अमरावती

वन एवं वन्यजीव विभाग पर आज भी लागू है ब्रिटीश कानून

आग से होनेवाले नुकसान की नापजोख होती है बैलबंडी से

अमरावती/दि.19- मेलघाट व्याघ्र प्रकल्प सहित वन एवं वन्यजीव विभाग अंतर्गत आनेवाले मेलघाट क्षेत्र के जंगलों में इस वर्ष बडे पैमाने पर आग लगने की घटनाएं घटित हुई. जिसमें हजारों हेक्टेयर जंगल क्षेत्र में बडे पैमाने पर करोडों रूपयों की वनसंपदा जलकर खाक हुई और वन, वन्यजीव एवं पर्यावरण की दृष्टि से कभी पूरा नहीं होनेवाला नुकसान हुआ. जिससे जैवविविधता खतरे में आ गई है. लेकिन इसके बावजूद वन एवं वन्यजीव विभाग के रिकॉर्ड में केवल घास-फूस व सुखे पत्ते जलने की जानकारी दर्ज की गई है और इसे भी प्रति बैलबंडी के मानक आधार पर गिना गया है.
उल्लेखनीय है कि, ब्रिटीश काल के दौरान वनक्षेत्रों में लगनेवाली आग से होनेवाले नुकसान को प्रति हेक्टेयर प्रति बैलबंडी के मानक आधार पर गिना जाता था और नुकसान गिनने की यह पध्दती वन एवं वन्यजीव विभाग में आज भी कायम है. इससे संबंधित आंकडे प्रस्तुत करते समय वनविभाग के पास कोई अधिकृत मापदंड नहीं है. प्रत्यक्ष में आग लगनेवाले क्षेत्र व जले हुए जंगल क्षेत्र की अनदेखी करते हुए केवल अंदाजीत तौर पर और इसमें भी आधे से भी कम नुकसान को रिकॉर्ड पर लिया जाता है. ऐसे में हकीकत में जले जंगल क्षेत्र और रिकॉर्ड पर लिये गये जंगल क्षेत्र में काफी फर्क नजर आता है. इस पध्दति के तहत कितने हेक्टेयर क्षेत्र में आग लगने की बात दर्शाई जाती है. उतनी ही बैलबंडी भरकर घास-फुस व सूखे पत्ते जलने की बात ग्राह्य मानी जाती है.

* आरोपी हमेशा रहते है अज्ञात
जंगल में लगनेवाली आग ज्यादातर मानवनिर्मित होती है. ऐसे में आग लगने पर वनविभाग द्वारा हमेशा ही अज्ञात आरोपियोें के खिलाफ वन अपराध दर्ज किये जाते है. लेकिन इस आग को लगानेवाले अज्ञात आरोपियों की खोज करने की सक्षम व्यवस्था वन एवं वन्यजीव विभाग के पास नहीं है. इक्का-दुक्का अपवादों को छोडकर आगजनी के सैंकडों मामले के आरोपी आज भी लापता है.

Back to top button