चिखलदरा/दि. ३-विदर्भ का कश्मीर रहने वाले चिखलदरा पर्यटन स्थल परिसर के मोथा में प्रायोगिक तत्व पर काजू के पेड़ इन दिनों काजू से लदे दिखाई देते है. केवल तीन साल में इन पेड़ों को काजू लगने से सरकार ने ध्यान दिया तो यह प्रयोग मेलघाट के आदिवासियों को रोजगार देने वाला साबित होगा. स्ट्रॉबेरी, कॉफी के बाद अब यह परिसर काजू के लिए पहचाना जाएगा. गोवा और कोंकण में बडे़ पैमाने पर काजू का उत्पादन लिया जाता है. नितीन उर्फ जयवंत राऊत ने यह प्रयोग अपने हॉटेल परिसर के उद्यान में सफल किया. पुणे से उन्होंने तीन साल पहले काजू के १२ पौधे लाए थे. एक फूट ऊंचे पेड़ अब ६ फूट ऊंचे हुए है.केवल तीसरे ही साल में इन पेड़ों पर काजू लगे है. राऊत ने इसके पूर्व महाबलेश्वर से स्ट्रॉबेरी लाकर स्ट्रॉबेरी का भी उत्पादन लिया. यह प्रयोग सफल होने से परिसर के आलाडो मोथा और अन्य परिसर के किसान स्ट्रॉबेरी का उत्पादन लेते है. राऊत के बगीचे में लगे सातों काजू के पेड़ों को अप्रैल माह में फल लगे है.
आदिवासियों को मिलेगा आय का जरिया
आदिवासी किसानों को कोरडवाहू कृषि के कारण पूरे साल रोजगार गारंटी योजना के काम पर निर्भर रहना पड़ता है. परिणामस्वरूप वह मुंबई, दिल्ली, गुजरात, कर्नाटक, राजस्थान इन राज्य में काम के लिए पलायन करते है. पर्यटन नगरी में काजू बाग सफल होने पर उन्हें अच्छा रोजगार मिलेगा. खेत में काजू के रोप लगाने के बाद ग्रीष्मकाल में भी पानी और खाद का खर्च नहीं रहने से इस संदर्भ में कृषि व अन्य विभागों से संवाद कर काजू की बडे़ पैमाने पर लागत करेंगे, यह बात विधायक राजकुमार पटेल ने कही.
प्रशासन के साथ करेंगे चर्चा
स्ट्रॉबेरी का प्रयोग सफल रहा. काजू के पौधे लाकर उद्यान में रोपे. इन पौधों का संवर्धन करने पर यह प्रयोग सफल हुआ. इससे मेलघाट के आदिवासी किसानों को रोजगार और आमदनी मिलेगी. विधायक राजकुमार पटेल ने इस ओर ध्यान केंद्रीत कर प्रशासन के साथ चर्चा करने की बात कही है.
-नितीन राऊत, हॉटेल व्यवसायिक
मोथा, (चिखलदरा)