विघ्नहर्ता की मूर्ति निर्माण में विवाद न्यायालय में पहुंचा
मुंबई उच्च न्ययालय का 9 जून को निर्णय

* व्यापारियों की बुकिंग रूकी
*मूर्तिकार भी संभ्रम में
अमरावती/ दि. 30– केन्द्रीय प्रदूषण मंडल ने जल प्रदूषण के कारण को लेकर प्लॉस्टर ऑफ पैरिस की मूर्तियों पर पाबंदी लगाने के कारण यह विवाद न्यायालय पहुंच गया है. अब गणेशोत्सव को दो माह शेष है और इस मुद्दे पर आगामी 9 जून को मुंबई उच्च न्यायालय में निर्णय होने की जानकारी है. जिसके कारण एक ओर तो मूर्तिकारों में संभ्रम है. वही दूसरी ओर व्यापारी वर्ग ने भी अभी बुकिंग शुरू नहीं की गई है. इस बात का परिणाम व्यवसाय पर होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता.
महाराष्ट्र में गणेशोत्सव बडी धूमधाम के साथ मनाया जाता है. घर- घर में बाप्पा को विराजमान करके उनकी पूजा अर्चना की जाती है. जिले में 5 हजार मूर्तिकार है तथा एक से डेढ लाख कामगारों को प्रत्यक्ष – अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिलता है. पिछले वर्ष अमरावती महानगर पालिका ने अगले वर्ष प्लॉस्टर ऑफ पैरिस की मूर्तिया न बनाए. ऐसे आदेश जारी किए. राज्य शासन के पत्र के अनुसार यह आदेश निकाला गया. पीओपी मूर्ति पर बंदी लगाकर पर्यावरण की सुरक्षा करने का निर्णय शासन की समिति द्बारा लिए जाने से यह विवाद अब न्यायालय में पहुंच गया है. अमरावती जिले में लगभग 1 से डेढ लाख घरेलू गणेश जी की स्थापना व लगभग 400 सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडल बडी गणेश मूर्तियों की स्थापना करते हैं. प्रतिवर्ष गणेशोत्सव समाप्त होने के बाद तत्काल मूर्तिकाम प्रारंभ होता है. अब आगामी माह में 9 जून को इस संबंध में सुनवाई होगी. जून मेंं बारिश में यह निर्णय होने पर दो माह में बडी मूर्तिया कैसे तैयार की जाए, यह मूर्तिकारों के समक्ष एक बडा प्रश्न है. पीओपी की मूर्ति विश्वभर में जाती है. विश्व में कहीं पर भी पीओपी की मूर्ति पर बंदी नहीं है. फिर महाराष्ट्र में ही क्यों? ऐसा मूर्तिकारों का सवाल है. मूर्ति की उंचाई अधिक न हो, इस निर्णय पर भी गणेश मंडलों का विरोध है. मूर्ति कितनी उंची इसका निर्णय लेने का अधिकार प्रशासन को है. राज्य में 95 प्रतिशत गणेश मूर्तियां पीओपी से बनाई जाती है. पीओपी यदि घातक है, तो यह संपूर्ण रूप से बंद क्यों नहीं होता, केवल गणेश मूर्ति, दुर्गा देवियों की मूर्तियों पर ही बंदी क्यों, कृत्रिम तालाबों की व्यवस्था कर उपाए किए जाए, ऐसा शहर के कुछ मंडलों का कहना है.
* से 5 राज्य, 4 देशों से जाती हैं मूर्तियां
अमरावती जिला गणपति मूर्तियों के निर्माण करने में महाराष्ट्र में नंबर दो पर आता है ऐसी जानकारी है. जिले से केवल महाराष्ट्र में ही नहीं बल्कि 5 भिन्न- भिन्न राज्यों में अब चार देशों में गणेश मूर्तिया भेजी जाती है मूर्तिकारों में संभ्रम होने के कारण व्यापारियों ने अभी तक बुकिंग शुरू नहीं की है.
गणेशोत्सव के समाप्त होते ही एक माह में दूसरे वर्ष के लिए गणेशजी की मूर्तिया बनाने का काम शुरू हो जाता है. इस वर्ष मूर्तिकारों में संभ्रम होने के कारण व्यापारियों ने अभी तक बुकिंग शुरू नहीं की है.
गणेशोत्सव के समाप्त होते ही एक माह से दूसरे वर्ष के लिए गणेश जी की मूर्तिया बनाने का काम शुरू हो जाता है. इस वर्ष मूर्तिकार संभ्रम में होने के कारण गणपति की मूर्तिया बनाने का काम विलंब से शुरू हुआ. प्रति वर्ष जिले में 2 से 3 लाख गणेश जी की मूर्तिया बनाई जाती है. इस वर्ष गणेाशोत्सव को केवल दो माह बाकी है. ऐसे में 50 हजार मूर्तिया बनाने की जानकारी मूर्तिकार संगठन की ओर से दी गई है.
मिट्टी की मूर्तिया बनाने में समय लगता है. किंतु ये मूर्तियां बाहर गांव पहुंच नहीं सकती. क्योंकि उनके खंडित होने का सर्वाधिक भय रहता है. मिट्टी की मूर्तिया महंगी भी होती है. जिसके कारण मूर्तियां महंगी हो जायेगी. प्लॉस्टर ऑफ पैरिस के कारण प्रदूषण नहीं होता. यह बात शासन को प्रदूषण मंडल को समझना चाहिए. इसके अलावा शासन ने यदि मूर्तिया विघटन के लिए स्वतंत्र व्यवस्था की तो निश्चित ही प्लॉस्टर ऑफ पैरिस की मूर्तियां बनाना भी संभव होगा.
बंटी पेंढारकर, कुंभारवाडा
प्लास्टर ऑफ पैरिस राजस्थान की मिट्टी है. केवल रंग का फर्क है. प्लास्टर ऑफ पैरिस भी पानी में घुलता है. केवल उसमें समय लगता है. तालाबों की मछलिया जीवित ही रहती है. वे गणेश मूर्तियों के विसर्जन के कारण वे मरती नहीं है. वहीं तालाब के प्रदूषण के कारण वे मरती है. मिट्टी की मूर्तिया कम समय में बनाना संभव नहीं होता. प्लास्टर ऑफ पैरिस की जहां 100 मूर्तियां बनाई जाती है. वहां मिट्टी की केवल 20 मूर्तियां ही बनाना संभव है.