अमरावती

21 जून को रहेगा साल का सबसे बडा दिन

13 घंटे 13 मिनट रहेगा दिन का समय

अमरावती/दि.19 – पृथ्वी हमेशा सूरज के चारो ओर घुमती है साथ ही अपने अक्ष पर भी घुमती रहती है. जिसे परिभ्रमण कहा जाता है और इस परिभ्रमण को पूरा करने के लिए अमूमन 24 घंटे का समय लगता है. जिसमें आधा समय दिन और आधी समय रात होते है. क्योंकि हमेशा ही पृथ्वी का कोई न कोई आधा हिस्सा अंधेरे में होता है और सूर्य के सामने रहने वाले हिस्से में उजाला रहता है. जिसे सूर्योदय से सूर्यास्त के बीच सुबह से लेकर शाम तक दिन का समय कहा जाता है. लेकिन दिन और रात का समय हमेशा एक समान नहीं रहता, बल्कि इसमें घट-बढ होती रहती है. गर्मी के मौसम में दिन लंबे होते है और रातें छोटी होती है. वहीं ठंडी के मौसम में रातें लंबी होती है और दिन छोटे होते है. इसी खगोलिय नियम के चलते आगामी 21 जून को 13 घंटे 13 मिनट की समयावधि वाला दिन रहेगा और 21 जून को साल भर का सबसे बडा दिन रहेगा.
उल्लेखनीय है कि, प्रतिवर्ष 21 जून को साल का सबसे बडा दिन रहता है. इसी दिन से उत्तरायाण खत्म होकर दक्षिणायन शुरु हेाता है. पृथ्वी का अक्षवृत्त साढे 23 हजार डिग्री से एक ओर झुका हुआ है और पृथ्वी 11 हजार किमी प्रति घंटे की रफ्तार के साथ पश्चिम से पूर्व की ओर घुमती है. इसके साथ ही पृथ्वी अपनी कक्षा में 1 लाख 5 हजार किमी प्रति घंटे की रफ्तार को करीब 89.40 करोड किमी लंबे वर्तुलाकार कक्ष में सूरज की परिक्रमा भी करती है. यहीं वजह है कि, अपने अक्षवृत्त पर लगातार घुमते रहने की वजह से पृथ्वी की कहीं दिन और कहीं रात वाली स्थिति बनती है और चूंकि पृथ्वी अपने अक्ष पर एक ओर झुकी हुई है. ऐसे में सूरज की चारों ओर घुमते समय दिन और रात के समय की अवधि पर फर्क पडता है. इयके तहत 21 जून को साल भर में सबसे बडा दिन रहता है. जब उत्तरायण खत्म होकर दक्षिणायन शुरु होता है. वहीं 22 दिसंबर को दिन की अवधि सबसे कम होती है तथा रात सबसे लंबी होती है. यहां से दक्षिणायन खत्म होकर उत्तरायण शुरु होता है. इसके अलावा सितंबर व मार्च माह में 21 व 22 तारीख दिन और रात की अवधि सम-समान होती है.
मौसम एवं खगोल विज्ञानियों के मुताबिक सन 2004 के दौरान दक्षिण भारत में आयी सुनामी की वजह से पृथ्वी के अपने अक्ष पर घुमने और सूरज की परिक्रमा करने की रफ्तार पर फर्क पडा है और यह रफ्तार थोडी सुस्त हुई है. जिसके चलते कुछ तय वर्षों के बाद अंतर्राष्ट्रीय घडी में एक लीप सेकंड एडजेस्ट करना पडता है. इससे पहले सन 1972 में सबसे पहली बार लीप सेकंड को एडजेस्ट किया गया था. इंटरनेशनल अर्थ रोटेशन एण्ड रेफरंस सिस्टिम सर्विस नामक अंतर्राष्ट्रीय संगठन द्बारा इस लीप सेकंड को एडजेस्ट किया जाता है. जिसके जरिए जरुरत पडने पर 30 जून अथवा 31 दिसंबर को आधी रात के वक्त लीप सेकंड को एडजेस्ट किया जाता है, ऐसी जानकारी मराठी विज्ञान परिषद के विभागीय अध्यक्ष प्रवीण गुल्हाणे तथा खगोल अभ्यासक विजय विरुलकर द्बारा दी गई.
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