भक्त की फिक्र करते है भगवान, नरसी की कथा का यही है सार
नानीबाई का मायरा की कथा के दूसरे दिन जयाकिशोरीजी का कथन
*कथा के द्वितीय पुष्प में पहले दिन से अधिक रही भाविक श्रध्दालुओं की भीड
* दस हजार की आसन क्षमतावाला डोम पंडाल खचाखच भरकर हुआ हाउसफुल
परतवाड़ा/अचलपुर/दि.20– गुजरात के जूनागढ़ में रहनेवाले नरसी मेहता एक अलग प्रकार का व्यक्तिमत्व है. नरसी को धन संपदा, ऐश्वर्य, संपन्नता, वैभव आदि से कोई लेनादेना नही है. वो अपनी फकीरी में फक्कड़ी में है. नरसी के पास सिर्फ एक ही धुन है, श्याम की धुन. ये धुन निस्वार्थ है. नरसी को कृष्ण से, भगवान से कुछ भी नही चाहिए और न कभी वो ऐसा कुछ मांगते हुए नजर आते है. वो जी रहे साधुओं की संगत में. साधु, वो भी अंधे, सूर्याओ के साथ उनकी गहरी छन रही. भगवान ने 14 पीढ़ी तक खत्म न हो, इतना सब कुछ नरसी को दिया और नरसी ने उसे मात्र 12 माह में खत्म कर दिया था. उन्हें कोई गलत शौक नही था. अपनी फक्कड़ी में सारी मिली पूंजी लुटा दी. मजाल है कि नरसी के घर से कोई खाली हाथ चले जाएं. इस प्रकार की विरोधाभास की स्थिति कम देखने को मिलती है. नरसी के पास कोई डिमांड नही सिर्फ कृष्ण भक्ति है और दूसरी ओर कृष्ण है कि अपने इस बावले भक्त को, अपने प्रिय के दुख हरने के लिए रोजाना चिंतित हो रहे है. जहां भाव है, वही भगवान है. कह सकते है कि, भक्त की फिक्र खुद भगवान करते है. फक्कड़ फ़क़ीर और भगवान कृष्ण के मुरीद जूनागढ़ निवासी नरसी मेहता की संघर्ष गाथा और सदैव नरसी की सहायता को तत्पर रहते भगवान कृष्ण यानी नानीबाई का मायरा कथा की प्रस्तुति देते समय जयाकिशोरीजी अध्यात्म, वात्सल्य, ममता, श्रृंगार, अल्हड़ता, मैत्री और नरसी के दुख-दर्द को बताते हुए अपनी भाव भंगिमाएं भी कथा अनुसार कर लेती है. विषय के अनुसार चेहरे पर भाव मुद्रा तैयार करना जयाकिशोरीजी के वक्तृत्व हुनर का हिस्सा है, इससे श्रोता मंत्रमुग्ध हो जाते है.
कल मंगलवार 19 अप्रैल को कथा के दूसरे दिन अपरान्ह 4 बजे जयाकिशोरीजी का मंच पर आगमन हुआ. जिसके पश्चात भगवान नाथद्वारा और लड्डूगोपाल की प्रतिमा की पूजा अर्चना के साथ किया गया. कार्यक्रम का सूत्रसंचालन सुरभि अग्रवाल और डॉ. संजय (विक्की) अग्रवाल ने किया. इस समय अनिलबाबू अग्रवाल, सुनीता अग्रवाल और दुर्गाशंकर अग्रवाल ने भी लड्डू गोपाल की पूजा अर्चना की.
कल द्वितीय पुष्प के दिन पुरा पंडाल खचाखच भरा हुआ था. सर्वप्रथम आरती हुई. अनिल अग्रवाल, सुनीता अग्रवाल, दुर्गाशंकर अग्रवाल, सोनाली अग्रवाल, डॉ. संजय अग्रवाल, सुरभि अग्रवाल ने आरती प्रस्तुत की और आरती में उपस्थित सभी श्रद्धालुओं ने आरती में सहभाग लिया. हम परतवाड़ा के लोग भाग्यशाली है कि, हमें यहां मधुर वाणी की धनी जयाकिशोरीजी को सुनने का मौका मिला है. यह कहना रहा है सूत्र संचालक सुरभि अग्रवाल का. इस समय सोनाली दुर्गाशंकर अग्रवाल द्वारा रचित भजन गंगा का विमोचन जयाकिशोरीजी के शुभ हाथों किया गया. ध्यान घनश्याम का दीवाना बना देता है, इस पंक्ति के साथ सुरभि सभी को सोनाली का परिचय कराती है. पुस्तक का विमोचन होने के बाद सोनाली अग्रवाल ने खुद श्रोताओं से रूबरू होते हुए कहा कि, कृष्ण भक्ति से पहले हम राधाजी की भक्ति क्यों करते है, वे इस पर मैं चार लाइन सुनना चाहती है कि, राधा जब सोलह श्रृंगार करे, तो हरि कैसा यह दरबार है, बडा पावन दरबार है. सुरभि अग्रवाल के आग्रह पर सोनाली ने अपने भजन संग्रह से उक्त पंक्तियां उद्बोधित कर दिखाई. ये बड़ा अदभुत नजारा है, राधा-रानी के चरणों मे बहे अमृत की धारा है. इस समय पुष्पाजी अग्रवाल (अकोला) और कागलीवाल परिवार द्वारा गौर भेंट की गई. वहीं निमेशजी ठक्कर (अकोला), पिंटू भैया (इगतपुरी), लखन एवं सुनीता अग्रवाल (आर्वी), गोपाल अग्रवाल मामा एवं मामीजी (अकोला), डॉ नितेशजी एवं डॉ शारदा अग्रवाल (खामगांव), योगेश अग्रवाल, त्रिवेणी विश्वकर्मा आदि मान्यवरों द्वारा जयाकिशोरीजी का शुभाशीष लिया गया.
ठीक 4.30 बजे जयाजी ने अपने उद्बोधन को प्रारंभ किया. खाटू नरेश की जय, सावरिया सेठ की जय, भक्तवत्सल भगवान की जय, बालाजी महाराज की जय, राणी सती की जय, बाबा भूतनाथ की जय, भक्त नरसी मेहता की जय की उद्घोषणा के बाद नमो ब्रम्हण देवाय, आनंद धन, गोविंद मन, जै जै श्री राधे का उद्घोष करने के साथ ही उन्होंने कथा आरंभ करते हुए कहा कि, नरसीजी के पास वो पत्रिका पहुंचने को तैयार है. जोशीजी जूनागढ़ पहुंचकर पूछ रहे है कि, नरसी सेठजी का घर कहां है. जवाब मिलता है कि, जहां से राधेश्याम और राधेकृष्ण की आवाज आ रही, वो ही नरसी का घर है. 12 पीढ़ी बैठकर खावे और हवेली का वरदान मिला था. नरसीजी की हवेली देखकर जोशीजी हक्के-बक्के रह गए. वो भीतर जाते तो अंदर सब साधु और सूर्या लोग बैठे हुए थे. नरसीजी का कहना था कि हमारे पास देने को कुछ नही है, तो कम से कम हंसिये. सभी साधु हंसने लगे. जोशीजी की धोती उन्हीं के पैर में अटक गई, वो साधुओं के बीच गिर पड़े. जोशीजी कहते है, मैं दंडवत नही कर रहा हूँ, मैं कुंकु पत्रिका लेकर आया हूँ, ये रखो और मुझे भूख लगी है, कुछ खाने को दो. नरसीजी कहते है कि, लेनदेन को तो सिर्फ रामजी का नाम है. जोशीजी कहते है कि मुझे जानबूझकर जूनागढ़ भेजा गया. नरसीजी कहते है कि, मैंने तो रिश्ता जरा नहीं निभाया, लेकिन उन्होंने आज मुझे शादी के समय याद तो किया. पत्नी नरसीजी से कहती है कि, घर में दाने नहीं और ये मायरा भरने जा रहे है. भक्ति का अर्थ यह नहीं होता कि, हम कर्म करना छोड़ दे, कर्म करना ही पड़ेंगा. नरसीजी तो मोढिया (साधु) है, कहां से मायरा भरेंगे. युवक मंदिर जाता कहता है, हे भगवान मेरी लॉटरी लगा दो, भगवान कहते है पहले जाकर लॉटरी तो खरीद यानी कर्म तो करना ही पड़ेंगा. नरसीजी के पास मायरा में देने को कुछ नही है. जो वो साथ लेकर जा रहे है, वो कोई नहीं लेकर जाता है. नरसीजी दुसरों से मदद लेने की भी इच्छा पाले है. उनके भाईयों के पास बैलगाड़ी है, वो मांगते है. भाई उन्हें टूटी गाड़ी दे देते है. नरसीजी उनसे बैल मांगते हैं, गाड़ी में जोतने के लिए. नरसीजी बैल लेकर आते है. नरसीजी भाई लोग से मायरा लेकर साथ में चलने को कहते, किंतु भाई लोग इन्कार करते हुए व्यंग कसते हैं कि साधु लोगो को लेकर जाओ. नरसीजी भाई लोगों से कपड़े व अन्य मदद मांगते. भाई लोग जवाब देते हैं कि हमारे भरोसे पैदा किये थे क्या, हमारे पास कुछ नहीं है. नरसीजी कहते है, छोड़ो भाई, मुझे किसी की जरूरत नहीं है, इसे कहते हैं भरोसा. ये भरोसा होना चाहिए. हम भी दूसरों को मांगते है, उस ऊपरवाले से मांगिये. जहां पर कृपा राम की होई. यदि आप उसे पसंद है, तो फिर किसी से कुछ मांगने की जरूरत नहीं है. यदि आप सही रास्ते पर चलते हैं, तो जरूरी नहीं कि सभी आपको सही कहे, लेकिन विश्वास होना चाहिए भगवान पर. भगवान परीक्षा लेते हैं, एक तरफ कुआं दूसरी तरफ खाई. परीक्षा की स्थिति में आप भगवान पर कितना भरोसा करते है. भरोसे पर एक कहानी सुनाती हूँ. सच्ची घटना है दिल्ली की. कलयुग में केवल नाम आघारा, नाम स्मरण करना चाहिए. एक छोटी सी बच्ची, ठाकुरजी की भक्त, बड़ी हुई तो भी वृंदावन जाना नहीं छोड़ा, शादी हुई तो भी वृंदावन से जुड़ी रही, डोकरी हुई तो भी लड्डू गोपाल की सेवा ही उसका नित्यकर्म था. भजन-श्याम के प्रेम में पागल भगत के वश में है भगवान. तो महाराज, यहां पर नरसीजी कहते है, मुझे किसी की जरूरत नहीं, मैं मायरा भर लूंगा. कैसे भरूंगा. मेरे पास तो तुम्बा-तुम्बी (कमंडल) बहुत है. तुम्बा-तुम्बी लेकर जाएंगे. नरसीजी गावं में चिल्लाते हुए घूमते है. कौन चलेगा मायरा भरने. वो सूर्याओ (अंधे साधु) के साथ मायरा भरने निकल पड़ते है. पत्नी कहती है कि, तुम्हारे पास पहले तो कुछ नहीं, फिर भी इन सूर्याओ को लेकर जा रहे हो. गाँववाले कहते है कि मायरा में मर्दन ताल क्या काम. बैल बैठे जा रहे, वो बूढ़े हो गए, गाड़ी का पहिया टूट गए, सारे तुम्बा-तुम्बी साधुओं, सूर्याओ पर गिर गए. चोट लग गई. साधु पूछते है, नरसीजी ये क्या है, नरसीजी कहते है, यही मायरा है. शाम हो जाती. नरसीजी कहते हैं, सावंरे रात हो रही, कुछ दिख नहीं रहा. नरसीजी की पहली पत्नी का देहांत होने पर उन्होंने गांव जीमन कराया था. नरसीजी ने पहले ही कह दिया था कि, मेरी स्थिति नहीं है, मैं तो सिर्फ ब्राह्मण भोज कराऊंगा. गावं के कुछ प्रतिष्ठित लोग यानी वो लोग जो कुछ करते नहीं, लेकिन दुसरों के काम मे नुक्स जरूर निकालते रहते है. प्रतिष्ठित लोग नरसी को कहते है, तो नरसी जवाब देते कि, मेरी आर्थिक स्थिति नहीं है. प्रतिष्ठित लोग जिद पर अड़ जाते. कल पूरा गांव, हर घर आपके यहां जीमन को आएंगे. नरसीजी भगवान को मना रहे कि, भगवान कुछ तो करो, नरसीजी भगवान को मनाए जा रहे. इतने में दो लोग आते हैं, वो पूछते है कि, कोई व्यक्ति है, जो हमें हुंडी लेकर हमारा हवाला कर दे. हमारे पास 700 रुपये है. यहां कोई सेठ है, जो हमें द्वारका के लिए हुंडी लिख दे. लोग हंसी भरे स्वर में नरसीजी का नाम सुझाते है. दोनों सेठ नरसीजी के पास जाते और कहते है कि हुंडी लिखने का आग्रह करते है. सेठ नरसीजी के पैर पकड़ते है. नरसीजी हुंडी लिखकर देते है कि, सावलिया सेठ, सांवलसा सेठ रकम दे देना. दोनों सेठ द्वारका में सांवलसा सेठ को ढूंढने लगते है. नरसीजी मिले 700 रुपये से गांव जीमन करा देते है. दोनों सेठ को द्वारका में एक नया मुनीम मिलता है, मुनीम कहता है, आपको नरसीजी ने भेजा है क्या, आपको मैं अभी 700 रुपये देता है. मुनीम के रूप में भगवान कहते है, कि हम सभी लोग नरसीजी के लिए काम करते है. जूनागढ़ में दोनों सेठ नरसीजी के पैर पकड़ते है. सेठ नरसीजी से कहते है कि, तुम्हारा मुनीम सांवलसा भी कमाल का है. नरसीजी की आंखों से आंसू बहते है, वो कहते है आप लोग नसीबवाले है, आपको दर्शन हो गए. भक्ति मैं कर रहा हु और दर्शन आपको हो गए. आपके दोस्त कौन है, इस पर से आपके व्यक्तिव का पत्ता चलता है. नरसीजी के दोस्त तो स्वयं कृष्ण है. नरसीजी की गाड़ी टूटी थी, उन्होंने भगवान को याद किया और मदद को भगवान आ गए. हम सभी की गाड़ी टूटी है, नरसीजी भगवान को याद करते है. केदार का राग गाये और भगवान न आये, ये तो हो नही सकता. भगवान विश्वकर्मा के पास जाते हैं और नरसी की बैलगाड़ी दुरुस्त करने के लिए औजार मांगते है. भगवान नरसी की गाड़ी के पीछे-पीछे चल पड़ते है. सूरदास नरसी से कहते है कि कोई तो भी पीछे आ रहा है. नरसी कहते है कि तुम्हें कैसे मालूम, तुम तो अंधे हो, सूरदास कहते है कि, दिल की आंख अच्छी है. भगवान पहुंच जाते गाड़ी दुरुस्त करने के लिए. भगवान नरसी के साथ जाने की जिद्द करने लगते है. नरसी कहते है, क्यो चलना चाहते हो. भगवान कहते मैं नरसी मेहता का मायरा देखना चाहता हूं. नरसी कहते है, मैं ही नरसी हूँ, ये मायरा गाड़ी में है, देख लो, साथ में चलने की जरूरत नहीं. भगवान कहते है, मैं तो साथ चलूंगा, वहां मायरे की थाली में कुछ नेग मैं भी डालूंगा. गाड़ी में बिठा ले रे बाबा, जानो है नगर अंजार. नरसी कहते है ठीक है चलो लेकिन गाड़ी की हालत खराब है. भगवान हाथ लगाते और गाड़ी दुरुस्त हो जाती. भगवान कहते है, अब गाड़ी भी में ही चलाऊंगा. भगवान गाड़ी दुरुस्ती की मजदूरी मांगते है. नरसी घबरा जाते. मेरे पास कुछ नही है, भगवान मजदूरी में नरसी को भजन गाने कहते है. नरसी गावे, सुने खुद श्यामधणी. सूरज निकलते ही सब अंजार नगर पहुंच गए. भगवान कहते है अब मुझे आज्ञा दो. नरसी कहते है, तुम कहां जा रहे हो, नेग कौन डालेगा. भगवान कहते अभी मुझे जाने दो, मैं मायरे के समय बराबर आ जाऊंगा. जोशीजी बधाई मांगने सेठजी के पास जाते है. मायरा लेकर नरसी आ गए, बधाई दो. अब जोशीजी बधाई मांगते, श्रीरंग कहते काहे की बधाई. श्रीरंग को आश्चर्य होता. वो चांदी का एक रुपया का चांदी का सिक्का बधाई में देते है. जोशी बताते है कि नरसी एक गाड़ी भरकर मायरा लेकर आये है. श्रीरंग यह नरसी के रुकने का इंतजाम गांव के बाहर अपनी एक टूटी-फूटी दुकान में करते है. दुकान में बरसों से झाड़ू भी नहीं लगी है. न पीने को पानी है और न ओढ़ने को चादर है. नरसी अब भगवान को मना रहे कि, मैं तो आपके भरोसे आ गया हूँ. देखिए क्या करते है भगवान है, मायरा भगवान ने भरा. लेकिन कथा नरसी की और नानीबाई के नाम से है. भगवान का कहीं नाम नहीं है. भगवान ऐसे ही होते है. भगवान अपने भक्तों के नाम को आगे बढ़ाते है.
जया किशोरीजी कहती है कि, आज का यह भजन खासकर के अनिल अग्रवाल परिवार में उनकी माताजी शकुंतलादेवी के लिए काफी सार्थक कहा जा सकता है. आज अपनी स्वर्णिम जन्मतिथि पर वो अपने ही शहर में चारो धाम समान आनंद ले पा रही, इससे ज्यादा प्रभु की कृपा और क्या होंगी ठाकुरजी की. आज आप इतनी बेहतरीन ढंग से मां का जन्मदिन मना रहे है. तेरी प्रेरणा से ही ये सब कमाल हो रहा है, करते हो तुम कन्हैया, मेरा नाम हो रहा है.
इस समय मीठे रस से भरियो रे राधा रानी लागे, महारानी लागे, म्हाने खारो-खारो जमुनाजी को पानी लागे, काली कमली वाला मेरा यार हैं, मेरे मन का मोहन तू दिलदार है, तू मेरा यार है, मेरा दिलदार है, लगन तुमसे लगा बैठे, जो होगा देखा जायेगा, तुम्हे अपना बना बैठे, जो होंगा देखा जायेगा, एक नजर कृपा की कर दो लाडली श्री राधे, कृष्ण गोविंद गोविंद गोपाल नंदलाल, ऐ गोपाल नंदलाल, गोपाल नंदलाल, मेरी लगी श्याम संग प्रीत ये दुनिया क्या जाने, क्या जाने कोई क्या जाने, मुझे मिल गया मन का प्रीत ये दुनिया क्या जाने. जैसे अलग-अलग दस भजनों की धुन पर करीब 15 मिनट तक धमाल पर सभी स्त्री-पुरुष थिरकते रहे. जिसके पश्चात ओम जय जगदीश हरे की आरती के साथ के द्वितीय पुष्प का समापन हुआ. कथा के दूसरे दिन दस हजार से भी अधिक भाविक श्रध्दालु महिलाओं व पुरुषों ने आध्यात्मिक कुंभ में डुबकी लगाई.