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कांग्रेस नेताओं को लेकर इतने सावधान क्यों हो गये राणा?

लोकसभा चुनाव की पराजय

* राणा की पत्रकार परिषद पर जानकारों का विश्लेषण
अमरावती/दि.18 – युवा स्वाभिमान के सर्वेसर्वा और बडनेरा के तीन बार के विधायक रवि राणा सचेत हो गये हैं. सोमवार को होटल ग्रेस इन में लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद मीडिया से रुबरु होते समय हर समय आक्रमक, हमलावर रहने वाले राणा डिफेन्सिव नजर आये, तो इसके पीछे केवल शीघ्र होने वाले विधानसभा चुनाव यहीं एकमात्र कारण नहीं है, तो बल्कि अब वे अमरावती जिले की राजनीति में लंबी पारी खेलने के भी इच्छुक दिखाई दे रहे हैं. उनका सोमवार की पत्र परिषद में कांग्रेस नेताओं यशोमति ठाकुुर, डॉ. सुनील देशमुख, बबलू देशमुख को लेकर सावधान हो जाना, उनकी अपनी पार्टी के लिए काम करने की बढाई करना राणा की सोची समझी रणनीति का हिस्सा परिलक्षित हो रही है. जानकारों ने कहा कि, राणा ने कल मीडिया के बार-बार पूछने पर भी जो लिखकर लाया था, अमूमन उन्हीं मुद्दों के आसपास अपना स्टैंड रखा. जिव्हा पर कंट्रोल रखा. सिर्फ डेढ माह पहले शरद पवार और उद्धव ठाकरे के प्रति खुलकर आरोप करने वाले राणा सोमवार को इन दोनों दिग्गज नेताओं का नाम लेने से बचते रहे. उन्होंने सिर्फ बच्चू कडू और संजय खोडके पर तोहमतें लगाई. इसके पीछे सियासत के जानकार राणा का गणित बता रहे हैं.
* कडू और खोडके क्यों टारगेट?
अमरावती की पॉलिटिक्स के विश्लेषक रवि राणा द्वारा बच्चू कडू और संजय खोडके पर भी इल्जामात लगाने के कारण गिना रहे हैं. उनके अनुसार विधायक राणा को बडनेरा क्षेत्र से चौथी बार विधानसभा पहुंचने चुनाव लडना है. संजय खोडके उनके पुराने प्रतिद्वंदी रहे हैं. खोडके ने भी लोकसभा चुनाव में तटस्थ भूमिका अपना रखी थी. ऐसे में राणा उनको टारगेट करते ही. वहीं बच्चू कडू के साथ उनकी 2 वर्षों से चल रही रार-तकरार कायम है. कडू का अचलपुर विधानसभा क्षेत्र राणा के बडनेरा से दूर है. उसी प्रकार बडनेरा क्षेत्र में कडू और उनके प्रहार संगठन का अभी तो ज्यादा जोर नहीं है. ऐसे में राणा ने इन दोनों नेताओं को ही निशाने पर लिया.
* यशोमति को लेकर सावधान
रवि राणा सोमवार को ग्रेस इन होटल के उस सभागार में लगभग सावधान की मुद्रा में थे. विशेषकर कांग्रेस नेता यशोमति ठाकुर को लेकर वे सजग, सचेत दिखाई दिये. उन्होंने यशोमति ठाकुर की प्रशंसा कर दी. जबकि यहीं राणा और उनकी पूर्व सांसद पत्नी नवनीत जिले में यशोमति ठाकुर पर भी सर्वाधिक हमले और आरोप कर रहे थे. राणा का यशोमति को लेकर सावधान स्टैंड का भी राजनीति के जानकार अर्थ निकाल रहे हैं. उसमें पहली बात यह कही जा रही कि, यशोमति को विधानसभा चुनाव में अच्छे, तगडे प्रत्याशी की तलाश है.
* दलित वोटों का आसरा
रवि राणा को बडनेरा से विधानसभा में चौका मारना है, तो उन्हें दलित वोटों की आवश्यकता होगी. अब तक तीन बार वे दलित वोटों का अच्छा खासा शेयर लेकर ही विधानसभा पहुंचे है. बडनेरा क्षेत्र में दलित वोटर्स की संख्या प्रभावी है. यशोमति ठाकुर ने लोकसभा चुनाव में बलवंत वानखडे के रुप में तगडा दलित उम्मीदवार देकर सफलता हासिल की. कांग्रेस और राकांपा का भूतकाल में रवि राणा की विजय में योगदान रहा है. इसलिए राणा के सुर बदल गये हैं, ऐसा भी राजनीति के विश्लेषक मान रहे हैं. राणा ने जरुरत पडी तो अमरावती के विकास में सांसद वानखडे का साथ देने की बात कही है.इसके भी अपने मतलब लोग निकाल रहे हैं. जबकि नवनीत राणा ने वानखडे के हाथों सीधी हार झेली है.
* बडनेरा से युवा स्वाभिमान प्रत्याशी
विधायक राणा ने बडनेरा से युवा स्वाभिमान उम्मीदवार के रुप में चुनाव लडने की घोषणा की है. उनका भाजपा से तालमेल अभी तो बा हुआ है. समय पर परिस्थितियां बदल सकती है. राजनीति में 4 माह का समय काफी होता है. इसलिए वे कांगे्रस नेताओं की लोकसभा चुनाव में एकी, परिश्रम और निष्ठा से काम करने जैसी बातें कह रहे हैं, ऐसा भी सियासत के जानकार बता रहे हैं.
* नवनीत नहीं आयी सामने
अमरावती लोकसभा क्षेत्र से चुनाव में पराजय को लगता है कि, नवनीत राणा अभी भी स्वीकार नहीं कर पायी है. सोमवार को पत्र परिषद में उनका जिक्र निकला था. मगर वे भाजपा की नेता होने और यह पत्रकार परिषद युवा स्वाभिमान पार्टी की होने का खुलासा रवि राणा ने किया. फिर भी मीडिया और लोगों के मन में नवनीत राणा के अगले कदम को लेकर उत्सुकता है. लोकसभा चुनाव की मतगणना को पूरे 15 दिन हो गये हैं. नवनीत राणा अमरावती की मीडिया के सामने अब तक नहीं आयी है. आगे उनकी क्या योजना है और क्या करने वाली है. इस बारे में वे कब बोलेंगी, इसका इंतजार हो रहा है.

* पवार, ठाकरे पर चुप
रवि राणा ने जिले के कांग्रेस नेताओं को लेकर ही सावधानी नहीं बरती, तो राकांपा के सर्वेसर्वा शरद पवार और शिवसेना पक्ष प्रमुख उद्धव ठाकरे को लेकर भी वे सोमवार की पत्र परिषद में सतर्क दिखाई पडे. शरद पवार और उद्धव ठाकरे का नामोल्लेख टालकर राणा ने अमरावती के बच्चू कडू और संजय खोडके को नहीं बख्शा. इसके भी सियासी गणित, जोडभाग लगाये जा रहे हैं.

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