धारणी/ दि.29 – ‘गांव का मरीज आया, उसका नाडी पकडता, फिर बीमारी का पता लगता, उसे मंतर का पानी दिलाता, पास का जडीबुटी खिलाता, फिर भी नहीं जमता, तो दवाखाने भेजता…’ कुपोषण का कलंक रहने वाले मेलघाट में मंगलवार को चिखलदरा व चुरणी गांव में आयोजित कार्यशाला में मांत्रिक (भुमका) ने अपने अनुभव सबके समक्ष रखे.
स्वास्थ्य विभाग व्दारा पहली बार मेलघाट के आदिवासी मरीजों को अस्पताल भिजवाने के लिए भुमका की सहायता ली जा रही है. उसके लिए कार्यशाला ली गई. दोनों जगह 150 से अधिक मांत्रिक उपस्थित थे. जिला स्वास्थ्य अधिकारी दिलीप रणमले, काटकुंभ के स्वास्थ्य अधिकारी रागेश्री माहुलकर, डॉ. अंकित राठोड, डॉ. अंकुश देशमुख, सरपंच नारायण चिमोटे, नानकराम ठाकरे, गणेश राठोड, हरी येवले, अभ्यंकर आदि उपस्थित थे. 18 विश्व दरिद्रता में रहने वाले मेलघाट के आदिवासी बीमारी के समय आज भी भुमका के पास जाते है. जिसके कारण इलाज के अभाव में कई लोगों को जान गवाना पडता है. उन्हें बचाने के लिए सैंकडों योजना और करोडों रुपयों की निधि खर्च करने के बाद भी वहीं हालत है. स्वास्थ्य यंत्रणा की आलोचना की जाती है. मेलघाट में पहली बार ही भुमकाओं को अस्पताल में मरीज भेजने पर 100 रुपए मानधन दिया जाएगा, यह खास बात है.