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कही अपनी नाकामी छिपाने तो यशोमति व कांग्रेस पर निशारा नहीं साध रहे सुनील खराटे

खुद शिवसेना के कोटे वाले आधे वोट भी खराटे को नहीं मिल पाये

* 3 बार बडनेरा से शिवसेना प्रत्याशियों ने जीता है विधानसभा का चुनाव
* वर्ष 2009 में राणा के खिलाफ सुधीर सूर्यवंशी ने लिये थे. 19 हजार से अधिक वोट
* सुनील खराटे का सफर महज साढे तीन फीसद यानि 7121 वोटों पर ही लटका
* 4 बार के सांसद अनंत गुढे जैसे स्टार प्रचारक का भी नहीं दिखा प्रभाव
अमरावती/दि.25 – विधानसभा चुनाव में बडनेरा निर्वाचन क्षेत्र से करारी हार का सामना करने के साथ ही अपनी जमानत तक जब्त करवा चुके शिवसेना उबाठा के प्रत्याशी व जिला प्रमुख सुनील खराटे द्वारा अब यह आरोप लगाया जा रहा है कि, कांग्रेस पार्टी व एड. यशोमति ठाकुर ने गठबंधन धर्म का पालन करते हुए उनके चुनाव प्रचार में हिस्सा नहीं लिया. जिसके चलते बडनेरा में शिवसेना उबाठा की हार हुई है. लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि, सुनील खराटे द्वारा अपनी गलतियों व खामियों को छिपाने के साथ ही अपनी नाकामी पर पर्दा डालने के लिए बेवजह ही कांग्रेस व एड. यशेामति ठाकुर पर निशाना साधा जा रहा है. जिसके चलते सुनील खराटे खुद ही अपने हाथों अपनी खुद की छिछालेदर करवा रहे है.
बता दें कि, इससे पहले बडनेरा में ज्ञानेश्वर धाने पाटिल ने दो बार व प्रदीप वडनेरे ने एक बार शिवसेना प्रत्याशी के तौर पर विधानसभा का चुनाव जीता है और उस समय बडनेरा को शिवसेना का मजबूत गढ माना जाता था. वर्ष 2009 में जब युवा स्वाभिमान पार्टी की ओर से रवि राणा ने पहली बार बडनेरा निर्वाचन क्षेत्र से विधानसभा का चुनाव लडा, तो उनके सामने शिवसेना प्रत्याशी के तौर पर सुधीर सूर्यवंशी थी. जिन्हें कुछ लोगों ने एक प्रतिस्पर्धी प्रत्याशी का डमी कैंडीडेट तक बताया था. लेकिन इसके बावजूद सुधीर सूर्यवंशी ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 19 हजार से ज्यादा वोट हासिल किये थे. वहीं आज 15 वर्ष बाद शिवसेना प्रत्याशी के तौर पर सुनील खराटे ने केवल 7 हजार 121 वोट हासिल किये है, जो कुल वैध मतों की तुलना में मात्र 3.35 फीसद है. जबकि आज सुनील खराटे के साथ हमेशा उनका मार्गदर्शन करने वाले जिले के पूर्व सांसद अनंत गुढे स्ट्रार प्रचारक के तौर पर पूरा समय मौजूद थे. लेकिन इसके बावजूद सुनील खराटे खुद शिवसेना के कोटे वाले वोट भी पूरी तरह से हासिल नहीं कर पाये. ध्यान देने वाली यह भी है कि, बडनेरा निर्वाचन क्षेत्र से महाविकास आघाडी के तहत शिवसेना उबाठा के प्रत्याशी रहने वाले सुनील खराटे इस समय ठाकरे गुट वाली शिवसेना के जिला प्रमुख भी है और लंबे समय से शिवसेना के साथ जुडे हुए है. साथ ही उनके द्वारा अमरावती जिले में हर ओर शिवसेना उबाठा के संगठनात्मक रुप से मजबूत रहने का दावा भी किया जाता रहा है. लेकिन चुनावी नतीजों से यह स्पष्ट हो गया है कि, सुनील खराटे बडनेरा निर्वाचन क्षेत्र में शिवसैनिकों को अपने साथ जोडे व बांधे रखने में लगभग नाकाम ही साबित हुए है और बडनेरा निर्वाचन क्षेत्र में शिवसेना ने अपने जनमत को लगभग पूरी तरह से खो दिया है.
ध्यान देने वाली बात यह भी है कि, बडनेरा निर्वाचन क्षेत्र में कुणबी पाटिल समाज के लगभग 90 हजार मतदाता है. जिनमें से अधिकांश को महाविकास आघाडी का समर्थक माना जाता है. लेकिन इस समाज से भी सुनील खराटे मात्र 10 फीसद वोट पाने में नाकाम साबित हुए. साथ ही साथ सुनील खराटे के लिए शिवसेना उबाठा के पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे ने बडनेरा शहर सहित वलगांव क्षेत्र में दो जनसभाएं की. इस बात का भी सुनील खराटे कोई फायदा नहीं उठा पाये. वहीं दूसरी ओर कभी कट्टर शिवसैनिक रहने वाले पूर्व विधायक ज्ञानेश्वर धाने पाटिल ने लोकसभा चुनाव के समय सुनील खराटे द्वारा अपने साथ की गई मारपीट का इस बार सुनील खराटे के खिलाफ शिवसेना की बागी प्रत्याशी प्रीति बंड का साथ देकर बदला पूरा कर लिया. जिन्हें 60 हजार से अधिक वोट प्राप्त हुए है. इन्हीं 60 हजार से अधिक वोटों को देखते हुए सुनील खराटे द्वारा आरोप लगाया जा रहा है कि, जिले के मविआ नेताओं ने उनके पक्ष में कोई प्रचार नहीं किया. अन्यथा वे भी चुनाव जीत सकते थे. साथ ही सुनील खराटे ने लगभग बददुआ देने वाले अंदाज में यह तक कह डाला कि, उनकी हार के लिए शिवसेना की बागी प्रत्याशी प्रीति बंड को ‘अंदरबट्टे’ से साथ व समर्थन देने वाली यशोमति ठाकुर सहित कांग्रेस के सभी प्रत्याशियों व अचलपुर में बच्चू कडू को हार का सामना करना पडा. ऐसे में सुनील खराटे ने अपनी हार के कारणों को लेकर दूसरों पर उंगली उठाने की बजाय खुद आत्मचिंतन करते हुए यह भी सोचना चाहिए कि, अगर उन्हें कांग्रेस के कोटे वाले वोट नहीं मिले, तो भी बडनेरा निर्वाचन क्षेत्र में शिवसेना के कोटे वाले वोट कहा चले गये और उन वोटों को अपने साथ जोडे रखने के लिए सुनील खराटे सहित उनके स्ट्रार प्रचारक व पूर्व सांसद अनंत गुढे ने आखिर क्या प्रयास किये.
ध्यान दिला दे कि, महाविकास आघाडी के तहत शिवसेना उबाठा ने बडनेरा सहित दर्यापुर निर्वाचन क्षेत्र में भी प्रत्याशी खडा किया था और दर्यापुर निर्वाचन क्षेत्र में तो शिवसेना के दोनों गुटों के बीच आमने-सामने की टक्कर थी. साथ ही क्षेत्र के पूर्व भाजपा विधायक रमेश बुंदिले भी युवा स्वाभिमान पार्टी प्रत्याशी के तौर पर चुनावी मैदान में थे. दर्यापुर में भी पार्टी प्रत्याशी के प्रचार हेतु पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे की एक सभा हुई थी और शिवसेना उबाठा के सहसंपर्क प्रमुख सुधीर सूर्यवंशी के नेतृत्व में प्रचार अभियान आगे बढा था. जहां पर शिवसेना उबाठा के प्रत्याशी गजानन लवटे ने बाजी मारते हुए विधायक बनने में सफलता प्राप्त की और शिंदे सेना के प्रत्याशी अभिजीत अडसूल की जमानत तक जब्त करवा दी. ऐसे में सुनील खराटे ने खुद इस बात का जवाब खोजना चाहिए कि, अगर गजानन लवटे जैसा बेहद कम चर्चित व लगभग अपरिचित प्रत्याशी अपने पहले की चुनाव में शानदार प्रदर्शन करते हुए जीत हासिल कर सकता है, तो सुनील खराटे जैसा सर्वपरिचित व बेहद चर्चित प्रत्याशी महज 7121 वोटों पर ही क्यों सिमट गया. इन तमाम बातों को ध्यान में रखते हुए फिलहाल तो यहीं कहा जा सकता है कि, कही न कही सुनील खराटे की ओर से ही चुनाव लडने के नियोजन में काफी कोर कसर रह गई और चुनाव जीतने की इच्छाशक्ति कम पड गई. ऐसे में अब शायद सुनील खराटे अपनी नाकामी व गलतियों को छिपाने हेतु महाविकास आघाडी में शामिल घटक दलों विशेषकर कांग्रेस के नेताओं पर निशाना साध रहे है.

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