अमरावती

गुरु-शिष्य की परंपरा में समर्पण सर्वाधिक आवश्यक तत्व

गुरुपूर्णिमा उत्सव पर डॉ. अविनाश मोहरील का कथन

* संस्कार भारती का आयोजन
अमरावती/दि.17– डॉ. अविनाश मोहरील ने गुरूशिष्य परंपरा का उगम समझाते हुए त्रेतायुग से कलियुग तक के कुछ चुनिंदा उदाहरण दर्शकों के समक्ष रखे. उन्होंने कहा कि, गुरू शिष्य परंपरा में दोनों का समान स्थान होता है. इस परंपरा में समर्पण सर्वाधिक आवश्यक तत्व है. क्योंकि शिष्य को गुरू द्वारा दिए गए ज्ञान को अपनाते हुए, उस पर चलना और उसी को अपना आचरण बनाना पड़ता है. गुरू द्वारा कही गई हर बात शिष्य के लिए महत्वपूर्ण होती थी. टेक्नोलॉजी के उदय से शिष्यों की गुरू पर निर्भरता न्यून हो गई. गूगल हर किसी का नया गुरू बन गया है. बच्चों के लिए गुरू शिक्षा और जानकारी का आधार हुआ करता था, लेकिन अब वह आधार ही हिल गया है और गुरू नाममात्र हो गया है.
संस्कार भारती की ओर से हनुमान व्यायाम प्रसारक मंडल परिसर में स्थित स्व. सोमेश्वर पुसतकर सभागृह में शनिवार को आयोजित गुरु पूर्णिमा उत्सव में ‘गुरू शिष्य परंपरा और उसका बदलता स्वरूप’ विषय पर वे मार्गदर्शन कर रहे थे. इस अवसर पर मंच पर सुरमणि कमल बोंडे, प्रा. जयश्री वैष्णव, अजय देशपांडे और प्रा. आशुतोष देशपांडे उपस्थित थे. गुरू पूर्णिमा उत्सव कार्यक्रम को सफल बनाने संस्कार भारती नाट्य विधा की ओर से प्रसाद खरे, योगेश जाधव, मधुरा मांडवगणे, रसिका वैष्णव, अनुराग वरेकर, ओंकार थेट, सिद्धि देशपांडे, संगीत विधा की ओर से केतकी मोहदरकर, मधुरा देशपांडे, पार्थ कुलकर्णी, नृत्य विधा की ओर से रश्मि आपटे, रसिका बल्लल, सिद्धि बजाज, करंजकर, अनुश्री गायकवाड, परिणीति मांडले, विद्या सालवे और रंगोली विधा की ओर से दीपक जोशी, विदुला जोशी, कुरवाडे ने परिश्रम किए.कार्यक्रम की प्रस्तावना सीमा पेलागडे ने रखी. संचालन वृषाली पांडे ने किया. आभार आशुतोष देशपांडे ने व्यक्त किया.
डॉ. मोहरील ने आगे कहा कि, मनुष्य पहले प्राणी था. हर माता-पिता, पशु-पक्षी अपने बच्चों का गुरु बनकर उन्हें उडने, घोंसला बनाने और शिकार करने आदि की शिक्षा दिया करते थे. यह आज भी होता है. हमारे धार्मिक ग्रंथों में इस परंपरा के कई उदाहरण सामने आते हैं. यह परंपरा तब तक जीवित रही, जब तक व्यक्ति तकनीकी ज्ञान से दूर था, लेकिन तकनीकी ज्ञान के उदय से इसके खंडन का अध्याय शुरू हुआ. जब लोगों का रुख कोेचिंग और पैकेजिंग संस्कृति की तरफ चला गया, तो इस परंपरा का अंत हो गया.

टेक्नोलॉजी सेे ब्ल्यू व्हेल जैसे भयानक गेम का जन्म
एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) के भयावह रूप का विवरण देते हुए उन्होंने कहा कि, इसने रिश्तों को तोड़ने का काम किया है. पहले प्रीचिंग की संस्कृति थी, जिसका लक्ष्य बच्चों को अच्छा आदमी बनाना था. यह संस्कृति बाद में टीचिंग में बदल गई और आगे कोचिंग के स्वरूप में विकृत हो गई. कोचिंग का संशोधित रूप है पैकेजिंग. जहां पालक अपने बच्चों के रहने, खाने और पढ़ाई का इंतजाम एक ही संस्थान में करा देते हैं और बेहतरीन रिजल्ट की अपेक्षा करते हैं. समय के साथ बच्चों की समस्याएं बदल गई हैं. बच्चा अपना दुख इंस्टाग्राम पर प्रकट करता है, लेकिन माता- पिता को नहीं बताता. टेक्नोलॉजी के विकास ने ही ब्लू व्हेल जैसे भयानक मोबाइल गेम को जन्म दिया. जिससे कई परिवार उजड़ गए. टेक्नोलॉजी ने गुरू शिष्य परंपरा को इस तरह बदला है कि, जो परंपरा परस्पर थी, जिसकी जिम्मेदारी दोनों पर थी. वह अब पूरी शिक्षक पर आ गई है.

माता-पिता को गुरु बनने की जरूरत
आज जरुरत है, माता-पिता को गुरू बनने की. चूंकि, गुरू प्रलय औैर निर्माण दोनों करवा सकता है. आपको उनका गुरू बनना होगा. उन्हें सही-गलत का फर्क समझाकर कड़ी से कड़ी चुनौती, समस्या के लिए तैयार करना होगा. अभिभावकों को संवेदनशील होकर बच्चों से अच्छा संवाद स्थापित करना होगा. तभी हम एक जिम्मेदार और सशक्त व्यक्तिमत्व तैयार करने में सफल होंगे औैर समाज को एक बेहतर दिशा दे सकेंगे.

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