अमरावती

कभी शेंदूरजनाघाट से पूरे देश में भेजा जाता था संतरा ज्यूस

आज ज्यूस फैक्टरी की जगह पर खडी है जिला बैंक की शाखा

  • पुराना शिलालेख आज भी याद दिलाता है सुनहरे अतीत की

अमरावती/दि.16 – विगत लंबे समय से जिले के मोर्शी व वरूड क्षेत्र में संतरा प्रक्रिया प्रकल्प शुरू करने की मांग की जा रही है, ताकि क्षेत्र के संतरा उत्पादकों द्वारा उपजाये जानेवाले संतरों को वैश्विक स्तर पर बाजारपेठ मिले. किंतु बेहद कम लोगोें को यह पता होगा कि, एक जमाना पहले वर्ष 1957 में वरूड तहसील के शेंदूरजनाघाट में करीब चार उत्साही युवाओं ने एक साथ आकर सहकारी तत्व पर संतरा प्रक्रिया प्रकल्प शुरू किया था और शेंदूरजनाघाट जैसे छोटे से गांव से उस वक्त देश के बडे-बडे शहरों तक संतरा ज्यूस भेजा जाता था. लेकिन अब इस ज्यूस फैक्टरी के साथ पर जिला बैंक की शाखा स्थापित है. हालांकि यहां पर मौजूद ज्यूस फैक्टरी का शिलालेख आज भी उन उत्साही युवाओं की उद्योजकता व उत्साह की गवाही देता है.
जानकारी के मुताबिक वर्ष 1957 में संतरा प्रक्रिया कारखाना शुरू करने का संकल्प लेकर शेंदूरजनाघाट में अमरावती फ्रुट ग्रोवर्स इंडस्ट्रीयल को-ऑप. सोसायटी लि. के नाम से एक कारखाना शुरू किया गया था. दादासाहब तराल इस संस्था के अध्यक्ष थे. वहीं तत्काली पूर्व विधायक महादेवराव आंडे के पास सचिव पद का जिम्मा था. साथ ही तांत्रिक अधिकारी के तौर पर गंगाधर खेरडे ने मद्रास जाकर प्रशिक्षण हासिल किया और इस कारखाने में काम करना शुरू किया. इस कारखाने का विधिवत उद्घाटन राज्य के पहले मुख्यमंत्री यशवंतराव चव्हाण के हाथों 27 नवंबर 1960 को हुआ था. जिसके बाद इस कारखाने की शुरूआत करनेवाले तीनों उत्साही युवकों ने अपने दम पर शेंदूरजनाघाट में बनाये जानेवाले संतरा ज्यूस को बंगलुरू, कोलकाता, चेन्नई, मुंबई, कानपूर, नागपुर व अमृतसर जैसे बडे शहरों तक पहुंचाया. यह कारखाना वर्ष 1958 से 1963 तक बडे शानदार ढंग से चला और सहकारी तत्व पर चलनेवाले इस कारखाने से देश के विभिन्न शहरों तक संतरा ज्यूस पहुंचाने का काम चल रहा था. किंतु वर्ष 1963 में कर्ज अदायगी करने में आ रही मुश्किलों की वजह से मजबूरन सोसायटी को अपनी जगह जिला मध्यवर्ती बैंक को बेच देनी पडी. जिसके बाद यहां पर जिला मध्यवर्ती बैंक की शाखा शुरू की गई. हालांकि आज भी यहां पर संतरा ज्यूस फैक्टरी का शिलालेख मौजूद है, जो वर्ष 1957 के दौर की गवाही देता है.

वरूड का सोपैक प्रकल्प भी हुआ राजनीति का शिकार

वरूड में भी वर्ष 1992 के दौरान सहकारी तत्व पर सोपैक प्रा.लि. कंपनी शुरू हुई. जिसका प्रकल्प रोशनखेडा फाटे पर शुरू किया गया. इस कारखाने में उत्पादन भी शुरू हुआ और सोपैक नाम से संतरा ज्यूस की बोतल बाजार में बिक्री हेतु उतारी गयी. लेकिन केवल राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के चलते यह कंपनी बंद हो गयी. क्षेत्र में सरकारी संतरा प्रक्रिया शुरू हो, इस हेतु तत्कालीन कृषि मंत्री हर्षवर्धन देशमुख ने जबर्दस्त प्रयास किये थे तथा वरूड व काटोल के लिए रहनेवाला संतरा प्रकल्प वर्ष 1995 में मोर्शी तहसील के मायवाडी औद्योगिक क्षेत्र में शुरू हुआ था. यद्यपि इस प्रकल्प को बडे गाजे-बाजे के साथ संतरा प्रक्रिया केंद्र के तौर पर प्रचारित किया गया, लेकिन यहां पर केवल संतरा फलों का वैक्सीनेशन ही किया जाता था. पश्चात भाजपा की सरकार रहते समय दुबारा इस प्रकल्प का उद्घाटन किया गया. लेकिन यह प्रकल्प केवल दो दिन ही शुरू रहा और इस सरकारी प्रक्रिया केंद्र की भी अनदेखी होने लगी. जिसकी वजह से करोडों रूपयों का खर्च व्यर्थ चला गया.

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