अमरावतीमहाराष्ट्र

माता-पिता का ऋण नहीं उतारा जा सकता

शिवम कृष्णजी महाराज ने भक्तों का किया मार्गदर्शन

* हवन में पूर्णाहुति के साथ हुआ कथा का समापन
* कथा के प्रत्येक दिन जेष्ठ नागरिक तथा महिलाओं का सत्कार
चांदूर रेल्वे/दि.27-शहर के यशवंत भवन में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा का आज समापन हुआ. श्रीमद् भागवत कथा के आखिरी दिन शुक्रवार विराम दिवस के दिन शिवम कृष्णजी महाराज ने सुदामा चरित्र का संपूर्ण वर्णन किया. उन्होंने कहा कि सुदामा कौन है? इस पर विचार करना चाहिए और सुदामा के बारे में जानना ही कथा कहलाती है. सुदामा वह नहीं होता जो सिर्फ निर्धन ही हो अपितु वह भी होता है जिसने जीवन में अच्छा दाम कमाया हो. शुक्रदेव पूजन के साथ कथा का विश्राम हुआ. देखा जाए तो कथा का विश्राम का अर्थ समापन नहीं होता क्योंकि कथा केवल प्रारंभ होती है विराम नहीं. विश्राम से अर्थ होता है कथा सुनकर हमारे हृदय में चल रही उद्धेगनाओं, क्रोध,मोह, ईर्ष्या से विश्राम से मिलकर शांत स्वरूप, भगवान के हृदय में स्थापित हो जाना ही कथा विश्राम कहलाता है.
कथा के अंतिम दिवस हवन को पूर्णाहुति कर कथा का समापन किया गया. श्राद्ध पक्ष की विशेष समय में पितरों के निर्मित आयोजित श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ में वृंदावन धाम से पधारे हुए श्री शिवम कृष्ण जी महाराज ने कहा, जहां अभिमान है वहां भगवान नहीं रहते और जहां भगवान है वहां अभिमान नहीं होना चाहिए. भगवान श्री कृष्ण ने केवल गिरिराज गोवर्धन पर्वत को ही नहीं उठाया हम सबकी जीवन के भार को भी भगवान श्री कृष्ण ने हीं उठा रखा हैं. जैसे बृजवासियों को भ्रम हो गया था की गिरिराज गोवर्धन पर्वत हमने अपने डंडों और कंधों पर उठा रखा है. ऐसे ही कभी-कभी जब हम जीवन में कोई बड़ा पद या यश प्राप्त कर ले या सफल हो जाए तो हमें लगता है कि सब हमने ही किया. किंतु करने वाले गोविंद हैं आप और हम सब तो निमित्त मात्र हैं. संसार में सबका ऋण उतारा जा सकता है लेकिन अपने माता-पिता का ऋण नहीं उतारा जा सकता. एक माता-पिता अपनी संतान के लिए कितना संघर्ष और त्याग करते हैं उसका वर्णन नहीं किया जा सकता श्रेष्ठ संतान वही है जो सदा अपने माता-पिता और घर के बड़े बुजुर्गों का सम्मान करता रहे. 7 वर्ष की उम्र में भगवान श्री कृष्ण ने सात कोस के गिरिराज गोवर्धन पर्वत को 7 दिन तक बाएं हाथ की कनिष्ठ का उंगली पर धारण किया. 11 साल 55 दिन तक भगवान वृंदावन में रहे. उसके बाद मथुरा आकर कंस का वध किया पदों पर अंत द्वारिका जाकर द्वारकाधीश बने और भगवान श्री कृष्ण का प्रथम विवाह कुंडलपुर के राजा महाराज भीष्मक की परम सुंदरी कन्या जो साक्षात लक्ष्मी जी के अवतार थी रुक्मणी जी के साथ हुआ.
आज की कथा में धूमधाम से भगवान श्री कृष्ण और रुक्मणी जी का मंगल मनाया गया. कथा दौरान धामनगांव विधानसभा क्षेत्र के विधायक प्रताप अडसड व पूर्व विधायक वीरेंद्र जगताप तथा वंचित बहुजन आघाडी के युवा प्रदेशाध्यक्ष निलेश विश्वकर्मा इन्होंने कथा स्थल को भेट देकर कथावाचक तथा मंच पर उपस्थित सभी संतों का शाल देकर सत्कार किया गया. उसी प्रकार कथा के प्रत्येक दिन वरिष्ठ नागरिक तथा महिलाओं का महाराज के हाथों सत्कार किया गया. कथा को सफल बनाने हेतु शिव भक्त परिवार चांदुर रेलवे, श्याम परिवार चांदुर रेलवे सहित ग्राम वासियों ने सहयोग किया.

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