अमरावती

विश्व परिचारिका दिन पर विशेष

अंतिम सांसे ले रहे शिशु के जीउठने की सबसे बडी खुशी

* परिचारिकाओं ने सांझा की अपनी दिनचर्या
* शिशुओं के लालन-पालन और देखभाल में मिलता है आनंद
अमरावती/ दि. 12 –रोजाना नये-नये शिशुओं का जन्म उनकी देखभाल और कुछ दिन का लालन-पालन में बहुत आनंद आता है. अगर कोई बच्चा सीरियस हो और ऐसा लगे की वह अंतिम सांसे ले रहा है, ऐसे में डॉक्टर के साथ सभी परिचारिका भी गमसीन माहौल में आ जाती है. मगर ऐसी विकट परिस्थिति में पूरा जोर लगाने के बाद वह बच्चा जीउठता है तो इसके आनंद की खुशी का ठिकाना नहीं होता. ऐसा विश्व परिचारिका दिवस के अवसर पर जिला महिला अस्पताल की परिचारिकाओं ने व्यक्त किया. इस दौरान हमारी टीम ने उनके कुछ ऐसे अविस्मरणीयपल कैद कर पाठकों के लिए प्रस्तुत किए है.
हर रिश्ते में व्यवहार खोजनेवाले आज के इस दौर में नौकरी भी काफी व्यवसायिक तरीके से की जाती है. परंतु नौकरी का कुछ क्षेत्र है. ऐसे ही जिस सेवा को नजर अंदाज किया ही नहीं जा सकता. नर्सिंग उसमें का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है. नर्सेस अपने समर्पण भाव से कर्तव्य पूरा करते है. मरीज के जख्मों पर मलम लगाने के साथ ही उनके मन के घाव पर भी फूंक मारते है. यह अपनापन और निस्वार्थ कठोर परिश्रम करने के साथ ही अपने घर के लिए भी वे समय निकालते है. अपने बच्चों का जीवन संवारने के लिए भी उतना ही परिश्रम लेते है. जिस डॉक्टर के हाथ के नीचे काम करते है. वह हाथ कभी अपने बच्चे का भी हो, ऐसा सपना देखते है. कई परिचारिकाएं इसमें सफल भी होती है. विश्व नर्सिंग दिन के अवसर पर कुछ नर्सो ने इस पर प्रकाश डाला. एक मरीज के लिए डॉक्टर काफी महत्वपूर्ण व्यक्ति होता है. उसके पीछे नर्स भी उतनी ही महत्वपूर्ण होती है. उचित तरीके से देखभाल करने की जरूरत एक मरीज को होती है. वैसी देखभाल नर्स करती है. उस समय नर्स उस व्यक्ति की मां के समान देखभाल करती है. उसकी वेदना को अपनी वेदना समझकर मरीज का हाथ संभालते हुए शांत करने उससे पूछताछ करने अपनी बातों से मरीज के दिमाग का तनाव कम करने का प्रयास करना नर्स के जीवन का अविभाज्य अंग है. इस क्षेत्र में काफी अवसर है. युवक-युवतियों के साथ ही इस क्षेत्र में किन्नरों ने भी आने का विचार करना चाहिए, ऐसा चर्चा के दौरान कुछ नर्सो ने व्यक्त करते हुए बताया.
* बच्चों को स्वस्थ्य देखकर खुशी मिलती-वैशाली फरकुडे- लाडे
जब प्रसूता महिला की प्रसूति हो जाती है, ऐसे में उसके नवजात शिशु की हालत अगर नाजूक होती है तब उस बालक को स्वस्थ करना एक चुनौती से कम नहीं होता. इसके लिए हम हर संभव प्रयास करते है और जब वह अंतिम सांसे ले रहा बच्चा फिर से जीवित होकर स्वस्थ्य होता है उससे हमें जो समाधान मिलता है. उसका अनुमान लगाना बहुत कठिन है, ऐसा डफरीन अस्पताल की परिचारिका वैशाली फरकुडे (लाडे) ने इस दौरान बताया.
* बच्चों के लालन-पालन का मजा ही और कुछ है
बच्चे को जन्म देनेवाली मां केवल एक, दो, तीन बच्चों का सुख भोगती है. परंतु हमारे अस्पताल में नित्य नये बच्चे जन्म लेते है. हमें छोटे-छोटे बच्चों के कुछ दिन के लालन पालन का अवसर मिलता है. इन बच्चों की इस परवरिश में हमें काफी खुशी मिलती है. ऐसा परिचारिका मनीषा भारसाकले ने बताया.
* रोजाना चुनौतीभरा जीवन – छाया अवघडते
रोजाना पूरे जिले भर से जिला महिला अस्पताल में प्रसूति के लिए महिलाओं को लाया जाता है. कई केसेस काफी जटिल होते है. इन हालातों से निपटने के लिए हमारा रोजाना का जीवन चुनौतीभरा होता है, ऐसे में किसी को फिर से जीवन मिलता है तो हमारे लिए गर्व की बात है. हम ऐसी चुनौती हर जीवन में स्वीकारने के लिए तैयार है. ऐसा परिचारिका स्वाती मोरे ने सांझा किया.
* औरों का दु:ख देखकर हम भी दु:खी होते है- नलिनी पिंजरकर
अस्पताल में कई ऐसी प्रसूता महिला आती है. जिनकी हालत काफी नाजूक होती है. माता और शिशु का जीवन भी खतरे में दिखाई देता है. ऐसी स्थिति में डॉक्टर के साथ हम भी कंधे से कंधा मिलाकर उन्हें फिर से स्वस्थ्य कर सामान्य जीवन में लाने का हर संभव प्रयास किया जाता है, ऐसी स्थिति में कभी किसी के जीवन के साथ अनर्थ हो जाता है तो उनके दु:ख को देखकर हमें भी काफी दु:ख होता है. ऐसी परिचारिका नलिनी पिंजरकर ने दास्ता सुनाई.

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