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परतवाडा में भरता है सबसे बडा बाजार
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दूर-दूर से किसान आते है बैलों की सजाने की सामग्री खरीदने
परतवाडा प्रतिनिधि/ दि.१२ – किसानों के लिए सबसे अधिक महत्व रखने वाले पोले का त्यौहार आगामी १८ अगस्त को मनाया जाएगा. इस समय वर्षभर अपनी मेहनत से मानव जाति को पेटभर भोजन उपलब्ध कराने वाले बैल की सेवा कर उसकी पूजा की जाती है. इस त्यौहार पर बैलों को सजाया जाता है. बैलों को सजाने हेतू सजावट की सामग्री का सबसे बडा बाजार परतवाडा में भरता है. इस समय बाजार विभिन्न सजावट की सामग्री से सजकर तैयार है परंतु इस बाजार पर भी कोरोना वायरस का असर हुआ है. जिसकी वजह से बाजार तो सजा है मगर खरीददार न होने के कारण बाजार में सन्नाटा छाया हुआ है. परतवाडा के आसपास मेलघाट से लेकर दूर दराज के कई गांव है. इन गांवों के किसानों के लिए सबसे बडा बाजार पेठ परतवाडा ही है.
पोले के लिए बैलों को सजाने की सामग्री खरीदने हेतू दूर दराज के ग्रामीण क्षेत्रों से किसान परतवाडा आकर १५ दिन पहले से ही सजावट की सामग्रियां खरीदने आते है. हर वर्ष की परंपरा को देखते हुए इस बार भी सजावट की सामग्री बेचने वाले व्यापारियों ने बाजार में अपनी-अपनी दुकाने सजा ली है. दुकानों में बैलों के संगो का सजाने के लिए विभिन्न प्रकार की चमकियां, मोर पंख, एक से बढकर एक सुंदर रस्सी, गले की घंटी और इस तरह की विभिन्न वस्तुएं अलग-अलग तरह की उपलब्ध कराई गई है. बाजार की दुकाने पूरी तरह से सजी है. यहां केवल इंतजार है, ग्राहकों का. मगर कोरोना वायरस की वजह से एक तरफ प्रशासन ने संचारबंदी लागू कर रखी है, दूसरी तरफ कोरोना का भय इस कदर फैला हुआ है कि कोई भी व्यक्त इस गांव से उस गांव जाना तो दूर घर से बाहर निकलने में घबरा रहा है. किसानों में यही दहशत होने के कारण उन्होंने अपने बैलों को सजाने के लिए सामग्री खरीदने हेतू बाजार में कदम तक नहीं रखा.
दूसरी तरफ कोरोना की वजह से आम जनता के साथ किसानों की भी आर्थिक स्थिति नाजूक हो चुकी है, इस वजह से भी वे रुपए खर्च करने से कतरा रहे है. पोला त्यौहार का किसानों के जीवन में एक अन्यन महत्व है. पूरे वर्षभर बैल के भरोसे खेती कर अनाज उगाया जाता है. हल जोतने से लेकर किसान अनाज की ढुलाई तक वर्षभर कडी मेहनत करता है. उसी बैल की मेहनत के भरोसे मनुष्य जाती पेटभर भोजन कर पाती है. मनुष्य जाती पर बैलों का बहोत बडा ऋण है. पोले के त्यौहार पर किसान पहले दिन बैलों की खानमानी याने बैलों के कंधो की घी और हल्दी से सिकाई करते है. उनकी अच्छे तरह से मालिश कर बैलों की सेवा की जाती है. दूसरे दिन तथा पोले के मुख्य दिन बैलों को नहला धुलाकर उन्हें सजाया जाता है. गांव के मुख्य चौराहे या बाजार में पोले का मेला लगता है. वहां पर तोरण टूटने के बाद बैलों को घर-घर ले जाकर उनकी पूजा-अर्चना की जाती है. बैलों को नाना प्रकार के पकवान खिलाए जाते है. मगर इस बार यह बर्सो पुरानी परंपरा भी कोरोना नामक ग्रहण लग गया है. सामूहिक तौर पर पोले का त्यौहार नहीं मनाया जाएगा, जिसका असर बैलों को सजाने के लिए भरे बाजार में देखने को मिल रहा है.