अमरावतीमहाराष्ट्र

दान देने वाले का हाथ सदैव ऊपर रहता है

चालीहा महोत्सव में संत डॉ.संतोष महाराज का कथन

अमरावती/दि.1-सिंधु नगर स्थित पूज्य शिवधारा आश्रम में शिवधारा झूलेलाल चालीहा महोत्सव चल रहा है. महोत्सव के आज 17 दिन पर परम पूज्य संत श्री डॉ. संतोष देव जी महाराज ने अपनी मधुर वाणी में फरमाया, कि हमारे सनातन धर्म में जितना पाठ पूजा व्रत नियम तीर्थ को महत्व है,उतना ही महत्व दान को भी है. श्रीमद् भागवत महापुराण के आधार पर देखें तो सतयुग से लेकर एक एक धर्म रुपी बैल का एक-एक पैर कम होता जाता है और कलयुग में धर्म का आधार (पैर)दान ही माना गया है. सिख समाज में भी गुरु गोविंद सिंह महाराज जी की आज्ञा के अनुसार दसवंत निकलने का नियम है और वैसे भी धर्म, सेवा परोपकार के कार्य होंगे. यह शिवालय,देवालय, वृद्ध आश्रम,अनाथ आश्रम, गुरुकुल, धार्मिक हॉस्पिटल आदि भी तो यह धर्म के धन से ही तो संचालित होंगे. इससे देने वाले का पुण्य बडता है, दुख दूर होते हैं, सुख में बढ़ोतरी होती है और मन की शांति मिलती है और लेने वाले के भी रुका हुआ कार्य सिद्ध होता जाता है.
संसार एक इकोसिस्टम से चल रहा है, एक दूसरे को अपनी क्षमताओं-कलाओं की सेवा देने लेने से व्यवस्था चलती है. इसीलिए हमारे धर्म में चार वर्ण का नियम बनाया गया है. उदाहरण पहला जरासंध के कारण भगवान श्री कृष्ण ने ब्रजमंडल और गोपियों को छोड़ा था, एक कारण जरासंध था,उस में एक गुण था वह दान बहुत करता था. उदाहरण दूसरा सतयुग में राजा हरिश्चंद्र ने अपने गुरु विश्वामित्र जी को राज्य,परिवार तक दान में दे दिया था और जिसकी महिमा आज भी गाई जा रही है. उदाहरण तीसरा जब राजा दशरथ के चारों बेटों का विवाह हुआ, जो दुनिया का प्रथम सामूहिक विवाह भी माना जाता है, जब विदाई का समय आया तो राजा दशरथ ने राजा जनक जी से विदाई की अनुमति मांगी, तब राजा जनक जी ने राजा दशरथ जी का आभार व्यक्त किया. तब राजा दशरथ ने कहा काहे का धन्यवाद, तब राजा जनक ने कहा हमारी बच्चियों आपने स्वीकारी हैं. आपके चारों बेटों श्री राम लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न के साथ विवाह हुआ है. इसीलिए तब राजा दशरथ जीने कहा आपने कन्यादान किया है, हमने लिया है दान करने वाले का हाथ सदैव ऊपर रहता है और लेने वाले का हाथ सदैव नीचे रहता है’. इसीलिए हम लड़के वाले आप लड़की वालों का आभार व्यक्त करते हैं. इन सभी उदाहरणों से हमें दान का महत्व सीख रहे हैं और कभी भी दूल्हे वालों को दुल्हन के माता-पिता को कष्ट नहीं पहुंचना चाहिए, क्योंकि उन्होंने कन्यादान देकर लड़के वालों पर एहसान किया है. इसीलिए कभी भी दहेज आदि को लेकर उनको कष्ट नहीं देना चाहिए. 1008 सतगुरु स्वामी शिवभजन जी महाराज कहा करते थे, बहुरानी जब मायके जाए, उनको कहना चाहिए, अपने मां-बाप को कहाना हमें उपहार शगुन में कोई वस्तु या पैसे ना दें, आशीर्वाद करें कि जीवन में किसी के आगे हाथ ना फैलाना पडे और हम देने वाले बनें.
चल रहे शिवधारा झूलेलाल चलिहा महोत्सव के 16 दिन पर बुधवार संध्याकालीन हजूरी रूप साईं साधराम जी पूज्य शिवधारा आश्रम में पधारे एवं भक्त जनों को अपना आशीर्वाद प्रदान किया.
* शुक्रवार के दिन सफेद फूल पर गुलाब इत्र लगाकर शिवलिंग पर चढ़ने से धन संबंधित तकलीफें कम होती है, यश बढ़ता है.

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