शतरंज खेल में छात्रों को भविष्य में मिलेगा अधिक बल
अंतरराष्ट्रीय प्रशिक्षक अनूप देशमुख का विश्वास
* शिविर में खिलाडियों को दे रहे प्रशिक्षण
अमरावती/दि.16- देश में शतरंज का प्रचार और प्रसार बडे पैमाने पर हुआ है. शतरंज में संपूर्ण विश्व में भारत दूसरे नंबर पर है. अन्य खेल की तुलना में यह खेल उपरी नहीं दिखने पर भी शतरंज इस खेल में छात्रों को भविष्य में अधिक बल मिलेगा, यह विश्वास शतरंज के प्रशिक्षक व खिलाडी समूह में शिवछत्रपति पुरस्कार प्राप्त अंतरराष्ट्रीय खिलाडी व प्रशिक्षक एवं ग्रैन्डमास्टर अनूप देशमुख ने व्यक्त किया. नवोदित शतरंत खिलाडियों को मार्गदर्शन करने के लिए 15 दिवसीय शिविर अमरावती के श्री हनुमान व्यायाम प्रसारक मंडल के अभियांत्रिकी महाविद्यालय में आयोजित किया है. इस शिविर में खिलाडियों का वह मार्गदर्शन कर रहे है. भारतीय शतरंज संघ के प्रशिक्षक रह चुके अनूप मधुकर देशमुख मूलत: अमरावती निवास है. भारतीय आयुर्वीमा महामंडल से स्वेच्छा से सेवानिवृत्त होकर शतरंज के खिलाडियों को मार्गदर्शन करने का कार्य वे कर रहे है. विदर्भ तथा महाराष्ट्र के खिलाडियों को इस क्षेत्र का आधुनिक ज्ञान प्राप्त हो, खेल में हो रहे बदल, खेलने की पद्धति आदि के बारे में वे जानकारी दे रहे है. शतरंज खेल के बारे में उन्होंने बताया कि, शतरंज को सभी कार्पोरेट कंपनी और केंद्र सरकार के सभी विभाग में अवसर है. खिलाडियों ने खेल का उत्तम प्रदर्शन करने पर उन्होंने अच्छे अवसर प्राप्त होते है. इन अवसरों का लाभ लेना आवश्यक है. शतरंज के खिलाडियों ने नई-नई स्पर्धा में भाग लेना, 15 वें साल में आय.एम. व जी.एम बने का सपना देखना और उम्र के 20 वें साल में विश्वस्तर पर खेलने का लक्ष्य रखने पर देश के साथ साथ खुद का भी अच्छा होगा. खिलाडियों ने फिटनेस, डायट, अच्छा बर्ताव, चरित्र, वरिष्ठों का सम्मान आदि अच्छी आदतें अपनाएं. इस आधुनिक दौर में सभीप्रकार की सुविधाएं मिलना संभव हो गया है. इसलिए खिलाडी इन अवसरों का लाभ लें, ऐसा अनूप देशमुख ने कहा.
विश्वनाथ आनंद को किया था पराजित
अंतरराष्ट्रीय शतरंज खिलाडी अनूप देशमुख ने देश के ग्रैन्ड मास्टर विश्वनाथ आनंद को दो बार पराजित किया है. साल 1982 और 1983 में सबजूनियर स्पर्धा में हाल ही में ग्रैन्ड मास्टर विश्वनाथ आनंद और अनूप देशमुख के बीच मुकाबला हुआ था. इसमें अनूप देशमुख ने जीत हासिल की थी.
* खिलाडी से प्रशिक्षक तक का सफर…
अनूप देशमुख का सफर खिलाडी से प्रशिक्षक तक रहा है. मूलत: अमरावती निवासी रहने वाले अनूप देशमुख के पिता मधुकर देशमुख नौकरी के निमित्त बडोदा से अमरावती में आए थे. पिता जलतरण और वॉलीबॉल के उत्तम खिलाडी थे. बडोदा से आते समय अनूप ने शतरंज खेल में दिलचस्पी निर्माण की.
राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित
अनूप देशमुख को उत्कृष्ठ शतरंज खिलाडी व प्रशिक्षक के रूप में राज्य सरकार की ओर से सर्वोच्च शिवछत्रपति पुरस्कार प्राप्त हुआ है. यह पुरस्कार मिलने वाले शतरंज क्षेत्र के वह एकमात्र व्यक्ति है. इसके साथ ही शतरंज में उन्होंने दिए योगदान को देखते हुए राष्ट्रपति पुरस्कार से उन्हें सम्मानित भी किया गया है. इसके साथ ही अनेक पुरस्कार अनूप देशमुख को मिले है.
* राहुल कलोती की पहल
वर्ष 1985 से 90 में आल्हाद काशिकर व राहुल कलोती ने छात्र के रूप में अनूप देशमुख से शतरंज का प्रशिक्षण लिया है. उन्होंने कई राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा में हिस्सा लिया. एक खिलाडी के रूप में नए खिलाडियों को अच्छा मार्गदर्शन मिलें, ऐसा राहुल कलोती को हमेशा से ही लगता था. उन्होंने अनूप देशमुख से संपर्क कर उन्हें प्रशिक्षक के रूप में आमंत्रित किया. तथा श्री हनुमान व्यायाम प्रसारक मंडल में पद्मश्री प्रभाकरराव वैद्य की अनुमती लेकर मंडल के अभियांत्रिकी महाविद्यालय में यह प्रशिक्षण शिविर आयोजित किया. 15 दिवसीय शिविर में शहर के अनेक खिलाडियों सहभागिता दर्ज की. राहुल कलोती के पहल से यह शिविर सफल हुआ.