अमरावती

आज विश्व परिचारिका दिवस पर विशेष

रूग्णसेवा में डॉक्टर ‘ब्रेन’, तो परिचारिका ‘हार्ट’

* परिचारिकाओं और मरीजों का होता है अनूठा बंध
अमरावती/दि.12– कोई भी मरीज जब किसी बीमारी से पीडित होकर अस्पताल में इलाज करवाने हेतु भरती होता है, तो अस्पताल में रहने के दौरान उसका सबसे अधिक संपर्क व संबंध वहां पर मेडिकल स्टाफ के रूप में कार्यरत परिचारिकाओें से आता है. अस्पताल के डॉक्टरों द्वारा तो मरीजों का इलाज किया जाता है, लेकिन इलाज के दौरान लगनेवाली हर तरह की सेवा परिचारिकाओं द्वारा की जाती है. ऐसे में मेडिकल स्टाफ द्वारा की जानेवाली समर्पित सेवा के चलते मरीजों और परिचारिकाओं के बीच अनमोल संबंध बन जाते है.
उल्लेखनीय है कि, मरीजों की नि:स्वार्थ व समर्पित सेवा करनेवाली परिचारिकाओें के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने हेतु 12 मई को विश्व परिचारिका दिवस के तौर पर मनाया जाता है. वर्ष 1971 में अंतरराष्ट्रीय परिचारिका परिषद का आयोजन किया गया था. जिसमें आधुनिक नर्सिंग की संस्थापिका फ्लोरेन्स नाईटिंगल के जन्मदिवस को विश्व परिचारिका दिवस के तौर पर घोषित किया गया. क्योेंकि फ्लोरेन्स नाईटिंगल ने आधुनिक नर्सिंग के तौर-तरीके स्थापित व प्रचलित करने के साथ ही अपना पूरा जीवन रूग्णसेवा के लिए समर्पित कर दिया था.
ज्ञात रहे कि, कोविड संक्रमण काल के दौरान जब सरकारी व निजी अस्पतालों में मरीजों को भरती करने हेतु जगह नहीं मिल रही थी और संक्रमित मरीजों के संपर्क में आने की वजह से दूसरों के भी संक्रमित होने का खतरा मंडरा रहा था. जिसकी वजह से किसी भी रिश्तेदार को अस्पताल में अपने कोविड संक्रमित रहनेवाले परिजन को मिलने या देखने की अनुमति भी नहीं थी. उस समय विविध सरकारी व निजी कोविड अस्पतालों में परिचारिकाओं द्वारा ही निकट संबंधी बनकर मरीजों का पूरा खयाल रखा जा रहा था. यहां यह भी विशेष उल्लेखनीय है कि, अस्पतालों में डॉक्टरों की तुलना में मरीजों के साथ पूरा समय परिचारिकाओं का ही संबंध व संपर्क रहता है. क्योेंकि डॉक्टरोें द्वारा शल्यक्रिया करने व रोजाना सुबह-शाम राउंड लगाने के बाद मरीजों के सहवास में 24 घंटे रहने की जिम्मेदारी परिचारिकाओं की होती है. यहीं वजह है कि, रूग्णसेवा में डॉक्टरों को ‘ब्रेन’ तथा परिचारिकाओं को ‘हार्ट’ कहा जाता है, क्योेंकि परिचारिकाओं को मरीजों के प्रति काफी संवेदना बरतनी पडती है. अक्सर यह होता है कि, अपनी बीमारी की तकलीफों की वजह से मरीजों में काफी चिढचिढापन आ जाता है और मरीज द्वारा सामने दिखाई देनेवाले महिला या पुरूष परिचारिका पर ही अपना गुस्सा निकाला जाता है. ऐसे समय परिचारिकाओं को काफी संयम बरतना पडता है और मरीजों को समझा-बुझाकर शांत करना पडता है, बल्कि कभी-कभी डॉक्टरों द्वारा लिये गये निर्देशों का पालन करवाने के लिए अपनत्व भरी डांट-फटकार भी करनी पडती है. ऐसे में हर मरीज के साथ परिचारिकाओं का एक अलग व अनमोल संबंध बन जाता है, विशेषकर जिन मरीजोें को इलाज के लिए लंबे समय तक अस्पताल में भरती रहना पडता है, उनका परिचारिकाओं द्वारा ही किसी नजदिकी रिश्तेदार या निकट परिजन की तरह ध्यान रखा जाता है. ऐसे में आज विश्व परिचारिका दिवस के अवसर पर रूग्णसेवा क्षेत्र में समर्पित भाव से काम करनेवाले सभी महिला व पुरूष परिचारिकाओं के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की जा सकती है.

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