अमरावती/दि.10 – कंफेडरेेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने शीतपेयों पर लगाए जाने वाले जीएसटी व उपकर का प्रमाण घटाने का निवेदन किया है. साथ ही कहा है कि, यदि शीतपेयों पर जीएसटी के दरों को तार्किक रुप से कम किया जाता है, तो इससे किराणा स्टोअर्स, जनरल स्टोअर्स, पान शॉप व फेरीवालों जैसे फुटकर विक्रेताओं का आर्थिक लेन-देन बढेगा और इससे केंद्र व राज्य सरकार को अधिक राजस्व मिलेगा. साथ ही डिटेल व फुटकर विक्रेताओं का पैसा भी उची कर दरों की वजह से अवरोधित नहीं होगा.
इस संदर्भ में कैट द्बारा जारी प्रेस विज्ञप्ति मेें बताया गया है कि, हंसा रिसर्च के जरिए कराए गए अध्ययन के मुताबिक जीएसटी की संरचना में कुछ तत्कालीन बदलाव करने से फुटकर विक्रेताओं की आय में तत्काल ही वृद्धि हो सकती है और उनके पास अपने व्यवसाय को बढाने के लिए अधिक पैसा उपलब्ध हो सकता है. जिससे अंतत: देश में व्यापार व्यवसाय की स्थिति सुधरेगी. कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष बीसी भरतीया व महामंत्री प्रवीण खंडेलवाल के मुताबिक भारत ने शक्कर आधारित कर यानि एसबीटी प्रणाली की ओर बढना चाहिए. जिसके तहत उत्पादन में रहने वाली शक्कर के प्रमाण में कर का स्लैब तय किया जाता है. यदि शक्कर अधिक है, तो कर अधिक रखा जाए, वहीं कम अथवा बिल्कूल भी शक्कर नहीं रहने वाले पेयों पर कर भी कम रखा जाए. इससे कई तरह के बहुआयामी फायदे होंगे. साथ ही यह भी कहा गया कि, शीतपेयों को लक्झरी गुड्स की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता. क्योंकि इन्हें सर्वसामान्यों वर्ग के लोगों द्बारा सेवन हेतु प्रयोग में लाया जाता है. ऐसे में शीतपेयों पर उची स्लैब वाली कर की दरें लागू करना समसामान्य श्रेणी के लिए एक तरह से आर्थिक बोझ है. ऐसे में सरकार ने शीतपेयों पर लगने वाले जीएसटी कर व उपकर की दरों को लेकर दुबारा विचार करना चाहिए. ऐसी जानकारी कंफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स के प्रदेश अध्यक्ष सचिन निवंगुणे तथा संगठन मंत्री श्याम शर्मा द्बारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में दी गई है.