अमरावती

कैमरे में दिख रहा पर पकड में नहीं आ रहा ‘वह’ तेंदूआ

विएमवि परिसर में शिकार हेतु 4 बकरियां रखने का भी कोई फायदा नहीं

* चारों बकरियों को दूर से ही देखकर निकल जाता है तेंदूआ
* डेढ माह से वनविभाग तेंदूए को पकडने का कर रहा प्रयास, अब तक नहीं मिली सफलता
अमरावती/दि.14– स्थानीय विदर्भ ज्ञान विज्ञान संस्था यानि विदर्भ महाविद्यालय परिसर में विगत करीब डेढ माह से छिपकर बैठे तेंदूए की वनविभाग द्वारा सरगर्मी से तलाश की जा रही. हैरत की बात यह है कि, इस परिसर में तेंदूए की गतिविधियों पर नजर रखने हेतु लगाए गए ट्रैप कैमरों में कई बार उक्त तेंदूए के फूटेज कैद हुए है. परंतु इसके बावजूद वनविभाग अब तक इस बात का पता नहीं लगा सका है कि, आखिर यह तेंदूआ विएमवि परिसर में निश्चित तौर पर किस जगह पर अपना ठिकाना बनाए हुए है. सर्वाधिक हैरत वाली बात यह भी है कि, वनविभाग द्वारा इस परिसर में तेंदूएं को अपने जाल में फांसने हेतु 4 पिंजरे लगाए गए है. जिनमें शिकार के तौर पर बकरी बांधकर रखी गई है. लेकिन उक्त तेंदूआ इन सभी पिंजरों के पास आकर पिंजरों में रखी बकरियों को दूर से ही देखकर और सुंगकर वापिस चला जाता है. इसकी वजह से वह अब तक पकड में नहीं आया है.

इस तरह से उक्त तेंदूआ चालाकी दिखाते हुए वनविभाग के गश्ती दल को जमकर छका रहा है. इसी बीच यह जानकारी सामने आयी है कि, विएमवि परिसर में विगत लंबे समय से बंद पडे भोसले सभागृह की टूटी सीलिंग के उपरी हिस्से में लगाई गई कूलर डबकिन के पास तीन दिन पहले वनविभाग के गश्ती दल को तेंदूए की विष्ठा पडी मिली. साथ ही कुछ ही दूरी पर कुत्ते व सुअर की हड्डियां भी पायी गई. ऐसे में अनुमान जताया जा रहा है कि, संभवत: रात के समय अपने सुरक्षित ठिकाणे से निकलकर सुअर व कुत्ते का शिकार करने हेतु उक्त तेंदूआ बाहर जाता है और शिकार करने के बाद डबकिन के पास आकर छिप जाता है. जहां पर शिकार को खाने व चबाने के बाद वह परिसर की घनी झाडियों में किसी स्थान पर बने अपने सुरक्षित ठिकाणे में चला जाता है. जहां पर अब तक वनविभाग की नजर नहीं पड सकती है.

उल्लेखनीय है कि, इस परिसर में वनविभाग के दो गश्ती दल तैनात किए गए है. जिसमें से एक दल दिन के समय तेंदूए की तलाश में ट्रैंक्यूलाइजर गन लेकर परिसर में घुमता है. वहीं दूसरा दल रात के समय गश्त लगाता है. अब तक ट्रैप कैमरों के जरिए हाथ आए वीडियो फूटेज से यह स्पष्ट हो गया है कि, उक्त तेंदूआ दिन के समय अपने सुरक्षित ठिकाणे से बाहर निकलता ही नहीं है. बल्कि केवल रात के समय शिकार करने के लिए बाहर आता है. ऐसे में उक्त तेंदूआ दिन के वक्त पकडने में नहीं आ रहा. वहीं रात के वक्त उसे ट्रैंक्यूलाइजर गन के जरिए बेहोशी की दवा से भरा डॉट (इंजेक्शन) मारना थोडा मुश्किल भर और खतरनाक साबित होता है. क्योंकि ट्रैंक्यूलाइजर गन से दागे गए डॉट के लगते ही तेंदूआ कम से कम आधा किमी दूर तक बेतहाशा भागता है और डॉट लगने के बाद केवल आधे घंटे के लिए ही बेहोश होता है. चूंकि विएमवि का परिसर काफी बडा और घना है. ऐसे में यदि रात के वक्त इस तेंदूएं को ट्रैंक्यूलाइजर गन के जरिए डॉट मारकर बेहोश किया जाता है, तो वह कहां व किस ओर भागेगा. यह निश्चित नहीं रहेगा. साथ ही रात के अंधेरे में घनी झाडियों के बीच आधे किमी तक के दायरे में आधे घंटे के भीतर उक्त तेंदूए को खोजन भी किसी चुनौती से कम नहीं रहेगा. इसके अलावा डॉट लगने के बाद उक्त तेंदूएं के रिहायशी इलाकों की ओर भागने का भी खतरा रहेगा. इन तमाम बातों को ध्यान में रखते हुए वनविभाग का दल रात के समय ट्रैंक्यूलाइजर गन का प्रयोग नहीं कर रहा, ऐसी जानकारी वनविभाग के दल द्वारा दी गई है.

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