अमरावती

बेटियों को पढाने से होगी देश की प्रगति

पद्मश्री लीला पूनावाला का कहना

* अमरावती मंडल से विशेष बातचीत
* प्रतिवर्ष 1600 छात्राओं को 25 करोड छात्रवृत्ति बांटती हैं
अमरावती/दि.16– देश को समृद्ध करने, सभी दिशा में आगे बढाने के लिए लडकियों का पढ लिखकर अपने पैरों पर खडे होना आवश्यक हैं. इसी विचार से 28 बरस पहले लडकियों को स्नातक बनाने के लिए छात्रवृत्ति देना आरंभ किया. आज बहुत प्रसंन्नता होती है कि लडकियों ने भी हमारी आशा, अपेक्षाओं पर खरा उतरते हुए मुकाम हासिल किए हैं. वे प्रसंन्न है, खुश हैं, अपने क्षेत्र में लीडर बनी हैं तो यही हमारे जीवन की सफलता का परिचायक है. यह बात पद्मश्री लीला पूनावाला ने आज दोपहर अमरावती मंडल से विशेष वार्तालाप में कही. वे अपने फाउंडेशन के स्कॉलरशिप प्रदान समारोह हेतु अपने यजमान फिरोज पूनावाला के साथ यहां पधारी. 20 लडकियों को छात्रवृत्ति प्रदान करने का लीला पूनावाला फाउंडेशन का कार्य आज 16 हजार से अधिक छात्रवृत्ति तक पहुंच गया है. नर्सिंग, अभियांत्रिकी क्षेत्र की 1600 लडकियों को प्रतिवर्ष उनकी कॉलेज की संपूर्ण फीस फाउंडेशन अदा करता है. 25 करोड का वार्षिक बजट है. अमरावती के साथ ही विदर्भ के वर्धा और नागपुर में भी गत 11 वर्षो से यह छात्रवृत्ति दी जा रही है.

* हजारों बेटियों की मॉम
लीला पूनावाला ने अपने यजमान के साथ कुछ अलग करने की दृष्टि से छात्राओं की शिक्षा का भार उठाने का निर्णय 1995 में किया. उनकी अपनी कोई संतान नहीं है. वे आज तक 16 हजार लडकियों को छात्रवृत्ति का वितरण कर चुकी हैं. सभी लाभार्थी छात्राएं गरीब घरों की बेटियां है जो पढ लिखकर आगे बढना चाहती थी. लीला फाउंडेशन ने उनके सपनों को मानो पर लगाए हैं. इसीलिए सभी उन्हें आदरपूर्वक मॉम कहती हैं. फिरोज पूनावाला को डैड.

* स्वयं रही हैं शरणार्थी
पद्मश्री लीला पूनावाला ने बताया कि उनका बचपन कठिन रहा है. विभाजन के बाद वे अपनी मां और भाई-बहनों के संग हैदराबाद से भारत आ गई. शरणार्थी के रुप में यहां जीवन मुश्किल था. पिता का पहले ही देहांत हो चुका था अत: माताजी के उन्होंने परिवार का पालन-पोषण करने में संघर्ष को उन्होंने देखा. इसलिए वे पढाई का प्रण कर चुकी थी. उन्होंने पहले एयरहोस्टेज बनने की सोची थी. किंतु भाई ने कहा कि एयरहोस्टेज की बजाए जो बनना चाहे वह बन सकती हैं. उनकी पढाई के लिए मां ने भी संघर्ष किया. पढाई के प्रण को पूर्ण करने अचार-पापड बनाकर बेचे.

* पहली महिला मैकेनिकल इंजीनियर
1944 मेें जन्मी लीला जी ने बताया कि वे देश की पहली महिला मैकेनिकल इंजीनियर बनी. उस समय लडकियों को कोई कंपनी ऐसी इंजीनियर के रुप में नौकरी देने तैयार नहीं था. अनेक बडी कंपनियों ने उन्हें ना कह दिया. किंतु वे भी दृढ प्रतीज्ञ थी. उन्होंने एक कंपनी में आखिर नौकरी प्राप्त कर ली. यह स्वीडिश कंपनी थी जो टेट्रापैक के नाम से भी फेमस है. उसी प्रकार हथियारों के पार्ट्स भी अल्फाअवाल बनाती.

* बनाए भारत-स्वीडन के संबंध दृढ
लीला जी ने बताया कि कंपनी के माध्यम से उन्होंने भारत सरकार और स्वीडिश राजघराने के संबंध सदृढ करने में योगदान किया. उस समय भारत में 1600 मिलियन डॉलर की विदेशी पूंजी लाई थी. उनकी कंपनी का सर्वत्र अच्छा कामकाज था. तब के सोवियत संघ में भी व्यवहार था. वहां भी भारत की साख और संबंध बढाए. जिसके कारण भारत सरकार ने 90 के दशक में उन्हें पद्मश्री से गौरव किया.

* देने में अपार प्रसंन्नता
कंपनी में ही कार्यरत सहयोगी फिरोज पूनावाला से लीला जी का विवाह हुआ. उनके यजमान फिरोज ने ही उन्हें कंपनी व्दारा बडे उपहार के रुप में तब के प्रचलन स्वीडिश वॉच की बजाए कैश लेेने के लिए प्रेरित किया. यह नकदी रकम लगभग 22 लाख रुपए थी. फिरोज जी ने ही लीला जी को छात्राओं की शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति योजना शुरु करने की प्रेरणा दी. यह मंत्र दिया कि देने से अपार प्रसंन्नता, सुकून प्राप्त होता है. पहले वर्ष 20 छात्राओं को स्कॉलरशिप दिए जाने की बात पूनावाला ने बताई. उन्होंने कहा कि उसके बाद कई मित्र और परिजन उन्हें उनके इस लडकियों के जीवन बदल देने वाले कार्य में सहयोग करने आगे आए. आज 28 वर्षो में यह कार्य काफी आगे बढ गया है. अमरावती, नागपुर के अलावा वर्धा, बैंगलोर, पुणे, हैदराबाद में वे छात्राओं को छात्रवृत्ति का वितरण करती आई हैं. प्रतिवर्ष 1600 छात्राओं को मदद दी जाती है.

* चयन प्रक्रिया पैनल
लीला जी ने बताया कि उनके फाउंडेशन में सभी स्टॉफ लडकियां/ महिलाएं हैं. उसी प्रकार प्रत्येक शहर में भी 5 महिलाओं का पैनल आए हुए आवेदन और प्रत्येक छात्रा का साक्षात्कार लेने के पश्चात छात्रवृत्ति का निर्णय करता है. गरीब छात्राएं जिनके घरों की आमदनी वार्षिक 3.5 लाख से कम है, इसके अलावा छात्रा की अपनी रुचि, तैयारी के आधार पर स्कॉलरशिप दी जाती है. अमरावती में अभियांत्रिकी और नर्सिंग की छात्राओं को 3, 4 वर्ष के स्नातक कोर्स/ डिग्री के लिए सहायता देने की जानकारी मॉम पूनावाला ने दी.

* संतान नहीं करने का निर्णय
लगभग 80 वर्ष की आयु में भी स्वस्थ्य तथा समय की बडी पाबंद लीला पूनावाला ने बताया कि अपनी संतान नहीं करने का निर्णय उन्होंने यजमान फिरोज के साथ मिलकर किया था. घर के वरिष्ठजनों को इस निर्णय के बारे में समझाने में थोडी दिक्कत आने की बात स्वीकार करते हुए पद्मश्री लीला पूनावाला ने बताया कि आज 16 हजार बेटियां उन्हें मॉम कहती हैं तो उन्हें बडा भला लगता है. उन्होंने देखा कि लडकियों की पढाई में देश में कई भागों में बडी समस्याएं होती आई है. जबकि उनका दृढ मत है कि लडकियों को शिक्षित करने से समाज, देश की प्रगति और समृद्धि गति पकड लेती है. इसीलिए पुणे में वे 3500 छात्राओं को 10 वर्ष के बांण्ड के साथ उनकी कक्षा 8वीं से स्नातक तक संपूर्ण पढाई और अन्य जिम्मेदारी लेती हैं. यह अपने आप में बडी ही अनूठी योजना है. आज उनकी फांडेशन की सहायता से स्नातक बनी लडकियां अमेरिका, जर्मनी, आस्ट्रेलिया, कनाडा, इंगलैंड में कार्यरत है. यह देखकर उन्हें कितना गर्व होता है, संतोष मिलता है, प्रसंन्नता होती है, वे शब्दों में नहीं बता सकती. यह कहते हुए पद्मश्री पूनावाला की आंखों की चमक बढ गई थी.

* समाजसेवा के लिए कोई अवार्ड नहीं
भारत में उनकी समाजसेवा के लिए कोई विशेष पुरस्कार अब तक नहीं मिला है. यह बताते हुए वे स्पष्ट कहती हैें कि उन्हें ऐसी कोई अपेक्षा नहीं है. किंतु स्वीडिश सरकार ने उन्हें रॉयल अवार्ड पोलस्टार और रॉयल अवार्ड कमांडेंट के रुप में प्रदान किए हैं. उनकी संस्था को अब अनेक कंपनियों का सीएसआर व व्यक्तिगत रुप से भी भारत से बाहर बसे लोगों से फंड प्राप्त होता है. लोगों की इच्छा के अनुसार निर्धारित क्षेत्र में वे शिक्षा के प्रसार का यह फंड उपयोग में लाती हैं. पद्मश्री लीला पूनावाला से मिलने वाला प्रत्येक व्यक्ति उनकी सादगी से प्रभावित हुए बगैर नहीं रह सकता.

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