अमरावतीमहाराष्ट्र

सिलबंट्टा बनाने की कला लुप्त होने के मार्ग पर

वडर समाज का पारंपारिक व्यवसाय को लगा ग्रहण

चिखलदरा-वडर समाज के पारंपारिक सिलबट्टा बनाने कि कला लुप्त होने के मार्ग पर दिखाइ दे रही है. सिलबट्टे का इस्तमाल केवल चटनी बनाने के लिए हि नही बल्की विविध औषिधीयों को पिस कर पथम उपचार के काम में भी किया जाता था.
आज मिक्सर और ग्राइंडर व आधुनिक मशिनो के चलते यह व्यवसाय लुप्त होने कि कगार पर है. पिछले अनेक सालों से पत्थर से वस्तुए बनाने का काम करने वाला वडर समाज रास्तो पर, यात्राओं में, बाजारों में, खलबत्ता और सिलबट्टा बेचने का व्यवसाय कर रहा है. छोटे और बडे पत्थरों को आकार देने का काम यह समाज कर रहा है. लेकीन अब डिजिटल युग में अपने परंपरागत व्यवसाय का जतन करना वडर समाज के लिए मुश्किल हो रहा है. शहर के रास्तों पर यात्रा और बाजारों मे प्लास्टिक की छत का सहारा लेकर बारिश, कडी धुप मे यह समाज पत्थरो को आकार देने का काम कर रहा है. आज नई पिढी अपने किचन में मिक्सर का इस्तमाल कर रही है. अब घरों में सिलबट्टा भी दिखाई नही देता केवल विवाह के समय पर हि इन वस्तुओं कि मांग की जाती है. साधारणत: सिलबंट्टा 400 से 500 और खलबत्ता 200 से 300 रूपए मे विक्री किया जाता है. किन्तू अब आधुनिक युग में धिरे-धिरे यह व्यवसाय लुप्त होने कि कगार पर है. एसा वडर समाज बंधुओ व्दारा कहा गया.

 

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