अमरावती

अधिष्ठाता एफ.सी.रघुवंशी के वेतन का ‘मैेनजमेंट’ में आज फैसला

वेतन संरक्षित करने का विषय

  • राज्यपाल से मनीष गवई, सागर देशमुख ने की शिकायत

अमरावती/प्रतिनिधि दि.७ – संत गाडगे बाबा अमरावती विद्यापीठ के विज्ञान व तंत्रज्ञान अधिष्ठाता एफ.सी.रघुवंशी के प्राचार्य पद पर सेवाखंड क्षमापित करना व वेतन संरक्षित कर ज्वाईंन तारीख से वेतन अदा करने बाबत का विषय नंबर 60 के तहत आज शुक्रवार को होने वाली व्यवस्थापन परिषद में निर्णय होगा. किंतु अधिष्ठाता रघुवंशी को जनरल फंड से 72 लाख रुपए वेतन अदा न करे. वे नियमबाह्य रहने की शिकायत सिनेट सदस्य मनीष गवई, प्रदेश युवक कांग्रेस के उपाध्यक्ष सागर देशमुख ने राज्यपाल से गुरुवार को की है.
1 अप्रैल को व्यवस्थापन परिषद की सभा संपन्न हुई. किंतु इस सभा में रघुवंशी के वेतन का विषय प्रलंबित रहा है. आज शुक्रवार 7 मई को विद्यापीठ ने व्यवस्थापन परिषद की सभा आयोजित की है. इस सभा में रघुवंशी के वेतन का निर्णय होने की संभावना है. उसके चलते विद्यापीठ प्रशासन ने सरकार के पास अब तक किया हुआ पत्र व्यवहार उच्च शिक्षा सहसंचालकों ने मांगा है. स्वयंस्पष्ट रिपोर्ट का आधार लिया है. किंतु वेतन देने के निर्णय का अधिकार व्यवस्थापन परिषद को नहीं है. वहीं यह विषय सिनेट सभा के सामने लाना चाहिए उसके लिए विशेष सिनेट सभा लेनी चाहिए, इस तरह की मांग राज्यपाल नामित सदस्य मनीष गवई ने कुलगुरु मुरलीधर चांदेकर को भेजे निवेदन से की है. युवक कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष सागर देशमुख ने अधिष्ठाता रघुवंशी का 72 लाख का वेतन सामान्य फंड से न दे, ऐसा हुआ तो तीव्र आंदोलन किया जाएगा, इस तरह की चेतावनी दी गई है. विद्यापीठ को इस तरह खंड क्षमापित करने का अधिकार न रहते हुए व्यवस्थापन परिषद के कंधे पर बंदूक रखकर अवैध रुप से नियुक्त किये गए विज्ञान विद्या शाखा के अधिष्ठाताओं पर पूरे 72 लाख रुपए विद्यापीठ फंड से उधडने की यह साजिश है, ऐसा गवई, देशमुख ने निवेदन से आरोप किया है. इस संदर्भ में राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी, मुख्यमंत्री उध्दव ठाकरे, उच्च व तंत्रशिक्षण मंत्री उदय सावंत, पालकमंत्री यशोमती ठाकुर को निवेदन भेजा है.

  • क्या कहता है विद्यापीठ नियम

– महाराष्ट्र विद्यापीठ कानून कलम 31 के अनुसार व्यवस्थापन परिषद के अधिकार व कर्तव्य में भी खंड क्षमापित करने के अधिकार न रहते हुए कानून में न रहने वाले मुद्दों पर आधारित गैर कानूनी विषय को कुलगुरु ने मान्यता कैसे दीन, इस बाबत शिक्षा विशेषज्ञ आश्यर्च व्यक्त कर रहे है.
– 24 अप्रैल 2019 को रघुवंशी ने स्वेच्छा निवृत्ति ली और 19 मई 2019 को वे अधिष्ठाता पद के इंटरव्यू को गए. तब वे शिक्षक व प्राचार्य भी नहीं थे. जिससे उनकी नियुक्ति को शिक्षण सहसंचालकों ने आपत्ती ली. तब शासन मान्यता के अधिन रहकर उन्हें पत्र भेजा गया. किंतु सरकार की मान्यता आने से पहले ही उन्हें नियुक्ति पत्र देकर 26 दिन के बाद ज्वाईंन क्यों कर लिया, इस प्रश्न पर प्रशासन का मात्र मौन है.
– 2021-22 का अंदाजपत्रक हाल ही में सिनेट ने मान्य किया. उस अंदाजपत्रक में इस तरह से अवैध नियुक्ति संदर्भ में 72 लाख रुपए खर्च की. कोई भी व्यवस्था स्वतंत्र रुप से नहीं दर्शायी. यह एक प्रकार से सिनेट की भी दिशाभूल है.

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