सुनीता, शिल्पी, भाग्यश्री के संघर्ष की कहानी
यत्र नार्यस्तु पूज्यते रमंते तत्र देवता:
* विपरीत परिस्थितियों में जूझकर दिया नारी शक्ति का परिचय
अमरावती/ दि. 7 –8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने की प्रथा है. अत: महिलाओं के संघर्ष और सफलता की प्रेरक कथाएं समाचार पत्रों में प्रकाशित करना अमरावती मंडल अपना दायित्व समझता है. गत तीन दशकों से अमरावती मंडल ने अपनी पत्रकारिता में आधी आबादी के अधिकारों और उसके संघर्ष को सदैव मुखर किया है. नारी शक्ति ने विविध क्षेत्रों में संघर्ष कर अपनी लगन, प्रतिभा, परिश्रम के बल पर सफलता के परचम लहराए हैं. दूर क्यों जाए अंबानगरी की अनेक प्रतिभाओं ने नारी शक्ति की अद्बितीय झलक दिखलाई है. नेत्रदीपक सफलता प्राप्त की है. अब तो एसटी बसों में भी दो दर्जन से अधिक युवतियां स्टेयरिंग संभाल चुकी है. भाग्यश्री, सुनीता, अनीता आदि कई नाम इस कडी में लिए जा सकते हैं.
* मिसाल बना है सुनीता वर्मा का संघर्ष
परकोटे के भीतर रहनेवाली सुनीता वर्मा ने घर परिवार की परिस्थिति डांवाडोल होने के बाद जब सूत्र अपने हाथ में लिए तो फिर पीछे मुडकर नहीं देखा. कडे संघर्ष के दिन देखे. सुनीता ने नाना प्रकार के काम किए. हिम्मत बनाए रखी. उनके संघर्ष को पास से देखनेवाले जानते हैं कि कैसी-कैसी परिस्थिति से सुनीता वर्मा ने राह बनाई. अपने दोनों पुुत्र दर्शन तथा कन्हैया को पढाई लिखाई करवाई. आज दोनों निजी कंपनियों में कार्यरत हैं. अच्छे ओहदे पर हैं तो इसका श्रेय सुनीता वर्मा के संघर्ष को दिया जा सकता है. अमरावती मंडल से बातचीत में सुनीता वर्मा ने बताया कि उनका 1986 में रमेशचंद्र जी से विवाह हुआ. वे पुलगांव के छितरमल जी वर्मा की सुपुत्री है. यहां आर्थिक परिस्थिति बहुत अच्छी नहीं थी. किंतु सुनीता वर्मा ने अपने घर परिवार को संभाला. इसके लिए उन्होंने मिले वह काम किया. कभी साडियों को फॉल पीको किया तो लोगों के घरों में जाकर मंगल प्रसंगों में मेहंदी लगाने का भी काम किया. साडियों को लेस लगाकर सजाया. किराए के घर में जिन्दगी बसर करने वाली सुनीता वर्मा को छोटे बेटे कन्हैया को उच्च शिक्षा न दिला पाने का थोडा रंज है. किंतु बडे बेटे दर्शन को उन्होंने अभियांत्रिकी स्नातक बनाया. इसके लिए उसे पढाई के लिए पुणे, नागपुर भेजना पडा. घर का खर्च और पढाई आदि के कारण सुनीता वर्मा केवल 5 घंटे आराम करती और दिन के 19 घंटे वे कार्यरत रहती. आज उनके दोनों पुत्र दर्शन और कन्हैया अपनी मां के संघर्ष से भली भांति परिचित है. इसलिए उनका पूर्ण मान सम्मान रखते हुए काम कर रहे हैं. मां के सपनों को साकार करने का प्रयत्न कन्हैया और दर्शन के साथ-साथ उनकी पत्नियां जयमाला एवं वैष्णवी भी करती है. उन्होंने अपनी बडी बहू जयमाला को एमएससी बायलॉजी करवाया है. सुनीता जी अब घर परिवार संभालने के साथ अपने तीन पोते-पोतियों चारूषी, वेदिका एवं गर्वीश के साथ खेलते खिलखिलाती है. सामाजिक और धर्म कर्म में बडा विश्वास रखनेवाली सुनीता वर्मा मैढ क्षत्रिय समाज में महिला प्रतिनिधि हैं. रामदेव बाबा महिला भक्तगण मंडल में सक्रिय हैं. बसवेश्वर महिला मंडल की उपाध्यक्ष हैं. सुनीता वर्मा का कहना है कि महिलाएं अपनी लगन और शक्ति से हर वह चीज प्राप्त कर सकती है. जिसकी उन्हें कामना है. वे इन शब्दों में हिम्मत बढाती है कि समय का चक्र चलता रहता है. कब किसको कहां ले जायेगा, कुछ कह नहीं सकते. हमें अपना मार्ग चुनना है, उस पर चलना है, आगे बढना है.
* अध्यापिका शिल्पी का व्यवस्था से संघर्ष
शिल्पी परमार मूलरूप से देवास की निवासी है. उनके पिता भरत झाला देवास की टकसाल में कार्यरत है. रवि परमार से विवाह पश्चात वे अमरावती आयी. रवि और शिल्पी दोनों ही एक दूसरे को संपूर्ण करते. रवि ने शिल्पी को आगे पढने के लिए प्रोत्साहित किया. जिसके बाद शिल्पी ने बीएड और एमए की उपाधि प्राप्त कर शहर की प्रतिष्ठित तोमय शाला में बतौर अध्यापिका का काम शुरू किया. सब अच्छा चल रहा था. 30 अक्तूबर 2022 को शिल्पी पर मानो वज्रपात हो गया. जब राजेंद्र लॉज हादसे में उनके हमसफर रवि परमार की जान चली गई. शिल्पी पर दु:खों का पहाड टूट गया. इस परिस्थिति में भी युवा शिक्षिका ने अपने दोनों पुत्र साहिल और सागर का करियर बनाने के लिए संघर्ष जारी रखा है. वे मनपा और पुलिस प्रशासन दोनों व्यवस्था से संघर्ष भी कर रही है. दो रोज पहले ही उन्होंने पत्रकार परिषद लेकर पति के साथ हुए भयानक हादसे के बाद अब तक न्याय नहीं मिल पाने को लेकर अपनी व्यथा व्यक्त की. शिल्पी ने अमरावती मंडल से बातचीत में बताया कि उनकी मां गीता झाला ने दु:ख की घडी में उन्हें बहुत सहारा दिया. हिम्मत दी. उसी प्रकार उनके भाई सिध्दार्थ के साथ-साथ दोनों देवर प्रताप और प्रकाश भी उन्हें मदद कर रहे हैं. जब भी शिल्पी पुकार लगाती है वे आकर खडे हो जाते हैं. बल्कि शिल्पी तो यह भी कहती है कि रवि के जाने के बाद उनके संघर्ष में सिध्दार्थ, प्रताप और प्रकाश उन्हें भरपूर साथ, सहयोग कर रहे हैं. वे अपनी शाला की प्रधानाचार्य वैशाली आवले , उप प्रधानाचार्य मेघना मिटकरी एवं तोमोय परिवार की भी आभारी है. मुश्किल परिस्थितियों में इन लोगों ने उन्हें संभाला है. उनके दोनों जुडवां पुत्र साहिल और सागर को वे जिम्मेदार बच्चे बताती है. गत 16 माह से थाना, कोर्ट, मनपा में न्याय के लिए संघर्ष कर रही शिल्पी परमार ने विभागीय आयुक्त निधि पाण्डेय की भी प्रशंसा की. उनका कहना रहा कि निधि पाण्डेय की सरलता और सादगी ने उनके पद की गरिमा को बढाया है. शिल्पी की बडी बहन रश्मि गोहील है. उनका भी साथ सहयोग बराबर प्राप्त हो रहा है. शिल्पी को विश्वास है कि उनका मनपा और उसके दोषी इंजीनियर के साथ चल रहा संघर्ष रंग लायेगा. उन्हें न्याय की उम्मीद है. उनकी संघर्ष यात्रा अभी तो शुरू हुई है. वे आगे भी सभी के साथ सहयोग से अपनी इस लडाई को जारी रख आदर्श प्रस्तुत करने की कामना रखती है.
* 6 वर्षो में रच डाली कई पुस्तकें
* बरखा राजेश शर्मा हिन्दी साहित्य में बढा रही अमरावती का नाम
दिखने में वे सुंदर हैं. सुघड गृहिणी लगती हैं. है भी. किंतु उनकी लेखन प्रतिभा का पता चलते ही आपको सुखद आश्चर्य हो सकता है. अपनी शाला के समय पनपी लेखन प्रतिभा को विवाह उपरांत कुछ पारिवारिक दायित्वों के पश्चात दोबारा तराशने एवं 6 वर्षो में अनेक पुस्तकें रच देने का कमाल बरखा राजेश शर्मा ने किया है. बेशक उनकी लेखनी का अनेक पुरस्कार भी प्राप्त हुए है. किंतु अमरावती मंडल से बातचीत में विनम्र स्वर में अपने आपको आजीवन जिज्ञासु विद्यार्थिनी बतलाती है. बडनेरा नई बस्ती की रहनेवाली बरखा शर्मा की तीन कहानी संग्रह, 2 लघु उपन्यास और साझा संकलन की दो कृतियां प्रकाशित हो चुकी है. उनमें कथा संग्रह ‘द्बंद’, ‘पुनर्जन्म’, ‘रोचक और मनोरंजक कहानियां,’ लघु उपन्यास ‘हाँ मैं पुरूष हूं’ का समावेश हैं. सामाजिक क्षेत्र में भी बरखा शर्मा सक्रिय हैं. वे अमरावती जिला पारीक महिला मंडल की अध्यक्षा है. ओम फाउंडेशन की संस्थापिका है. उन्हें संत नामदेव पुरस्कार, पाराशर भूषण पुरस्कार राजस्थान शिखर समारोह का डॉ. वीणा कल्ला पुरस्कार प्राप्त हो चुका हैं. वे औरंगाबाद विश्वविद्यालय से एमए हिन्दी हैं. पुष्पादेवी ओमप्रकाश बोरा की सुपुत्री बरखा शर्मा राजेश शर्मा से विवाहबध्द होकर अमरावती आयी. उनके यजमान राजेश शर्मा ने उनकी लेखन प्रतिभा को सदैव प्रोत्साहन दिया. बरखा जी कविता, लेख, लघु उपन्यास, लघु कथा, दीर्घ कथा, कहानी आदि विधाओं में हिन्दी में लेखन करती है. अनेक पत्र पत्रिकाओं में उनकी रचनाएं प्रमुखता से प्रकाशित हुई है. हिन्दी साहित्य में अमरावती का नाम आगे बढा रही बरखा शर्मा ने अमरावती मंडल से वार्तालाप में महिलाओं को विश्व महिला दिवस की पूर्व संध्या पर संदेश देना चाहा कि स्वयं निर्णय कर सके, इतनी स्वतंत्रता होनी चाहिए. साथ ही सक्षम निर्णय की समझ भी होनी चाहिए. केवल अर्थार्जन काफी नहीं. महिला सक्षमीकरण का सही अर्थ पता करना और उसे प्राप्त करना आवश्यक है. उल्लेखनीय है कि बरखा शर्मा की कहानी ‘हत्या’ को नांदेड विश्वविद्यालय ने पाठ्यक्रम में ससम्मान शामिल किया है.
भाग्यश्री रोज सैकडों को पहुंचा रही मंजिल
भाग्यश्री शालिकराम परनाटे ने बडे संघर्ष के बाद राज्य परिवहन निगम में बतौर एसटी बस चालक के रूप में नियुक्ति पायी. कोरोना महामारी के कारण उनकी ट्रेनिंग और प्लेसमेंट को बडा समय लगा. 2019 में उन्हें एसटी में लिया गया था. चार वर्ष बाद नियुक्ति और काम मिला. अभी भी एसटी बस की स्टेयरिंग संभालने से पहले उन्हें परिचालक बना दिया गया था. अब वे नियमित रूप से रोजाना एसटी बस के जरिए सैकडों लोगों को उनकी मंजिल पर पहुंचा रही हैं. खुशमिजाज भाग्यश्री के पिता किसान हैं. उनके भाई महेश और बहन दीपाली देवानंद पोटे हैं. भाग्यश्री ने कहा कि एसटी बस चलाने का उनका शालेय दौर में कोई प्लान नहीं था. किंतु जीवन संघर्ष में जब एसटी में महिला चालकों की भर्ती के बारे में पता चला तो उन्होंने अपनी सखियों के साथ आवेदन कर दिया. उनका सिलेक्शन भी हो गया. किंतु बीच में कोरोना महामारी और पश्चात एसटी कर्मचारियों की महीनों चली हडताल के कारण उनकी ट्रेनिंग में भी विलंब होता चला गया. आखिर ट्रेनिंग शुरू हुई. महीनों वे अपडाउन करती रही. प्रशिक्षण पूर्ण होने के बाद भी उनकी नियुक्ति मेंं विलंब लगा. पिछले वर्ष उन्हें एमईओ टेस्ट के बाद मोर्शी डेपो में नियुक्ति मिली. तब से वे निरंतर कार्यरत हैं. बस चलाने और लोगोें को उनकी मंजिल तक पहुंचाने में खुश भाग्यश्री ने कहा कि युवतियों के लिए आज अपार संभावनाएं हैं. उन्हें अपने करियर की राह चुनकर मेहनत से सफलता पाना चाहिए.