नेताओं के बेटे-बेटियां लडेंगे चुनाव
कार्यकर्ता करते रहें माइक टेस्टिंग
* सभी दलों में घोर वंशवाद
अमरावती/दि.31- अमरावती हो या मुंबई वंशवाद से कोई भी शहर अथवा जिला छूटा नहीं है. ऐसे ही कोई भी दल छाती ठोककर नहीं कह सकता कि हमारे यहां वंशवाद नहीं है. अमूमन सभी पार्टियों में नेताओं के पुत्र-पुत्रियों व भाई बंधुओं को विधानसभा चुनाव के टिकट सहज प्राप्त हुए हैं. वे शान से प्रतिष्ठा की लडाई बताते हुए मैदान में उतरे हैं. कार्यकर्ताओंको इतना ही संदेश है कि वे माइक टेस्टिंग करते रहें. सतरंजियां बिछाते रहें. भीड जुटाते रहें. पोस्टर लगाते रहें. आंदोलन कर अपने उपर गुनाह दाखिल करवाते रहें. चुनाव आएगा तो नेता का बेटा-बेटी अथवा करीबी रिश्तेदार लडेंगा, जितेंगा. मंत्री और बडे ओहदे प्राप्त करेंगा. दूसरे शब्दो में कहे तो मलाई खाएंगा. खुरचन कार्यकर्ताओं के हिस्से आएंगी.
सभी दलों में ऐसा ही नजारा
विदर्भ मेें नेताओं के रिश्तेदारों को प्रमुख दलों ने शान से मैदान में उतारा हैं. उनमें सावनेर से कांग्रेस की प्रत्याशी अनुजा केदार, कांग्रेस के लीडर सुनील केदार की पत्नी हैं. केदार बैेंक घोटाले में सजा सुनाए जाने केकारण चुनाव लडने से अयोग्य हो गए हैं. ऐसे में उन्होंने पत्नी की टिकट पक्की कर ली.
उमरेड में कांग्रेस के पुराने नेता शिवाजी मोघे ने स्वयं वृध्द हो गए तो पुत्र जीतेन्द्र को मैैदान में उतार दिया. पार्टी ने भी बगैर कोई प्रश्न किए राजी-राजी टिकट दिया है. राकांपा में बडे नेता अनिल देशमुख कथित रुप से स्वास्थ कारणों से चुनाव नहीं लड रहे. उन्हें भी उत्तराधिकारी के रुप में पुत्र सलिल ही नजर आया. सलिल देशमुख को राकांपा ने काटोल सीट से मैदान में उतारा है. भाजपा और शिवसेना भी इस मामले में अछूती नहीं है. भाजपा नेता नारायण राणे स्वयं केद्रिय मंत्री है. अपने दोनों पुत्र नीतेश और नीलेश के लिए विधानसभा की उम्मीदवारी पक्की कर दी. नीतेश राणे तो महायुति में टिकट के लिए भाजपा से पाला पदलकर शिवसेना शिंदेवासी हो गए. नीलेश राणे कणकवली से रण में उतरे हैं.
भाजपा के ही मुंबई अध्यक्ष आशीष शेलार ने मौका आया तो मलाड सीट से तुरंत अपने भाई विनोद शेलार को कमल की उम्मीदवारी उपलब्ध करवा दी. शिवसेना शिंदे गट के संदीपान भुमरे को पैठन सीट से उम्मीदवार खोजना था तो अपने पुत्र विलास को ही उन्होंने चुनावी रण में उतारा.
शिवसेना उबाठा की बात क्या करें. यह तो पार्टी एक परिवार के इर्द-गिर्द संचालित है. पिता मुख्यमंत्री तो उसी मंत्रीमंडल में पुत्र मंत्री रहा है. ऐसे ही उध्दव ठाकरे उच्च सदन के सदस्य हैं. उन्हें उम्मीदवारी देने की बारी आयी तो अपने पुत्र आदित्य को उन्होंने सबसे पहले वरली सीट से उतारा. ऐसे ही अनील सरदेसाई ने भी पुत्र वरुण को बांद्रा सीट से पार्टी का प्रत्याशी बनाकर मशाल थमा दी. केवल इतने ही उदाहरण नहीं है.
भाजपा के राज्यसभा सदस्य अशोक चव्हाण ने पुत्री श्रीजया को भोकर सीट से विधानसभा के रण में उतारा है. कल्याण पूर्व के विधायक व शिवसेना नेता गणपत गायकवाड स्वयं पुलिस थाने में गोली बारी के आरोपी के रुप में जेल में है. विधानसभा चुनाव आया तो उन्होंने पत्नी सुलभा गायकवाड को मैदान में उतारा. यह लिस्ट लंबी है. महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के सर्वेसर्वा राज ठाकरे चुनाव नहीं लड रहे हैं. इस बार विधानसभा में काफी ताकत के साथ अनेक क्षेत्रों में मनसे ने रेल इंजन निशानी के साथ उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं. राज ठाकरे को भी सबसे पहले पुत्र अमीत की याद आयी. अमीत माहिम सीट से मैदान में उतरे हैं. पहला चुनाव लड रहे हैं. बबनराव पांचपुते ने श्रीगोंदा से पत्नी सुलभा पांचपुते को और रवीन्द्र वायकर ने जोगेश्वरी पूर्व से पत्नी मनीषा वाईकर को मैदान में उतारा है. यह कुछ उदाहरण है. बाकी भी देखा गया कि शरद पवार की पुत्री सांसद है. पौत्र रोहित पवार विधायक है. भतीजे अजीत पवार उपमुख्यमंत्री और बारामती सीट से पुनः मैदान में उतरे हैं. शरद पवार के एक अन्य पौत्र युगेन्द्र से अजीत पवार का बारामती सीट पर मुकाबला रोचक होने जा रहा है.
कांग्रेस हो या भाजपा, राकांपा हो या शिवसेना सभी में वंशवाद की बेल खूब फल-फूल रही है. अमरावती के भी लीडर के पुत्र और पुत्री अगले चुनाव को आप को चुनावी मैदान में दिख जाए तो आश्चर्य न कीजिएगा.