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133 वर्ष पुरानी जमीन का ‘सुको’ के निर्देश पर मिला ताबा

ब्रिटीशकाल के समय जमीन हुई थी लॉज बेरार-28 संस्था को आवंटित

* जमीन पर था एक व्यक्ति का अवैध कब्जा, कड़े बंदोबस्त में हटाया गया अतिक्रमण
अमरावती/दि.19- ब्रिटिश सरकार द्वारा तत्कालीन कलेक्टर के जरिए लॉज बेरार-28 नामक सार्वजनिक न्यास संस्था को पुलिस पेट्रोल पंप के सामने दी गई करीबन 2 एकड़ जमीन पर एक व्यक्ति द्वारा किए गए अवैध कब्जे के बाद कानूनी लड़ाई के 133 वर्ष बाद संंबंधित संस्था ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर पुलिस के तगड़े बंदोबस्त में जमीन को आज अपने कब्जे में ले लिया.
जानकारी के मुताबिक वर्ष 1890 में शहर के गर्ल्स हाईस्कूल चौक से मालटेकड़ी मार्ग पर टोपे नगर के मोड़ पर प्लॉट नंबर 7 (उस वक्त का प्लॉट नं. 9) और सीट नंबर 30 की करीबन 2 एकड़ जमीन ब्रिटिश सरकार ने तत्कालीन कलेक्टर के जरिए मेसॉनिक लॉज नामक सार्वजनिक न्यास संस्था को दी थी. इस संस्था में बब्बी सदके नामक चौकीदार व रसोईयां कार्यरत था. संस्था ने इस जगह पर पुरानी इमारत के पास ही नई इमारत बनाई थी. संबंधित संस्था ने अपना कामकाज नई इमारत में स्थानांतरित किया था. इस कारण पुरानी इमारत खाली पड़ी थी. रसोईए और चौकीदार के रुप में कार्यरत बब्बी सदके ने संबंधित संस्था से इस पुरानी इमारत में रहने की अनुमति मांगी, तब उसे संस्था ने रहने की रजामंदी दी. समय बीतने के साथ बब्बी सदके वृद्ध होने पर वह बीमार हो गया. तब सहायता के लिए उसने अपनी बहन को साथ रहने की संस्था से अनुमति मांगी. अनुमति मिलने पर बब्बी की बहन लीलाबाई पुल्ली अपने भाई की सेवा करने के मकसद से संस्था की इस पुरानी इमारत में बब्बी के साथ रहने लगी. मेसॉनिक लॉज का नाम बाद में ‘लॉज बेरार-28’ किया गया था. संस्था की इस पुरानी इमारत में रहकर चौकीदारी और रसोईये की भूमिका निभाने वाले बब्बी सदके का बाद में वृद्धावस्था में निधन हो गया. लेकिन बब्बी के निधन के पूर्व लीलाबाई पुल्ली का पति बाबुराव और बेटा वहां रहने आ गए और संबंधित संपत्ति पर अवैध रुप से कब्जा कर उसे खाली करने से इंकार कर दिया. इस कारण संस्था के पदाधिकारियों ने इस जगह को हासिल करने के लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटाया. अदालत ने बब्बी सदके के दामाद बाबुराव पुल्ली को तीन माह में जगह खाली करने के निर्देश दिए. लेकिन अदालत के इस निर्देश को पुल्ली परिवार ने चुनौती देते हुए अपील दायर की. तब इस अपील को भी अदालत ने खारिज कर दिया. तब पुल्ली परिवार ने हाइकोर्ट में गुहार लगाई. हाईकोर्ट ने भी पुल्ली परिवार की यह याचिका खारिज कर दी. पश्चात इस निर्णय को भी चुनौती देकर पुल्ली परिवार सुप्रीम कोर्ट में गया. सुप्रीम कोर्ट ने भी पुल्ली परिवार की यह याचिका खारिज कर दी. पश्चात सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश पर अमल करने के लिए विविध प्रकरण दाखिल हुए. उसमें बाधा निर्माण करने का प्रयास भी हुआ. सभी प्रयास विफल होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने पजेशन वॉरंट निर्गमित किया. इसके बावजूद जमीन का ताबा हस्तांतरित न करते हुए दुविधा निर्माण किए जाने से सुप्रीम कोर्ट ने संबंधित संस्था को जमीन ताबा लेने के लिए पुलिस सुरक्षा देने के आदेश जारी किए. इस आदेश के मुताबिक बुधवार 19 जुलाई को कड़ी पुलिस सुरक्षा में लॉज बेरार-28 उर्फ मेसॉनिक लॉज के पदाधिकारी,सदस्य, न्यायालयीन यंत्रणा व पुलिस यंत्रणा की मौजूदगी में यह जगह पुल्ली परिवार से खाली करवाई गई. 133 वर्ष बाद ब्रिटिशकालीन इस जमीन पर संबंधित संस्था को ताबा मिला. इस प्रकरण में मेसॉनिक लॉज नामक संस्था की तरफ से एड.प्रदीप महल्ले ने काम संभाला.
जमीन बिक्री के प्रयास में था पुल्ली परिवार?
सूत्रों के मुताबिक पुल्ली परिवार ने चैरिटेबल ट्रस्ट की इस जगह पर अवैध रुप से कब्जा करने के बाद खाली पड़ी जमीन को किराए से कुछ व्यवसायियों को माल रखने के लिए दे दिया था, साथ ही वह इस जमीन को बिक्री करने की फिराक में था. यह भी कहा जाता है कि न्यायालयीन लड़ाई के लिए उसे कुछ बिल्डर आर्थिक सहायता भी कर रहे थे. लेकिन संबंधित संस्था को सुप्रीम कोर्ट से न्याय मिलने के बाद आज उस जमीन को संस्था ने अपने ताबे में ले लिया.
पुल्ली परिवार का था अवैध कब्जा
मेसॉनिक लॉज संस्था की जमीन पर पुल्ली परिवार का अवैध कब्जा था. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर पुलिस की कड़ी सुरक्षा में संस्था के पदाधिकारियों ने इस जमीन को आज अपने कब्जे में ले लिया है. 133 वर्ष पुरानी यह जमीन 1890 में ब्रिटिश सरकार ने तत्कालीन कलेक्टर के जरिए मेसॉनिक लॉज को दी थी.
– एड. प्रदीप महल्ले, अमरावती

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