अमरावती

दिल से कर्म करने से आध्यात्मिक उन्नति

संत श्री डॉ. संतोषकुमार के आशिर्वचन

पुज्य शिवधारा आश्रम में ‘शिवधारा झूलेलाल चालिहा’
अमरावती -/दि.19 दिल से कर्म करने से आध्यात्मिक उन्नति होगी. कुछ लोग केवल दिमाग से काम लेते है. परंतु यह याद रहे कि, दुनियादारी में 90 प्रतिशत दिमाग से काम लेना चाहिए और सतर्कता हो, जल्दी किसी पर भी विश्वास न करें, पर व्यवहार जागृकता से करते रहना चाहिए. जिससे ही सांसारिक उन्नति होगी, ऐसे आशिर्वचन शिवधारा आश्रम के संत श्री डॉ. संतोषकुमार ने भाविकों को दिये. वे स्थानीय सिंधु नगर स्थित पुज्य शिवधारा आश्रम में चल रहे शिवधारा झूलेलाल चालिहा के 34वें दिन अपनी मधूर वाणी में भाविकों को संबोधित कर रहे थे.
इस अवसर पर संत श्री डॉ. संतोष कुमार ने कहा कि, घर परिवार में हानी लाभ के संदर्भ में ज्यादा न सोचते हुए केवल देने का भाव रखना चाहिए. फिर चाहे सुख हो, प्रेम हो, सम्मान हो, संपत्ति हो आदि का जब होगा तब भी घर का वातावरण संतुलित बना रहेगा एवं स्वर्ग ेमें होगा. कुछ लोग सोचते है, शिवलिंग पर दुध चढाने से क्या होगा. अरे भैय्या यह तो भावना का क्षेत्र है. जरुरतमंदों में दुध जरुर बांटना चाहिए, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि, पुजा अर्चना में कुछ भी खर्चा नहीं करना चाहिए. जैसे भोजन खाने का लाभ कुछ अलग है, पानी पीने के फायदें कुछ अलग है, नींद के फायदे कुछ अलग है, फल-फू्रट आदि के सेवन से अलग-अलग होते है. सब तो जैसे एक श्रेणी में नहीं लिया जा सकता. वैसे ही धर्म-कर्म को दिमाग से करेंगे, तो कहीं तो भी अधूरापण होगा.
जो अक्सर पढे-लिखे लोगों के जीवन में दिखाई देता है, जैसा हमने देखा हैं, लेक्चर तो अच्छा प्रोफेसर भी देते है. फिर भी संतों की वाणी में इतना प्रभाव क्यों है कि, समाज कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाता है. क्योंकि उनका वैसा आचरण भी होता है. ना केवल विद्वता उनका आधार होता है, इसलिए याद रहें, दुनियादारी में 90 प्रतिशत दिमाग 10 प्रतिशत दिल से काम लेना चाहिए. पर घर-परिवार, धर्म-कर्म और आध्यात्मिकता में 90 प्रतिशत भावना से और केवल 10 प्रतिशत समज से काम लेना चाहिए. प्रेमाभगती में डूबा कैसे जाता है. भक्तिभाव में कैसे पढा जाता है. जीवन में निष्कामतख कैसे आती है. बस इससे अधिक कुछ नहीं है.
संत श्री संतोषकुमार महाराज ने एक उदाहरण देते हुए बताया कि, एक बार गुरुगोविंद सिंहजी महाराज सुबह का सत्संग समाप्त होने के बाद भी बैठे रहे और बहुत समय तक उनकी आंखे बंद रही. जब उन्होंने कई घंटों के बाद आंखें खोली, तो उनसे कहा गया महाराजजी महाप्रसाद आपकी आज्ञा न मिलने के कारण रुका हुआ है. तब गुरुगोविंद सिंहजी महाराज ने कहा कि, कंधार में एक भक्त ने ध्यान में ही हमारे चरण पकड रहे थे. वह ध्यान से उठे, हमारे चरण छोडे, तो हमने भी आंखे खोले, उसने अभी हमारे चरण छोडे और हमने भी आंखे खोली, भगवान के ऐसे भी भक्त होते है, जो भावना से गुरु और गोविंद को पकडकर रखते है.
अभी इसको दिमाग की दृष्टि से देखेंगे, तो विश्वास नहीं आएंगा, ऐसे ही 1008 सद्गुरु स्वामी शिवभजनजी महाराज इंदौर के एक भक्त का अपेंडिक्स का ऑपरेशन नींद में कर आये थे. जबकि शरीर कर के वह वहा नहीं थे. क्योंकि उस बालक को जब पेट में दर्द हुआ था, डॉक्टरों को जाकर बताया था. डॉक्टर ने कहा ऑपरेशन होगा. उसने कहा, मेरा वैद्य गुरु गोविंदा है. मेरा डॉक्टर तो मेेरा गुरुदेव है और सच में ऐसा हुआ. सुबह उस बालक ने जब अपने घरवालों को जगाया और कहा कि, बाबाजी ने नींद में मेरा ऑपरेशन किया है, तो घर वालों ने कहा तुने सपना देखा होगा. उसने अपनी बनियन हटाकर दिखाई तब ऑपरेशन के टाके लगे हुए दिखाई दिये और उस पर पट्टी बंधी दिखाई दी. फिर भी तसल्ली के लिए परिवार वाले उसे डॉक्टर के पास ले गये और डॉक्टर ने कहा हां इसका ऑपरेशन हो चुका है. किसने किया है, यह हमें नहीं पता, इस उदाहरण से भी भावना ही सिद्धि दिलाती है, यह शिक्षा मिल रही है. ऐसे आशिर्वचन संत श्री संतोष महाराज ने शिवधारा आश्रम में चल रहे शिवधारा झूलेलाल चालिहा के 34वें दिन भाविकों को दिये.

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