अमरावती

नौकरी बचाने के लिए शिक्षकों को करना पड रहा मशक्कत

प्रलोभन देकर छात्र जुटाने का प्रयास शुरु

वरूड/दि.22- गुरु जी को छात्रों के जत्थे को अच्छी तरह पढ़ाकर अपनी देखरेख में आगे बढ़ा कर प्रसिद्धि पाने के गौरव का आनंद लेने के बजाय छात्रों की तलाश में धूप में निकलना पड़ रहा है. यदि नौकरी रखना चाहते हैं, तो छात्रों को लाएं, यह निर्देश संस्थाचालकों द्वारा शिक्षकों को मिले है. इसलिए छात्रों के अभिभावकों को प्रलोभन देकर छात्र जुटाने के कार्य में वरूड तहसील में शिक्षक व्यस्त दिखाई देते है. तहसील में 173 स्कूल हैं, और निजी स्कूलों ने ग्रामीण क्षेत्रों के साथ-साथ शहर में भी कदम रखा है. अभिभावकों का निजी विद्यालयों के प्रति रुझान बढ़ने से सरकारी विद्यालयों का पतन होने लगा. इससे कई कक्षाएं बंद पडी है. अनुदानित स्कूलों में छात्रों की संख्या घटने से शिक्षकों में चिंता बढ़ा दी है. वहीं कुछ निजी शिक्षण संस्थानों का भी यही हाल है. प्रशासक संस्था को बनाए रखना चाहते हैं, जबकि शिक्षकों के पास नौकरी है, इसलिए परीक्षा परिणाम घोषित होते ही गुरुजी ग्रामीण इलाकों में घूमना शुरू कर देते हैं और आदिवासी कस्बों में जाकर वहां के बच्चों को हायजॅक करना शुरु कर दिया. जिससे उन्हें एक साल के कपड़े के साथ खर्च, साइकिल छात्र के माता-पिता को कपडे और दो हजार रुपए खर्च के तौर देकर कक्षा पांचवी और आठवी के लिए प्रवेश प्राप्त करना शुरु है. उक्त कक्षाओं में 20 पटसंख्या नहीं रहने पर शिक्षक अतिरिक्त होते है. इसलिए संस्था चालक और मुख्याध्यापक द्वारा हर शिक्षक को 4 से 5 छात्रों का टार्गेट दिया जाता है. शिक्षक को प्रत्येक छात्र पर 20 से 30 हजार रुपए आर्थिक खर्च करना पडता है.
* सरकारी स्कूलों में घटी छात्रों की संख्या
जिन सरकारी व अनुदानित स्कूलों ने देश में महापुरुष पैदा किए हैं, उन्ही सरकारी स्कूलों पर निजीकरा ने प्रहार किया है. अभिभावकों का रुझान निजी स्कूलों की ओर बढ़ा है. हजारों रुपए डोनेशन देकर बच्चों का दाखिला संभ्रांत स्कूलों में कराया जाता है. लेकिन जहां जिला परिषद, नगर परिषद के साथ-साथ अनुदानित निजी स्कूलों की गुणवत्ता अधिक है, फिरभी अभिभावकों का संभ्रांत स्कूलों की ओर रुझान है. इसके चलते छात्रों की संख्या घटने से तहसील में 173 में से 100 स्कूल बंद होने के कगार पर हैं.
* जिला परिषद में नौकरी, बच्चा प्राइवेट स्कूल में
जिला परिषद या नगर परिषद के स्कूल में शिक्षक के रूप में काम करके अपना जीवनयापन करते हुए गुरुजी ने स्वयं उस स्कूल को नहीं छोड़ा, जबकि इन शिक्षकों ने अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में नहीं पढाया. इसलिए अब यह आवश्यक हो गया है कि, पहले शिक्षकों के बच्चों को सरकार स्कूल में प्रवेशित करने पर नागरिक भी अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में भेजेंगे. यह सख्ती लागू करना आवश्क हो गा है.
मराठी माध्यम के स्कूल में छात्रों की संख्या कम होने से कक्षाएं कम हो रही है. वैकल्पिक रूप से जिले में शिक्षक अतिरिक्त होकर उन्हें जिले में कहीं भी नियुक्ति दी जाती है. टूटी हुई कक्षा को तीन साल के लिए अस्थायी स्वीकृति पर रखा जाता है और छात्र नहीं होने पर स्थायी रूप से बंद कर दिया जाता है. इस वजह से शिक्षकों को छात्रों को लाना पड़ रहा है.
– नितिन ठाकरे, मुख्याध्यापक,
माधवराव पानसे विद्यालय.

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