अमरावती

विद्यार्थियों की पीटाई : गलत कौन? विद्यार्थी, शिक्षक या पालक?

सजा दे : मगर उचित समूपदेशन कर गलती ध्यान लाये

अमरावती/दि.10 – छडी के प्रसाद से अपना बेटा सुधरेगा, यह पहले की मान्यता को कई वर्ष बीत चुके है. छडी मुक्त शिक्षक है फिर भी विद्यार्थियों की पीटाई समाप्त नहीं हुई. इसमें गलती किसकी? विद्यार्थी शिक्षक या पालक इसका मंथन करना पडेगा.
‘छडी लागे छमछम, विद्या आये धमधम’ यह पुरानी पीढी में शिक्षक के बारे में विद्यार्थी के पालकों में भी आदरयुक्त डर होता था. परंतु इस बीच शिक्षक में बेटे की पीटाई की तो पालक पुलिस थाने तक पहुंचने लगी, मगर विद्यार्थी गलत है तो उसे सजा मिलना चाहिए. जिसके कारण उस शिक्षक की गुणवत्ता की ओर ध्यान केंद्रीत करेगा और शिक्षक के बारे में आदरयुक्त डर होगा, मगर विद्यार्थियों को हर बार सजा देना चाहिए ऐसा भी सही नहीं है. कुछ समय उसे उचित समुपदेशन कर उसकी गलती ध्यान में लाना चाहिए, ऐसी बात पालक, मुख्याध्यापक और शिक्षकों व्दारा उठने लगी है.

शिक्षक, मुख्याध्यापक क्या कहते है?

बच्चों को पर शिक्षकों का दबाव होना चाहिए, परंतु उसे सजा देने से उसका निर्माण होगा, ऐसा मुझे नहीं लगाता, उचित समय, उचित शब्दों में विद्यार्थियों को समझाना चाहिए, समझाने के लिए छडी की जरुरत महसूस नहीं होती. हर शिक्षक का अपना-अपना कौशल्य होता है. परंतु छडी का डर रहने से निश्चित ही कुछ उधमी विद्यार्थियों पर दबाव बनता है. मगर कानून के कारण यह खत्म हो चुका है.
– किरण पाटील, शिक्षक

सजा नहीं दे सकते

शिक्षण अधिकार कानून में बच्चों को सजा देने पर प्रतिबंध लगाया है. इस कानून के अनुसार बच्चों को किसी भी तरह की सजा नहीं दे सकते. बच्चों को मारना तो दूर शिक्षक आँखें बडी करके भी नहीं देख सकते, इसके पीछे शासन का उद्देश भले ही अच्छा, मगर इसके कारण शिक्षकों का बच्चों पर से नियंत्रण कम हो गया है, डर नहीं रह गया है.
– राजेश सावरकर, मुख्याध्यापक

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