* जनसंपर्क को किया कम, मुलाकातें व दौरे हुए सुस्त
अमरावती/दि.16 – विगत करीब एक वर्ष से स्थानीय स्वायत्त निकायों के चुनाव अधर में लटके पडे है और चुनाव निश्चित तौर पर कब होंगे इसके भी कोई आसार दिखाई नहीं दे रहे. ऐसे में पिछले एक साल से चुनाव होने की आस लेकर चुनाव लडने की तैयार कर रहे इच्छूकों ने अब अपने आप को सीमित दायरे में समेटना शुरु कर दिया है. ताकि जनसंपर्क व प्रचार के नाम पर अनावश्यक खर्चों से बचा जा सके. जिसके चलते अब इच्छूकों द्बारा मतदाताओं के बीच जाकर दौरे करने और मतदाताओं से संपर्क करने को थोडा कम कर दिया गया है. ताकि बेवजह ही जेब पर पडने वाले बोझ को टाला जा सके.
बता दें कि, विगत वर्ष मार्च माह में अमरावती महानगरपालिका व जिला परिषद सहित जिले की पंचायत समितियों का कार्यकाल खत्म हुआ था. यह कार्यकाल खत्म होने से 6 माह पूर्व ही आम चुनाव करवाने की तैयारियां शुरु कर दी गई थी. जिसे ध्यान में रखते हुए चुनाव लडने के इच्छूकों ने भी अपने-अपने स्तर पर तैयारियां शुरु करते हुए मतदाताओं को रिझाने व लुभाने का काम शुरु कर दिया था. उस समय महाविकास आघाडी रहने के दौरान प्रभाग रचना, गट व गण रचना व आरक्षण की घोषणा हो गई थी. साथ ही मनपा, जिप व पंस की सदस्य संख्या बढाने का भी निर्णय ले लिया गया था. परंतु इसके बावजूद भी वृद्धिंगत सदस्य संख्या तथा बहुसदस्यीय प्रभाग प्रणाली को लेकर अदालत में याचिकाएं दाखिल होने के चलते चुनाव नहीं कराए जा सके. वहीं इसी दौरान महाविकास आघाडी की सरकार बर्खास्त होकर शिंदे गुट व भाजपा की नई सरकार अस्तित्व में आयी है. जिसने स्थानीय निकायों के चुनाव को लेकर महाविकास आघाडी सरकार द्बारा लिए गए फैसले को पलट दिया. ऐसे में पूरा मामला एक बार फिर अधर में फंस गया और अब तक स्थानीय निकायों के चुनाव की घोषणा नहीं हो पायी है. जिसके चलते चुनाव लडने के इच्छूकों में काफी हद तक निराशा देखी जा रही है.
उल्लेखनीय है कि, स्थानीय निकायों के चुनाव लडने के इच्छूकों ने विगत डेढ वर्षों से अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में प्रचार-प्रसार का दौर शुरु कर दिया था. जिसमें मतदाताओं को आकर्षित करने हेतु विभिन्न पर्वों व त्यौंहारों के शुभकामना संदेश देने के साथ-साथ दीपावली मिलन व क्रीडा स्पर्धा सहित विभिन्न तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाना लगा था. जिस पर अच्छा खासा पैसा भी खर्च हुआ. लेकिन चुनाव की तारीखें ही घोषित नहीं हुई. राज्य में नई सरकार के अस्तित्व में आने के बाद उम्मीद जताई जा रही थी कि, अक्तूबर माह तक चुनाव हो जाएंगे. परंतु निर्वाचन प्रक्रिया और भी आगे टल गई है. चूंकि शिंदे सरकार ने मविआ सरकार के समय तय की गई वार्ड एवं प्रभाग रचना को रद्द कर दिया है. साथ ही वर्ष 2017 की पद्धति के अनुसार चुनाव लिए जाने का निर्देश जारी किया गया है. जिसके चलते आरक्षण एवं प्रभाग रचना में एक बार फिर बदलाव होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता. ऐसे में चुनाव लडने के इच्छूकों द्बारा अपने प्रचार-प्रसार पर पैसा खर्च किया जाता है, तो इससे उन्हें नुकसान भी हो सकता है. ऐसे में चुनाव के और भी आगे टल जाने का संकेत मिलते ही कई इच्छूकों ने अपने-अपने दायरे को समेटना शुरु कर दिया है. साथ ही जनसंपर्क व मुलाकातों के दौर को कम कर दिया है. ताकि बेवजह ही होने वाले खर्च को बचाया जा सके.