अस्मिता स्कूल के विद्यार्थियों ने जीता दर्शकों का दिल
21 वीं महाराष्ट्र राज्य बाल नाटक प्रतियोगिता
अमरावती/ दि. 4– धनंजय देशपांडे द्बारा लिखित और किशोर श्रीरामजी पचकावडे द्बारा निर्देशित, शिपना इंजीनियरिंग कॉलेज, अमरावती यहां 30 जनवरी 2025 को प्रारंभिक दौर में प्रस्तुत बच्चों के नाटक ‘ चम चम चमको’ ने दर्शकों का दिल जीत लिया. बच्चों का नाटक एक नृत्य प्रतियोगिता से शुरू होता है जिसमें सायाली (कु. अपूर्वा लव्हाटे) और उसकी मां उषा (खुशी मलाई)दोनों मां और बेटी चमको प्रतियोगिता राउंड जीतती है और अगले राउंड में आगे बढती है. इस बात का कॉलनी में ढिढोरा पीटते हुए, उषा बीज सुमति के घर जाती है (माही शिंदे) के घर जाती है और उसे समझाने की कोशिश करती है कि मै और मेरी बेटी कितनी श्रेष्ठ हैं. वह अपने प्रयासों में सफल हो जाती है और सुमति अपनी बेटी (खुशी पाटिल) को नृत्य नाटक और गायन सिखाने के लिए घर पर एक शिक्षिका को बुलाती है. लेकिन ईशा को इन सब मेें कोई दिलचस्पी नहीं हैं. वह एक बडी चित्रकार बनना चाहती है, लेकिन सुमति ईशा की बात सुनने के बजाय इस बात की चिंता में रहती है कि लोग क्या कहेंगे, समाज क्या कहेगा, रिश्तेदार क्या कहेंगे और इस वजह से ईशा दबाव महसूल करती है और नृत्य, नाटक और गायन शिक्षकों को राक्षस/ भूत के रूप में देखने लगती है और वह उनके प्रभाव वे बीमार पड जाती है. उनकी मौसी डॉ. (अनुष्का मेषकर) सुमति को समझाती है कि बच्चे अपने माता-पिता के गुणों के साथ पैदा नहीं होते हैं, लेकिन सुमति उनकी बातों को अनसुना कर देती है. लेकिन डॉ. ही नहीं वह एक बहन के नाते और ईशा की मौसी होने के नाते वह सुमति को समझाती है ओर सुमति की पुरानी यादो के जरिए वह यह उजागर करती है कि उसे भी नाटक, संगीत और नृत्य से प्यार था और वह खुद उसके शब्दों से सुमती के मुंह से उगलाती है कि कैसे उसने अपने अंदर एक चित्रकार को दबाए रखा है और फिर वह कडवी यादे सामने आती है . जब सुमति कैलेंडर के लिए एक बेहतरीन तस्वीर बनाती है , तो उसकी स्कूल टीचर उसे उपहार के रूप में एक रंगीन बॉक्स देती है. वह खुश होकर घर जाती है, लेकिन उसे पीटा जाता है क्योंकि तस्वीर उत्साहवर्धक है, लेकिन वह नहीं समझती कि जब वह छोटी थी तो इसका क्या मतलब था, लेकिन सुमति के परिवार का कहना है कि तस्वीर खराब है. ये शब्द कहकर सुमति चुपचाप बैठ जाती है और रोने लगती है . यह सुनकर डॉ. मौसी उसे सांत्वना देती है और ईशा से पूछती है कि क्या वह चित्रकार बनना चाहेगी. तो ईशा उनसे कहती है हां मौसी, मैं चित्रकार बनना चाहती हुं. लेकिन केवल तभी जब इससे मेरी मां खुश हो जाएं और सुमति को उसकी गलती का अहसास होता है और वह उसे प्रोत्साहित करती है, ‘हा बेटा , तुम एक महान चित्रकार बनो’ और बच्चों के नाटक का अंत बहुत मधुर है. माता-पिता यह क्यों भूल जाते है कि समय के साथ उनके बच्चों की दुनिया और विचार गहरे होते जा रहे हैं ? हम यह कहने में असफल रहे है कि समाज में प्रतिष्ठा, सम्मान और गरिमा दिखाने के नाम पर हम अपने बच्चों से उनका बचपन र्छीन रहे है. ऐसा कभी नहीं होना चाहिए. क्योंकि अगर आज लता मंगेशकर घर पर बैठकर बच्चों की परवरिश कर रही होती तो हमें एक महान गायिका, गायिका नहीं मिलती. प्रतिभा पाटिल, माधुरी दीक्षित, सोनाली बेदरे, उर्मिला मातोंडकर, सुनीता विलियम, कल्पना चावला जैसी अनगिनत हस्तियां है जो आज पूरी दुनिया में भारत का नाम रोशन कर रही हैं. इसलिए माता- पिता को अपने बच्चे की प्रतिभा का जायजा लेना चाहिए और उसे जीवन में आगे बढने में उसकी सर्वोत्तम क्षमता के अनुसार मदद करनी चाहिए. बच्चों के नाटक प्रयोग का बाकी हिस्सा बहुत अच्छे ढंग से प्रस्तुत किया गया. सभी दर्शक इसका आनंद ले सके, किशोरी श्रीरामजी पाचकवडे ने निदेशक की भूमिका बखुबी निभाई . इसमें माही शिंंदे ने मां की भूमिका निभाई है, ईशा की भूमिका खुशी पाटिल ने निभाई है, उषा की भूमिका खुशी मलाई, सायाली की भूमिका अपूर्वा लवटे, निर्देशक की भ्ाूमिका में माही विजयकर, गायिका की भूमिका में छंदवी गूजर, नर्तकी की भूमिका मेंकु नंदिनी ठाकुर, डॉ. चाची की भूमिका अनुष्का मेषकर ने सुप्रिया, भूमिका निभाई है. धानश्री वाटकर, सुप्रिया की मां की भूमिका तन्वी यादव, सपने में भूत कनक विजयकर, सपने में भूत रागिनी गायधाने, अस्मिता स्कूल के सभी विद्यार्थियों ने अपनी- अपनी भूमिका निभाई. इसके अलावा मेकअप आर्टिस्ट अलकेशा खलोकर और कॉस्टयूम डिजाइनर , रिया गुप्ते, संगीत नेहल गवई, प्रकाश व्यवस्था धीरज वानखडे, प्रकाश व्यवस्था धीरज इंगोले, हर्ष खांडेकर, विशेष आभार हरदिनी लव्हाले, प्रिंसिपल अस्मिता विद्या मंदिर, विद्या चौहान मैडम, प्रिंसिपल, अस्मिता हाईस्कूल नाटक के ऐसे सफल प्रयोग जारी रहे. यही मेरी ईश्वर से प्रार्थना है. बस नाटक जारी रखो….
एक रंगसेवक