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सुको ने दोनों पक्षाेंं को दी ताकीद

राणा के जाति प्रमाणपत्र संबंधी सुनवाई 28 मार्च को

* हाईकोर्ट ने रद्द किया था सर्टिफिकेट
अमरावती / दि. 2- अमरावती की सांसद नवनीत राणा द्बारा बंबई उच्च न्यायालय द्बारा उनका जाति प्रमाणपत्र रद्द करने के फैसले को चुनौती देने के प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय ने सुनवाई आगामी 28 मार्च तक टाल दी. न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति संजयकुमार की खंडपीठ के सामने राणा के वकील मुकुल रोहतकी ने संक्षेप में प्रकरण के तथ्यों का सार रखा. कुछ तारीखों का ब्यौरा उन्होंने अदालत के सामने रखा. राज्य शासन के अधिवक्ता की अनुपस्थिति के कारण बुधवार को सुनवाई 4 सप्ताह के लिए टाल दी गई तथापि कोर्ट ने राज्य सरकार के अधिवक्ता द्बारा पक्ष प्रस्तुत करने संबंधी निर्णय भी अभी नहीं दिया है. शिकायतकर्ता और वादी दोनों के वकीलों को कोर्ट ने कडी ताकीद अवश्य की. कोर्ट को बताया गया कि महाराष्ट्र के अधिवक्ता सिध्दार्थ धर्माधिकारी संविधान पीठ की सुनवाई के कारण बुधवार को उपस्थित नहीं हो सकते.
वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतकी ने सांसद राणा की तरफ से कोर्ट में कहा कि ‘मोची और चमार’ पर्यायवाची हैै. रोहतकी ने अदालत में तर्क दिया कि हाईकोर्ट ने प्रमाणपत्र की पुष्टि और उसे जारी करने के विषय में अलग- अलग सुनवाई की थी. इस पर कोर्ट ने कहा कि वे याचिका को टुकडों में नहीं ले सकते. पूरा मामला सुनना, देखना पडेगा. निर्दलीय सांसद नवनीत राणा 2019 में अमरावती की सुरक्षित लोकसभा सीट से शिवसेना के आनंदराव अडसूल को पराजित कर लोकसभा के लिए चुनी गई. उनके पति रवि राणा भी विधायक है. राकांपा के समर्थन से चुनी गई नवनीत राणा ने बाद में भाजपा की तरफ झुकाव कर लिया. उनका जाति प्रमाणपत्र बंबई उच्च न्यायालय ने 2021 में रद्द कर दिया. यह देखते हुए कि अमरावती सांसद ने ‘ व्यवस्थित धोखाधडी ’की थी, हाईकोर्ट ने उनके जाति प्रमाणपत्र और जाति जांच समिति 2017 के आदेश को रद्द कर दिया. जिसमें मोची अनुसूचित जाति से संबंधित होने के उनके दावे को मान्य किया गया था. उन्होंने अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित सीट से चुनाव जीता था. इस आदेश पर सुप्रीमकोर्ट की अवकाश पीठ ने 2021 में रोक लगा दी थी.
रोहतकी ने कोर्ट को बताया कि हमने तारीखों की एक सूची प्रस्तुत की है. यह उच्च न्यायालय द्बारा जाति प्रमाणपत्र के अमान्य होने पर है. जाति जांच समिति ने इसेे सत्यापित और मान्य किया था. उच्च न्यायालय ने इसे अमान्य कर दिया. बेंच ने कहा इसके लिए सुनवाई की आवश्यकता होगी.
राणा के खिलाफ शिकायतकर्ता ने कहा ‘ इस मामले में तात्कालिकता यह है कि उनके पक्ष में स्टे है. ’ बेंच हालाकि यह सुनने के लिए उत्सुक थी कि राज्य सरकार को क्या कहना है. खंडपीठ को सूचित किया गया कि अधिवक्ता धर्माधिकारी एक संविधान पीठ की सुनवाई में फंस गए है. शिकायतकर्ता ने कहा, मुद्दा एक साधारण बिंदु था- दूसरा पक्ष संवैधानिक असंभवत: की मांग कर रहा था. वे बेंच से यह व्याख्या करने के लिए कह रहे हैं कि राष्ट्रपति के आदेश में जाति ‘ एक्स’ का अर्थ ‘वाय’ भी है.

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