कहीं आफत का सौदा न बन जाए झोन निहाय सफाई ठेका
झोन के ठेका नियुक्त सफाई कर्मियों की संख्या तय नहीं
* कचरा संकलन गाडी, फॉगिंग मशीन व स्प्रे पंप की संख्या तो तय
* लेकिन साफ-सफाई के काम कैसे होंगे, इसका कोई नियोजन नहीं
* पूरे शहर की सफाई का जिम्मा केवल 3 पुराने ही ठेकेदारों पर
* तीनों ठेकेदार इससे पहले प्रभाग निहाय ठेके में भी थे शामिल
* पूराने ठेके में तीनों ठेकेदारों पर भी हो चुकी है दंडात्मक कार्रवाई
* मनपा आयुक्त आष्टीकर का फैसला अब भी सवालों के घेरे में
* आयुक्त आष्टीकर का कार्यकाल होना है 30 जून को खत्म
* अगले एक-दो दिन में नये ठेकेदारों के नाम जारी हो सकता है वर्कऑर्डर
* पुराने ठेकेदारों के अंतिम वर्ष के नुकसान का मामला तय करेगा लवाद
* कुल मिलाकर शहर की साफ-सफाई से ज्यादा ठेकेदारों की लडाई की चर्चा
अमरावती/दि.27 – विगत कुछ समय से अमरावती शहर में साफ-सफाई के ठेके को लेकर चर्चा चल रही है और यह मामला अदालती लडाई तक जा पहुंचा है. जिसका कहने को तो कल स्थानीय अदालत के एक फैसले से पटापेक्ष हो गया है. लेकिन इसी फैसले के साथ अब तक नई पेचिदगी और कानूनी लडाई की संभावना भी पैदा हुई हैै. क्योंकि अदालत में एक तरफ तो झोन निहाय ठेका पद्धति को लेकर मनपा द्बारा चलाई जा रही निविदा प्रक्रिया पर स्थगनादेश देने से इंकार किया. वहीं दूसरी ओर मनपा द्बारा लिए गए झोन निहाय ठेके के निर्णय की वजह से पुराने ठेकेदारों तो होने वाले नुकसान का आकलन करने और उन्हें क्षतिपूर्ति देने के संदर्भ में निर्णय लेने हेतु मनपा को 2 माह के भीतर लवाद गठित करने का निर्देश दिया. साथ ही सफाई ठेके पर होने वाले सालाना खर्च 24 करोड रुपयों का 50 फीसद यानि 12 करोड रुपए की राशि या बैंक गारंटी लवाद के पास जमा कराने हेतु कहा है. ताकि यदि लवाद में पुराने 11 ठेकेदारों का पक्ष सही पाया जाता है, तो उन्हें उनके ठेके के अंतिम वर्ष की क्षतिपूर्ति दी जा सके. लेकिन इन सभी कानूनी उठापठक के बीच सबसे मुख्य सवाल अनुत्तरित रह गया है कि, क्या अमरावती शहर के लिए झोन निहाय ठेका पद्धति ही सबसे पहले कारगर और अंतिम उपाय है, या फिर इसकी बजाय वार्ड अथवा प्रभाग निहाय ठेका पद्धति ज्यादा असरकारक हो सकती है. साथ ही कहीं ना कहीं झोन निहाय ठेका पद्धति को आग्रहपूर्ण तरीके से अमल में लाने के लिए शहरवासियों के हितों व सुविधाओं की अनदेखी तो नहीं हो रही. जिसका खामियाजा आगे चलकर कहीं शहरवासियों को ही तो नहीं उठाना पडेगा. ऐसे में कानूनी लडाई में भले ही ठेकेदारों अथवा मनपा प्रशासन में से किसी की भी हार-जीत हो जाए, लेकिन इस लडाई और इसके नतीजे में कहीं न कहीं अमरावती शहर और यहां के बाशिंदों का ही नुकसान होता दिखाई दे रहा है.
बता दें कि, वर्ष 2017 में साफ-सफाई के काम हेतु प्रभाग निहाय ठेका पद्धति अमल में लायी गई थी. हकीकत में उक्त ठेका पूरे 5 वर्ष के लिए दिया जाना था. लेकिन उस समय सभागृह के कुछ वरिष्ठ सदस्यों ने काम की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए पहले 3 वर्ष हेतु ठेका देने और फिर उस ठेके को एक-एक वर्ष की दो बार समायावधि दिए जाने का प्रावधान रखने का सुझाव दिया था. साथ ही इस बात की भी व्यवस्था की गई थी कि, प्रत्येक ठेकेदार के काम पर संबंधित झोन द्बारा नियंत्रण रखा जाएगा और प्रत्येक 6 माह में एक समिति द्बारा थर्ड पार्टी ऑडिट करते हुए काम समाधानकारक है अथवा नहीं. इसका निष्कर्ष निकाला जाएगा. इसमें जिस ठेकेदार का काम सबसे अधिक बार असमाधानकारक पाया जाएगा, उसके ठेके को समयावृद्धि नहीं दी जाएगी. परंतु 3 वर्ष की अवधि पूरी होने के बाद सभी 23 ठेकेदारों को अगले एक वर्ष यानि चौथे वर्ष के लिए समायावृद्धि दी गई थी. जिसका सीधा मतलब है कि, तीनों साल तक कथित ठेकेदारों का काम समाधानकारक था. वहीं पांचवें वर्ष के लिए सफाई ठेके को समयावृद्धि देने का समय आते ही मनपा प्रशासन ने ऐसा करने से मना कर दिया और प्रभाग निहाय ठेका पद्धति को रद्द करते हुए झोन निहाय ठेका पद्धति को अमल में लाने हेतु निविदा प्रक्रिया को शुरु कर दी. विशेष उल्लेखनीय है कि, ऐसा करने से पहले किसी भी पुराने सफाई ठेकेदार के ठेका करार को रद्द करने का आदेश मनपा प्रशासन द्बारा जारी नहीं किया गया था.
ध्यान देने वाली बात यह भी है कि, वर्ष 2017 में जब प्रभाग निहाय साफ-सफाई के ठेके दिए गए थे, तब ठेकेदारों के समक्ष हर प्रभाग में 55 ठेका नियुक्त सफाई कर्मचारी, 6-6 कचरा संकलन ऑटो रिक्षा व घंटी कटले, 5-5 फॉगिंग मशीन व स्प्रे पंप तथा 2-2 ग्रास कटर रहना अनिवार्य किया गया था. इसमें से अगर मनपा के स्वास्थ्य व स्वच्छता विभाग द्बारा निरीक्षण के दौरान एक भी सफाई कर्मी अथवा अन्य सामग्री कम दिखाई देती थी, तो संबंधित ठेकेदार पर प्रति सफाई कर्मचारी 1 हजार रुपए का जुर्माना लगाया जाता था. साथ ही सफाई साधन के कम पाए जाने पर भी दंडात्मक कार्रवाई का प्रावधान था. परंतु हैरत की बात यह है कि, झोन निहाय ठेका जारी करते समय ठेका करार की शर्तों में ठेकेदार द्बारा नियुक्त किए जाने वाले मनुष्य बल यानि सफाई कर्मियों की संख्या को लेकर स्पष्ट तौर पर कोई उल्लेख ही नहीं है. जबकि शहर के दो झोन ऐसे है, जिनमें 5-5 प्रभागों का समावेश होता है. वहीं तीन झोन ऐसे है, जिनमें 4-4 प्रभागों का समावेश है. ऐसे में यदि 5 वर्ष पहले प्रत्येक प्रभाग में कम से कम 55 कर्मचारियों की नियुक्ति अनिवार्य थी, तो उसी संख्या के लिहाज से अब 5 प्रभाग वाले झोन में कम से कम 275 तथा 4 प्रभाग वाले झोन में कम से कम 220 सफाई कर्मियों का रहना जरुरी है. परंतु झोन निहाय ठेके की शर्तों में इसका कोई उल्लेख ही नहीं है. जबकि वर्ष 2017 में प्रत्येक प्रभाग का ठेका न्यूनतम 9 लाख रुपए में दिया गया था. उसी आधार पर 5 प्रभाग वाले झोन का ठेका 45 लाख रुपए में और 4 प्रभाग वाले झोन का ठेका 36 लाख रुपए में दिया गया है. यानि पांचों झोन की साफ-सफाई के ठेके हेतु महानगरपालिका को प्रतिमाह कम से कम 1 करोड 60 लाख रुपए तो अदा करने ही है, लेकिन इसकी एवज में प्रतिमाह साफ-सफाई किस तरह से होगी और कैसे करवाई जाएगी. इसका कोई नियोजन सफाई ठेके की शर्तों में उल्लेखित नहीं है.
* भ्रष्टाचार को मिल सकता है बढावा
विशेष उल्लेखनीय है कि, साफ-सफाई हुई है अथवा नहीं, या कैसी हुई है, इसका कोई निश्चित पैमाना नहीं है. ऐसे में यदि ठेकेदार द्बारा दावा किया जाता है कि, साफ-सफाई हुई है और स्वास्थ्य निरीक्षक द्बारा उक्त दावे को यह कहकर खारिज कर दिया जाता है कि, उसके ‘हिसाब’ से साफ-सफाई सही ढंग से नहीं हुई है, तो ठेकेदार के पास स्वास्थ्य निरीक्षक के ‘हिसाब’ को दुरुस्त करने के अलावा अन्य कोई दूसरा रास्ता नहीं रहेगा. यानि सफाई से ज्यादा हिसाब-किताब को साफ-सूथरा रखने की ओर ध्यान दिया जाएगा. इसके चलते पूरी संभावना है कि, सफाई ठेकेदारों के बिलों को जारी करने के लिए जमकर लेन-देन होकर भ्रष्टाचार को बढावा मिलने की संभावना पैदा होगी.
* असमाधानकारक काम की परिभाषा क्या?
याद दिला दे कि, वर्ष 2017 मेें प्रभाग निहाय साफ-सफाई का ठेका जारी करते समय नियमों व शर्तों में स्पष्ट उल्लेखित था कि, यदि किसी ठेकेदार का कामकाज असमाधानकारक पाया जाता है, तो उसके ठेके को तीन वर्ष की अवधि पश्चात समयावृद्धि नहीं दी जाएगी. परंतु तीसरे वर्ष के बाद सभी ठेकेदारोें को चौथे वर्ष के लिए समयावृद्धि दी गई. यानि सभी ठेकेदारों का काम समाधानकारक था. विशेष उल्लेखनीय यह भी है कि, इसी दौरान अमरावती महानगरपालिका को स्वच्छ भारत व स्वच्छ महाराष्ट्र मिशन अंतर्गत 10 करोड रुपए की राशि का पुरस्कार भी प्राप्त हुआ. लेकिन इसके बावजूद अमरावती मनपा द्बारा सफाई ठेकेदारों के कामों को असमाधानकारक बताया जा रहा है, जो कि सीधे-सीधे तौर पर विरोधाभास ही है. सफाई ठेकेदारों का कामकाज असमाधानकारक रहने की आड लेकर ही मनपा प्रशासन ने पुराने सफाई ठेकेदारों को समयावृद्धि देने से इंकार करते हुए झोन निहाय ठेका पद्धति को अमल में लाने का फैसला किया. लेकिन हैरत की बात यह है कि, जिन तीन लोगों को नई निविदा प्रक्रिया के तहत झोन निहाय ठेके के लिए पात्र माना गया. उसमें से श्री नागरिक सेवा सहकारी संस्था व गोविंदा सफाई कामगार संस्था नामक 2 ठेकेदार एजेंसिया इससे पहले अब तक चल रहे प्रभाग निहाय ठेका पद्धति में भी बतौर एजेंसी शामिल थे. जिन्हें अबकी बार एक साथ 2-2 झोन का ठेका सौंपा जा रहा है. वहीं क्षितिज सुशिक्षित बेरोजगार संस्था को एक झोन का ठेका सौपा जाना है. हैरत और कमाल की बात यह भी है कि, इन तीनों निविदाधारकों पर इससे पहले मनपा के सफाई ठेकेदार रहते समय मनुष्यबल अथवा साधन-सामग्री की नियमानुसार पूर्तता व उपलब्धता नहीं रहने के चलते मनपा द्बारा दंडात्मक कार्रवाई करते हुए जुर्माना वसूल किया गया है और मनपा ने इसी दंडात्मक कार्रवाई और जुर्माने की राशि को आधार बनाते हुए शहर के सभी प्रभाग निहाय ठेकेदारों के काम को असमाधानकारक बताया है. वहीं असमाधानकारक काम करने वाले ठेकेदारों में शामिल 2 ठेकेदारों को 2-2 झोन तथ एक ठेकेदार को 1 झोन की सफाई का ठेका दिया गया है. यह अपने आप में एक दूसरा विरोधाभास है.
* लवाद की बात खुद मनपा ने उठाई थी
ध्यान देने वाली बात यह है कि, मनपा द्बारा पुराने सफाई ठेकेदारों को समयावृद्धि देने की बजाय जैसे ही प्रभाग निहाय ठेका पद्धति के स्थान पर झोन निहाय ठेका पद्धति के लिए निविदा प्रक्रिया शुरु की गई, तो पूराने सफाई ठेकेदारों में से विजय गंगन, श्याम श्रृंगारे, संजय हिरपुरकर, अनूप बिजवे, गणेश दुबे, अशफाक भाई, अफसर भाई, इरशाद भाई, शारीक भाई व सुनील वरठे सहित एक अन्य ऐसे 11 सफाई ठेकेदार हाईकोर्ट में पहुंचे थे. जहां पर हाईकोर्ट ने जैसे ही असमाधानकारक काम की व्याख्या को लेकर मनपा से सवाल जवाब करना शुरु किया था और ठेकेदारों द्बारा कोविड काल के दौरान किए गए शानदार काम व उसी काम क बदौलत मनपा को मिले पुरस्कार से संबंधित युक्तिवाद को ग्राह्य माना था, तो खुद मनपा प्रशासन ने यह दलिल पेश की थी कि, ठेका करार की शर्त क्रमांक 95 में स्पष्ट उल्लेखीत है कि, अगर मनपा प्रशासन व ठेकेदारों के बीच ठेका करार को लेकर किसी भी तरह का कोई विवाद पैदा होता है, तो उसका निपटारा स्थानीय स्तर पर लवाद गठित करते हुए किए जाने का प्रावधान है. चूंकि ऐसे मामलों में लवाद का फैसला आने तक सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार हाईकोर्ट भी कोई फैसला नहीं कर सकता. ऐसे में हाईकोर्ट ने ठेकेदारों की याचिका पर होने वाली सुनवाई को बंद करते हुए मनपा को लवाद गठित करने का निर्देश दिया था. जिसके बाद याचिकाकर्ता ठेकेदारों ने 24 अप्रैल को मनपा आयुक्त के पास व्यापन सौपते हुए हाईकोर्ट अथवा जिला व सत्र न्यायालय के किसी सेवानिवृत्त जज की अध्यक्षता में लवाद गठित करने हेतु निवेदन किया था. चूंकि इस समय तक मनपा ने झोन निहाय सफाई ठेके को लेकर निविदा प्रक्रिया शुरु कर दी थी और ऐसे मामलों में अदालत के स्पष्ट निर्देष है कि, मामले का फैसला होने तक इसमें किसी तीसरे पक्ष की संलिप्तता या संलग्नता न हो, जिसके चलते निविदा प्रक्रिया को रुकवाने हेतु ठेकेदारों ने स्थगनादेश प्राप्त करने के लिए स्थानीय अदालत में अपील की थी. परंतु स्थानीय अदालत ने मनपा द्बारा शुरु की गई निविदा प्रक्रिया पर स्थगनादेश देने से मना कर दिया. जिसे मनपा प्रशासन द्बारा अपनी जीत माना जा रहा है. किंतु स्थगनादेश देने से मना करते समय स्थानीय अदालत ने मनपा को साफ तौर पर निर्देशित किया है कि, आगामी 2 माह के भीतर लवाद का गठन किया जाए और साफ-सफाई ठेके पर होने वाली सालाना खर्च की राशि का 50 फीसद हिस्सा नगद राशि या बैंक गारंटी के तौर पर कोर्ट के पास जमा कराया जाए. चूंकि शहर में साफ-सफाई के ठेके पर मनपा द्बारा सालाना करीब 24 करोड खर्च किए जाते है. ऐसे में अब मनपा को 12 करोड रुपए की रकम या इतनी ही रकम की बैंक गारंटी अदालत अथवा लवाद के पास जमा करवानी होगी.
* लवाद का फैसला ठेकेदारों के पक्ष में जाने पर होगा ‘डबल नुकसान’
ध्यान देने वाली बात है कि, मनपा प्रशासन ने ठेकेदारों द्बारा किए जाने वाले काम को असमाधानकारक बताते हुए उन्हें अंतिम वर्ष में ठेके की समयावधि बढाकर देने से इंकार किया है. ऐसे मेें अब आगामी 2 माह के भीतर गठित किए जाने वाले लवाद द्बारा सबसे पहले इसी बात की जांच की जाएगी कि, क्या वाकई वर्ष 2017 से अगले 4 वर्षों के दौरान सफाई ठेकेदारों का काम असमाधानकारक था. यदि वाकई ऐसा था, तो उस असमाधानकारक काम के लिए मनपा द्बारा किसी-किसी ठेकेदार को कितने बार काम सुधारने अथवा कारण बताने के लिए नोटीस जारी की गई. विशेष उल्लेखनीय है कि, मनपा प्रशासन ने समय-समय पर जुर्माना वसूल करने की कार्रवाई को असमाधानकारक काम दर्शाने का मुख्य आधार बनाया है. जबकि ऐसी कार्रवाई को रुटीन एक्शन माना जाता है और यदि किसी दिन किसी कर्मचारी के अनुपस्थित रहने की वजह से कोई काम प्रलंबित भी रहता है और उस काम के लिए ठेकेदार को जुर्माना भी भरना पडता है, तो भी अगले दिन अपने उसी कर्मचारी के जरिए ठेकेदार को वह काम पूरा भी करना पडता है. ऐसे में इसे असमाधानकारक काम का आधार नहीं माना जा सकता. वहीं दूसरी ओर ठेका दिए जाते समय ही प्रत्येक 6 माह में थर्ड पार्टी ऑडिट करने की बात भी तय की गई थी. ऐसे में लवाद द्बारा यह भी देखा जाएगा कि, पिछले 4 साल के दौरान कितने 6 माही ऑडिट में कितने ठेकेदारों का काम असमाधानकारक पाया गया. सबसे खास और मजे की बात यह है कि, उपलब्ध जानकारी के मुताबिक इन 4 वर्षों के दौरान मनपा द्बारा एक बार भी किसी भी ठेकेदार का थर्ड पार्टी ऑडिट करवाया ही नहीं गया. ऐसे में किसी भी ठेकेदार के काम को असमाधानकारक साबित करना मनपा के लिए काफी टेढी खीर साबित होगा. ऐसी स्थिति में यदि लवाद का फैसला ठेकेदारों के पक्ष में जाता है, तो लवाद द्बारा अपने पास रहने वाली मनपा की बैंक गारंटी के जरिए याचिकाकर्ता ठेकेदारों को अंतिम व पांचवें वर्ष में हुए कामकाज के नुकसान हेतु क्षतिपूर्ति मुआवजा दिया जा सकता है. वहीं इसी वर्ष के लिए मनपा द्बारा झोन निहाय ठेकेदारों को भी साफ-सफाई के काम हेतु भुगतान किया जाएगा. ऐसा होने पर एक ही काम के लिए महानगरपालिका को दोहरे भुगतान का बोझ उठाना पड सकता है. जो पहले ही आर्थिक दिक्कत से जुझ रही मनपा के लिए किसी भी लिहाज से ठीक नहीं है.
* इससे पहले भी एक बार हुआ था सिंगल ठेके पर विचार
यहा यह याद दिलाया जाना बेहद जरुरी है कि, वर्ष 2017 के आसपास ही मनपा प्रशासन द्बारा पूरे शहर की साफ-सफाई का ठेका केवल एक ही ठेकेदार को दिए जाने का प्रस्ताव तैयार किया गया था. हालांकि उसे कोई प्रतिसाद नहीं मिला. इसके साथ ही उस समय आम सभा में कुछ वरिष्ठ एवं अनुभवी सदस्यों ने पूरे शहर की साफ-सफाई हेतु केवल एक ही ठेकेदार को काम का जिम्मा सौंपे जाने का विरोध भी किया था. जिसके लिए दलिल दी गई थी कि, पूरे शहर के साफ-सफाई को केवल एक ही व्यक्ति के जिम्मे नहीं छोडा जा सकता. यदि आगे चलकर उस ठेकेदार ने बीच में ही हाथ खडे कर दिए, तो इसका काफी खामियाजा उठाना पड सकता है. जिसके बाद प्रभाग निहाय ठेका पद्धति को अमल में लाया गया, ताकि संबंधित प्रभाग के नगर सेवकों द्बारा अपने-अपने प्रभागों के ठेकेदारों के कामों पर नजर रखी जा सके. साथ ही ठेकेदारों के कामों पर नियंत्रण रखने की जिम्मेदारी संबंधित झोन पर सौंपी गई. वहीं अब एक बार फिर साफ-सफाई का ठेका झोन स्तर पर दिया जा रहा है. इसके चलते झोन निहाय ठेकेदारों पर प्रभाग के पार्षदों का कोई नियंत्रण नहीं रहेगा और इंस्पेक्टर राज को बढावा मिलेगा.
* हमने कोविड काल के दौरान जान का खतरा उठाकर काम किया
मनपा द्बारा झोन निहाय सफाई ठेका दिए जाने के खिलाफ अदालती लडाई लड रहे विजय गंगन नामक पूराने ठेकेदार ने इस संदर्भ में अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि, वर्ष 2017 में सफाई ठेका लेने के बाद सभी ठेकेदारों ने अपने-अपने प्रभागों में बेहद शानदार ढंग से काम करना शुरु किया है और कोविड काल में तो सभी सफाई ठेकेदारों व उनके कर्मचारियों ने अपनी जान का खतरा भी उठाया. जिस समय सभी लोग अपनी-अपनी जान के भय से अपने-अपने घरों में रहने को मजबूर थे. तब सभी सफाई ठेकेदार अपने कर्मचारियों के साथ मिलकर प्रभागों की सफाई कर रहे थे. साथ ही साथ कोविड मरीजों को खोजने और उन्हें अस्पताल पहुंचाने का काम भी कर रहे थे. इसके अलावा कुछ ठेकेदारों के कर्मचारियों ने तो कोविड मृतकों के शवों को अस्पताल पहुंचाने में भी सहयोग दिया. लेकिन इतना सबकुछ करने के बावजूद भी हमारे काम को असमाधानकारक बताया जा रहा है, ताकि हमारे ठेके को रद्द कर ते हुए झोन निहाय ठेका जारी किया जा सके.
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