदाहिनी रहने के बावजूद भी अंतिम संस्कार हेतु बडे पैमाने पर लकडियों का भी प्रयोग किया जाता है और लकडियों का प्रयोग करते हुए जलाई जाने वाली चिता से बडे पैमाने पर धुआं निकलता है, जिससे काफी प्रदूषण होता है.

* चिताओं से निकलने वाला धुआं खतरनाक
अंतिम संस्कार हेतु जलाई जाने वाली चिता से निकलने वाला धुआ स्वास्थ्य के लिए काफी खतरनाक होता है. इस धुएं की वजह से वायू प्रदूषण में वृद्धि होती है और श्वसन में तकलीफ होने की संभावना काफी अधिक रहती है. इसके अलावा अंतिम संस्कार के समय तीव्र दुर्गंध भी फैल सकती है. जिसका नागरिकों के स्वास्थ्य पर विपरित परिणाम होता है.

* अमरावती शहर में है 5 स्मशान भूमियां
अमरावती शहर में गडगडेश्वर मार्ग स्थित हिंदुस्मशान भूमि के साथ ही विलास नगर, फ्रेजरपुरा, शंकर नगर, वडाली व जेवड नगर में स्मशान भूमियां है और इन सभी स्मशान भूमियों के आसपास ही घनी रिहायशी बस्तियां व व्यवसायिक प्रतिष्ठान है. कुल मिलाकर स्थिति यह है कि, पहले जहां शहर के चारों ओर स्मशान भूमियां हुआ करती थी. वहीं अब स्मशान भूमियों के चारों ओर शहर बस गया है. ऐसे में स्मशान भूमियों में होने वाले अंतिम संस्कार के चलते चिताओं से उठने वाला धुआं स्मशान भूमियों के आसपास रहने वाले लोगों के घरों में जाता है. जिससे पूरे परिसर में अच्छा खासा वायू प्रदूषण होता है.

* पहले शहर से बाहर, अब शहर के बीच
अमरावती सहित जिले के लगभग सभी तहसीलस्तरीय शहरों में स्मशान भूमियां पहले शहर से बाहर हुआ करती थी, जो शहरी क्षेत्र का विस्तार होने के चलते अब शहर के बीचोबीच आ गई है और स्मशान भूमियों के चारों ओर शहर बस गया है. जिसके चलते स्मशान भूमियों के आसपास रहने वाले लोगों को स्मशान भूमि में जलने वाली चिताओं से उठने वाले धुएं व दुर्गंध का सामना करना पडता है.

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