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कैबिनेट विस्तार में जिला रह गया अनाथ

महायुति के 7 में से एक भी विधायक को नहीं मिला कैबिनेट में स्थान

* अगले ढाई वर्ष तक अब मंत्री पद मिलने की कोई उम्मीद भी नहीं
* बाहरी पालकमंत्री के घरों से चलेगा जिले का काम
* अनदेखी के चलते सभी भौचक, विधायकों में भी नाराजगी
अमरावती/दि.16 – गत रोज नागपुर स्थित राज भवन में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्ववाली महायुति सरकार के मंत्रिमंडल का पहला विस्तार हुआ. जिसकी विगत करीब 10 दिनों से बेहद बेसब्री के साथ प्रतीक्षा की जा रही थी. इस कैबिनेट विस्तार में 33 मंत्रियों व राज्य मंत्रियों को पद व गोपनीयता की शपथ दिलाई गई. लेकिन हैरत वाली बात यह रही कि, इन 39 मंत्री पदों में से एक भी पद संभागीय मुख्यालय रहने वाले और विदर्भ क्षेत्र की उपराजधानी का दर्जा प्राप्त अमरावती जिले के हिस्से में नहीं आया है. जबकि अमरावती जिले की 8 में से 7 सीटों पर महायुति को शानदार जीत व सफलता मिली थी. ऐसे में उम्मीद जतायी जा रही थी कि, अमरावती जिले के हिस्से में एक से अधिक मंत्री व राज्यमंत्री पद आएंगे तथा वरिष्ठता के आधार पर अमरावती जिले के विधायकों में से ही किसी एक को जिला पालकमंत्री का पद मिलेगा, लेकिन आश्चर्यजनक तरीके से ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. वहीं अब यह भी स्पष्ट हो गया है कि, राज्य मंत्रिमंडल का अगला विस्तार ढाई वर्ष बाद होगा, यानि अगले ढाई वर्षों तक अमरावती जिले के हिस्से में कोई मंत्री पद नहीं आएगा और इन ढाई वर्षों के दौरान किसी बाहरी व्यक्ति के पास जिला पालकमंत्री का पद रहेगा. जिसे लेकर अमरावती के अब तक के अनुभव काफी बुरे रहे है. ऐसे में कहा जा सकता है कि, भाजपा और महायुति की झोली में भर-भरकर वोट और सीटे देने वाले अमरावती जिले को कैबिनेट विस्तार के समय फडणवीस सरकार द्वारा भुला दिया गया और अमरावती जिले को लगभग अनाथ ही छोड दिया गया. जिससे मंत्री पद मिलने की आस में रहने वाले विधायकों सहित आम अमरावतीवासियों में काफी हद तक रोष व नाराजगी की लहर है.
बता दें कि, अमरावती जिले की 8 विधानसभा सीटों में से 5 सीटों पर भाजपा प्रत्याशियों ने चुनाव लडा था और उन पांचों ही सीटों पर भाजपा के प्रत्याशी विजयी हुए थे. जिनमें तिवसा से राजेश वानखडे, मोर्शी-वरुड से चंदू उर्फ उमेश यावलकर, अचलपुर से प्रवीण तायडे, मेलघाट से केवलराम काले, धामणगांव रेल्वे से प्रताप अडसड का समावेश था. इनमें से जहां प्रताप अडसड लगातार दूसरी बार भाजपा की टिकट पर निर्वाचित हुए है. वहीं कांग्रेस से भाजपा में आये केवलराम काले ने भाजपा प्रत्याशी के तौर पर मेलघाट निर्वाचन क्षेत्र ेस 1 लाख से अधिक वोटों की लीड के साथ जीत हासिल की थी. ऐसे में भाजपा के कोटे से इन दोनों विधायकों का मंत्री पद लगभग तय माना जा रहा था. चर्चा यहां तक थी कि, केवलराम काले के तौर पर भाजपा द्वारा किसी आदिवासी व्यक्ति को मंत्री बनाया जा सकता है. साथ ही प्रताप अडसड को राज्यमंत्री बनाते हुए वर्धा जिले का पालकमंत्री पद सौंपा जा सकता है. क्योंकि धामणगांव रेल्वे निर्वाचन क्षेत्र का समावेश वर्धा संसदीय क्षेत्र में होता है और विगत लोकसभा चुनाव में पार्टी को वर्धा संसदीय क्षेत्र में हार का सामना करना पडा था.
इसके अलावा जिले की 8 में से शेष 3 सीटों पर महायुति के घटकदलों के प्रत्याशियों द्वारा चुनाव लडा गया था. जिसमें से अमरावती निर्वाचन क्षेत्र से अजीत पवार गुट वाली राकांपा की सुलभा खोडके तथा बडनेरा निर्वाचन क्षेत्र से युवा स्वाभिमान पार्टी के रवि राणा विजयी हुए थे. वहीं दर्यापुर निर्वाचन क्षेत्र से शिंदे गुट के अभिजीत अडसूल को हार का सामना करना पडा था. खास बात यह रही कि, अमरावती निर्वाचन क्षेत्र से लगातार दूसरी बार विधायक निर्वाचित हुई सुलभा खोडके तीसरी बार विधानसभा पहुंची है और उन्हें पांच बार विधानसभा चुनाव लडने का अनुभव है. इसी तरह बडनेरा निर्वाचन क्षेत्र के विधायक रवि राणा लगातार चौथी बार बडनेरा से विधायक होकर विधानसभा पहुंचे है. यानि दोनों ही विधायकों का महायुति के तहत मंत्री पद पर दावा काफी मजबूत माना जा रहा था. इसमें भी जहां विधायक रवि राणा को मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का बेहद करीबी माना जाता है. वहीं विधायक सुलभा खोडके व उनके पति संजय खोडके की राज्य के उपमुख्यमंत्री व राकांपा नेता अजीत पवार के साथ नजदीकी जगजाहीर है. ऐसे में खोडके व राणा समर्थकों द्वारा अपने-अपने नेताओं को कैबिनेट मंत्री व पालकमंत्री का पद मिलना लगभग तय ही माना जा रहा था. जिसे ेलेकर शहर में पोस्टरवार भी शुरु हो गया था. साथ ही साथ गत रोज सुबह दोनों गुटों के कई समर्थक पूरी तैयारी के साथ नागपुर भी पहुंच गये थे. जिनकी सारी तैयारियां धरी के धरी रह गई और उन्हें दोपहर बाद नागपुर से मायुस होकर अमरावती वापिस लौटना पडा.
ऐसे में हर कोई इस सवाल से भौचक है कि, आखिर अमरावती में ननीहाल रहने वाले और अमरावती के प्रति हमेशा ही अपना विशेष अनुग्रह दर्शाने वाले राज्य के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस द्वारा अपने कैबिनेट विस्तार के समय भाजपा व महायुति को जबर्दस्त सफलता दिलवाने वाले अमरावती जिले की इस तरह अनदेखी क्यों की गई और पश्चिम विदर्भ का संभागीय मुख्यालय रहने वाले अमरावती जिले को इस तरह से रुसवा करते हुए अनाथ क्यों छोडा गया. विशेष उल्लेखनीय है कि, जहां एक ओर पश्चिम विदर्भ क्षेत्र के यवतमाल जिले के हिस्से में दो-दो मंत्री पद आये है. वहीं अमरावती जिले को एक अदद राज्यमंत्री का पद तक नहीं दिया गया है, जो अपने आप में काफी हैरत वाली बात है. साथ ही साथ हद तो यह है कि, कैबिनेट विस्तार के साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया है कि, अब अगले ढाई वर्ष तक कैबिनेट का कोई विस्तार नहीं होगा. जिसका सीधा मतलब है कि, अगले ढाई वर्ष तक अमरावती जिला मंत्री विहिन रहेगा. साथ ही जिले का पालकमंत्री पद भी किसी बाहरी व्यक्ति को सौंपा जाएगा. जबकि बाहरी व्यक्ति के पास पालकमंत्री पद का जिम्मा रहने के नतीजे विगत ढाई वर्ष के दौरान अमरावती जिला बखूबी देख चुका है.

* राणा दूसरी बार मंत्री बनने से चुके
विशेष उल्लेखनीय है कि, चौथी बार विधायक निर्वाचित हुए रवि राणा इस समय जिले के सबसे वरिष्ठ विधायक है. महायुति में शामिल रहने वाले विधायक राणा की मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के साथ नजदीकी को ध्यान में रखते हुए उन्हें मंत्री का प्रबल दावेदार माना जा रहा था, लेकिन फडणवीस कैबिनेट के पहले विस्तार में रवि राणा को शामिल नहीं किया गया. इसके साथ ही विधायक रवि राणा दूसरी बार मंत्री बनने से चुक गये.
बता दें कि, पांच वर्ष पहले हुए विधानसभा चुनाव पश्चात बडनेरा के निर्दलीय विधायक रवि राणा ने भाजपा एवं उस समय मुख्यमंत्री पद के दावेदार रहने वाले देवेंद्र फडणवीस का समर्थन किया था. हालांकि उस समय हुए राजनीतिक उलटफेर के चलते भाजपा की सरकार नहीं बन पायी थी और उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस व राकांपा के साथ हाथ मिलाते हुए महाविकास आघाडी की सरकार बना ली. लेकिन जून 2022 में शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे द्वारा की गई बगावत के बाद महाविकास आघाडी की सरकार गिर गई थी तथा शिंदे गुट वाली शिवसेना एवं भाजपा ने साथ मिलकर सरकार बनाई थी. उस समय भी विधायक रवि राणा को मंत्रिमंडल में शामिल किये जाने की जबर्दस्त चर्चा चल रही थी. हालांकि उस वक्त मविआ सरकार में मंत्री रह चुके अचलपुर के विधायक बच्चू कडू भी शिंदे गुट के समर्थन में आ गये थे और बच्चू कडू भी मंत्री पद की रेस में थे. साथ ही साथ दोनों विधायकों के बीच जमकर मौखिक युद्ध भी चल रहा था और दोनों में से एक के भी हिस्से में मंत्री पद नहीं आया था. वहीं अब विधायक बच्चू कडू चुनाव हार गये है और विधायक रवि राणा चौथी बार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे है. ऐसे में मंत्री पद को लेकर विधायक रवि राणा की दावेदारी जमकर मजबूत मानी जा रही थी. लेकिन इस बार भी हैरतअंगेज तरीके से विधायक रवि राणा को मंत्री बनने का मौका नहीं मिला.

* फिर मिलेगा बाहर का पालकमंत्री, अमरावती बनी प्रयोगशाला
ज्ञात रहे कि, विगत ढाई वर्षों से राज्य में महायुति की सरकार चल रही है और इस सरकार में अमरावती जिले को एक भी मंत्री पद नहीं मिला था. जिसके चलते पालकमंत्री का पद भी अन्य जिलों से वास्ता रखने वाले मंत्रियों के हिस्से में सौंपा गया. जिसके तहत शुरुआती दौर में तत्कालीन उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के पास अमरावती के पालकमंत्री पद का जिम्मा था. वहीं कुछ माह बाद पुणे से वास्ता रखने वाले मंत्री चंद्रकांत पाटिल को अमरावती जिले का पालकमंत्री पद दिया गया. लेकिन कुछ सरकारी कार्यक्रमों के अवसरों को छोडकर फडणवीस व चंद्रकांत पाटिल कभी भी अमरावती नहीं आये. जिसका विपरित परिणाम जिले के विकास कामों पर पडा था. वहीं अब एक बार फिर अमरावती जिले के किसी विधायक को मंत्री पद नहीं मिला है और अगले ढाई वर्ष तक कोई मंत्री पद मिलेगा भी नहीं, यह भी तय हो गया है. जिसका सीधा मतलब है कि, अगले ढाई वर्ष तक किसी बाहरी व्यक्ति के पास ही अमरावती जिले का पालकमंत्री पद रहेगा. यानि मौजूदा सत्ताधीशों ने एक तरह से अमरावती जिले को अपनी राजनीतिक प्रयोगशाला बना दिया है.

* खोडके व काले थे मंत्री प के प्रबल दावेदार
– सकारात्मक संदेश देने से चुकी महायुति
उल्लेखनीय है कि, अमरावती जिले की पहचान हमेशा से ही ‘ताईंचा जिल्हा’ के तौर पर रही है और अमरावती की महिला जनप्रतिनिधियों ने विभिन्न स्तर पर अपनी अलग पहचान भी बनाई है. जिसमें से श्रीमती प्रतिभाताई पाटिल ने तो देश की प्रथम महिला राष्ट्रपति बनने का इतिहास तक रचा था. साथ ही इस समय उस विरासत को अमरावती की विधायक सुलभाताई खोडके आगे बढा रही है. जो राजनीति के साथ-साथ सहकारिता एवं सामाजिक कामों में अपनी एक विशिष्ट पहचान रखती है. महिला सशक्तिकरण के लिए जबर्दस्त तरीके से काम करने वाली विधायक सुलभा खोडके विगत 25 वर्षों से अमरावती जिला महिला बैंक की अध्यक्ष भी है और महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक जैसी शिखर संस्था का भी प्रतिनिधित्व करती है. इसके अलावा वे बडे पैमाने पर महिला बचत गुटों का संचालन करते हुए अपने परिवार द्वारा स्थापित खोडके मेमोरियल ट्रस्ट के जरिए विभिन्न सामाजिक कामों में भी सक्रिय रहती है. वर्ष 2004 में बडनेरा निर्वाचन क्षेत्र की विधायक के तौर पर पहली बार विधानसभा पहुंची विधायक सुलभा खोडके ने वर्ष 2019 में अमरावती निर्वाचन क्षेत्र से विधानसभा का चुनाव जीता था. जहां से वे लगातार दूसरी बार वर्ष 2024 के विधानसभा चुनाव में विजयी हुई है. ऐसे मेें माना जा रहा था कि, महिला सशक्तिकरण का सार्थक संदेश देने हेतु महायुति की सरकार द्वारा ‘ताईंचा जिल्हा’ रहने वाले अमरावती जिले की कमान सुलभा खोडके के तौर पर एक महिला के हाथ में दी जा सकती है और सुलभा खोडके को मंत्री बनाते हुए राज्य की ‘लाडली बहनों’ को सार्थक संदेश भी दिया जा सकता है. लेकिन हैरतअंगेज तरीके से ऐसा नहीं हुआ.
इसके अलावा किसी समय कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लडते हुए मेलघाट का गढ भाजपा से छिनने वाले केवलराम काले ने इस बार भाजपा प्रत्याशी के तौर पर मेलघाट से चुनाव लडकर न केवल मेलघाट की सीट भाजपा को वापिस दिलाई, बल्कि 1 लाख से अधिक वोटों की लीड के साथ जीत हासिल करते हुए रिकॉर्ड भी बना डाला. यह लीड जिले के आठों निर्वाचन क्षेत्रों में सबसे अधिक रही. उल्लेखनीय है कि, आदिवासी बहुल एवं पर्वतीय इलाका रहने वाले मेलघाट निर्वाचन क्षेत्र में विगत ढाई दशकों से कुपोषण तथा मातामृत्यु व बालमृत्यु की समस्या बनी हुई है. साथ ही साथ इस क्षेत्र में स्वास्थ्य एवं शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाओं का काफी हद तक आज भी अभाव है. ऐसे में माना जा रहा था कि, मेलघाट निर्वाचन क्षेत्र में 1 लाख से अधिक वोटों की लीड के साथ भाजपा का कमल खिलाने वाले केवलराम काले को महायुति द्वारा मंत्री बनाते हुए आदिवासी समाज को कैबिनेट में प्रतिनिधित्व दिया जा सकता है. लेकिन कल हुए कैबिनेट विस्तार में ऐसा बिल्कुल भी होता दिखाई नहीं दिया. जिसे लेकर आश्चर्य जताया जा रहा है.

* अडसड भी थी मंत्री पद के प्रबल दावेदार
भाजपा सहित संघ परिवार से जुडाव रखने वाले विधायक प्रताप अडसड लगातार दूसरी बार धामणगांव रेल्वे निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव जीते है. विगत चुनाव में जब भाजपा का पूरे जिले में सुपडा साफ हो गया था. तब प्रताप अडसड ही अकेले ऐसे व्यक्ति रहे, जिनकी बदौलत भाजपा को धामणगांव रेल्वे निर्वाचन क्षेत्र में एकमात्र सफलता मिली थी. साथ ही प्रताप अडसड ने लगातार दूसरी बार जीत हासिल करते हुए उस मिथक को तोड दिया है कि, धामणगांव रेल्वे से कोई विधायक दूसरी बार चुनाव नहीं जीत पाता.
खास बात यह भी है कि, विधायक प्रताप अडसड का पूरा परिवार विगत 50 वर्षों से संघ के साथ जुडा हुआ है और उनके पिता व पूर्व विधायक अरुण अडसड जनसंघ के जमाने से पार्टी के साथ जुडे रहने के साथ चुनाव लडते आ रहे है तथा विधानसभा व विधान परिषद के सदस्य भी रह चुके है. ऐसे में प्रताप अडसड को भी इस बार कैबिनेट विस्तार के समय भी मंत्री पद का प्रबल दावेदार माना जा रहा था. चर्चा यहां तक चल रही थी कि, प्रताप अडसड को राज्यमंत्री का पद देने के साथ ही वर्धा जिले का पालकमंत्री पद दिया जा सकता है. लेकिन ऐसी तमाम चर्चाएं धरी की धरी रह गई. क्योंकि गत रोज हुए कैबिनेट विस्तार में जिले के अन्य विधायकों के साथ ही प्रताप अडसड के नाम का भी समावेश दिखाई नहीं दिया.

* उनका नहीं, तो अपना भी नहीं वाली नीति का जिले को लगा फटका
अंदरखाने से मिल रही खबरों के मुताबिक महायुति में शामिल घटकदल के विधायक को मंत्री पद नहीं देने के चक्कर में गत रोज भाजपा ने अमरावती जिले की झोली को खाली रखा है तथा अमरावती जिले से वास्ता रखने वाले अपने भी किसी विधायक को मंत्री पद नहीं दिया है. जबकि भाजपा के पास अमरावती जिले में कुल 5 विधायक है. जिसमें से कम से कम दो विधायकों को मंत्री पद का प्रबल दावेदार माना जा रहा था. साथ ही महायुति में शामिल घटकदलों के दो विधायकों को भी मंत्री पद की रेस में शामिल देखा जा रहा था. यानि मुकाबला लगभग बराबरी वाला था. जिसके चलते भाजपा ने अमरावती जिले में मंत्री पद की मैच को एक तरह से ‘टाय’ कर दिया. जिसके चलते अमरावती जिले के किसी विधायक के हिस्से में मंत्री पद नहीं आया.

* फोन की घंटी पर लगा रहा हर किसी का ध्यान
– एक को भी नहीं आया फोन, पूरा दिन बीत गया इंतजार में
बता दें कि, जिन विधायकों का मंत्रिमंडल मेें शमावेश किया जाना था, उन्हें खुद मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की ओर से कैबिनेट विस्तार से 12-15 घंटे पहले फोन आने की बात कही गई थी और रविवार की सुबह से कई विधायकों को फडणवीस सहित महायुति के नेताओं द्वारा फोन किये जाने की खबरे भी मीडिया के जरिए प्रसारित होनी शुरु हो गई थी. ऐसे में अमरावती जिले से वास्ता रखने वाले सातों विधायकों व उनके समर्थकों का ध्यान भी मोबाइल फोन की घंटी बजने पर टिक गया था तथा मोबाइल पर किसी का भी फोन आने पर ‘कही यह वो तो नहीं’ वाली स्थिति बन जाया करती थी. खास बात यह भी थी कि, खुद को मंत्री पद मिलने को लेकर जबर्दस्त आश्वस्त रहने वाले विधायक रवि राणा को अपने कई समर्थकों के साथ कल सुबह से ही नागपुर में मौजूद थे. लेकिन शपथविधि समारोह का समय होने तक अमरावती जिले से वास्ता रखने वाले भाजपा व महायुति के एक भी विधायक को मंत्री पद की शपथ हेतु कोई फोन नहीं आया. जिससे जिले के महायुति विधायकों व उनके समर्थकों में शाम होते-होते काफी हद तक निराशा व्याप्त हो गई.

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