अमरावती

संगीत विषय का ऑनलाइन व्याख्यान श्रृंखला का समापन 11 को

शासकीय विदर्भा ज्ञान विज्ञान संस्था के संगीत विभाग का उपक्रम

अमरावती/ दि.7 –शासकीय विदर्भ ज्ञान विज्ञान संस्था, अमरावती, के शताब्दी समारोह के अवसर पर संस्था के संगीत विभाग के प्रमुख डॉ. पूर्णिमा दिवस द्बारा आयोजित संगीत विषय की 100 ऑनलाइन व्याख्यान श्रृंखला अगले सप्ताह 11 फरवरी को समाप्त हो रही है. साहित्यकार डॉ. मोहन देशपांडे के अनुसार संकल्प लेने और उसे पूरा करने की प्रक्रिया में कई अप्रत्याशित कठिनाइयां, तकनीकी खराबी आदि हैं. विदुषी पूर्णिमा ने विनम्रता से अपनी योजना चातुर्यो के साथ इन सभी का सामना किया. इतनी बडी परियोजना को सामुदायिक समर्थन की जरूरत होती है. संचालक डॉ. देशमुखजी, पूर्व विभाग अध्यक्ष प्रा. तुलजापुरकर, तत्वज्ञान विषय के संस्था के पूर्व विभागाध्यक्ष आचार्य विवेक गोखले और अन्य संकाय और संगीत विभाग के छात्रों से सहायता प्राप्त हुई.
कलाकारों ने दी प्रस्तुति : इस व्याख्यानमाला में भारत के विभिन्न क्षेत्रों से संगीत के क्षेत्र के प्रख्यात वक्ताओं तथा संगीत से जुडे अन्य कई क्षेत्रों के बुध्दिजीवियों ने अपने विचारों और अनुभवों को सहज और आकर्षक ढंग से प्रस्तुति किया. कुछ जटिल विषयों को सरल किया जाता है, ऑनलाइन व्याख्यानों में विशेष रूप से संगीत प्रयोगों मेें कुछ तकनीकी कठिनाइयों को टाला नहीं जा सकता. हालांकि, डॉ. पूर्णिमा ने अपनी योजनागत चतुराई और विनम्रता से उन खामियों को सरलता से कम कर दिया. कुछ व्याख्याताओं ने अपने विषयोें को चार्ट और बुलेट पाइंट आदि की सहायता से समझाया, कुछ व्याखनों में एक घंटे में बडे और कठिन विषयों को आकर्षक ढंग से प्रस्तुत किया गया. समय प्रवाह और कला प्रवाह का अट्टू संबंध है.
काल के वर्तमान तीव्र प्रवाह के कारण कला प्रवाह में भी अशांति आ गई है. हालांकि मीडिया के माध्यम से बहनेवाली जानकारी के बाढ से बहे बिना चुपचाप श्रवण, ध्यान और ध्यान के माध्यम से यात्रा करनेवाले छात्रों को इस व्याख्यान श्रृंखला में कुछ परिचित संकेत दिखाई देते है, यह उनकी तपस्या में मदद करता है. तो यह कठिनाई होगी सार्थक. सिर्फ छात्र ही नहीं बल्कि शिक्षक, कलाकार, श्रोता, संगीत आयोजक साउंड इंजीनियर, म्यूजिक थेरेपिस्ट, रिसर्च स्कॉलर आदि से सीरिज से जरूर लाभान्वित होंगे.
* कला एक अनुभव है: डॉ. अत्रे
कोई भी कला तब तक जीवित नहीं है जब तक वह मन की भावनाओं को जगाती या उससे चिपकी नहीं रहती. कला सिखाई नहीं जा सकती. यह एक अनुभव है, स्वर, लय और पद के माध्यम से अनुभव को सुगम बनाया जाता है. इतने बडे पैमाने पर संगीत और संगीत से जुडे विषयों पर विचारों का संग्रह और प्रदर्शन कम ही देखने को मिलता है. अत: यह निश्चित है कि यह संकलन परियोजना विद्बानों के लिए महत्वपूर्ण होगी. यह उचित है कि यह शतक व्याख्यान श्रृंखला पद्म विभूषण प्राप्त डॉ. प्रभा अत्रे के भाषण से पूरी होगी. जो एक वरिष्ठ शास्त्रीय गायिका -संगीतकार, एक महान शिक्षिका और संगीत कला में सौंदर्य दृष्टि में अग्रसर होने की बात देशपांडे ने कही.

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