पूरा भारतीय वांग्मय मानव कल्याण का साहित्य – दिनेशप्रताप सिंह
महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी द्वारा राष्ट्रीय संगोष्ठी का सफल एवं उत्तम आयोजन
अमरावती/दि.19– भारतीय ज्ञान परंपरा का सम्पूर्ण वांग्मय मानव कल्याण का साहित्य है. मानवमूल्यों की स्थापना का तत्व सभी भाषाओं और बोलियों की रचनाओं में मिलता है. यह विचार महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी के सदस्य डॉ. दिनेशप्रताप सिंह ने साहित्य अकादमी और अखिल हिंदी साहित्य सभा के संयुक्त तत्वावधान में बौद्ध दर्शन का भारतीय साहित्य पर प्रभाव विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में व्यक्त किया. अमरावती के श्री शिवाजी शिक्षण महाविद्यालय में एक सौ से अधिक विद्वानों, विद्यार्थियों और साहित्य प्रेमियों को संबोधित करते हुए अपने बीज भाषण में डॉ. सिंह ने आगे कहा कि बौद्ध दर्शन मानव कल्याण का चिंतन है. यही भाव भारत की सभी भाषाओं के साहित्य में मिलता है. भक्तिकाल के संत साहित्य के मूल में यही मानव कल्याण का चिंतन है. उन्होंने महात्मा बुद्ध के चार आर्य सत्य, पंचशील सिद्धांत, आष्टांगिक मार्ग और दस पारमिताओं की व्याख्या करते हुए इसका भारतीय साहित्य पर प्रभाव को दर्शाया.
दीप प्रज्ज्वलन और महाराष्ट्र राज्य गीत के साथ शुरू हुई संगोष्ठी का उद्घाटन शिक्षण संस्था के सदस्य नरेश पाटिल ने सेमिनार हाल में किया. अध्यक्षता महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. विनय राउत ने किया. अखिल हिंदी साहित्य सभा की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती शीला डोंगरे ने प्रस्ताविक किया और संयोजक बी. जे. डोंगरे ने विद्वानों का स्वागत और साहित्य अकादमी के प्रति आभार व्यक्त किया. संचालन सुश्री मुस्कान शर्मा द्वारा किया गया.
राष्ट्रीय संगोष्ठी के चार सत्रों में केंद्रीय विषय पर आधारित सत्रह खोजपत्र प्रस्तुत किये गए. इन खोजपत्रों में संस्कृत, पाली, हिंदी, मराठी, ओडिसी, तेलुगु, तमिल, मलयालम के साहित्य में बुद्ध, धम्म और संघ के विचारों को पूरे महाराष्ट्र और अन्य राज्यों से आये मिलिंद जीवने ’शाक्य’, वामन गवई, सुनील खराटे, प्रमोद बियाला, संजय खडसे, माया गेडाम, नरगिस अली, हनुमान गुजर, स्मिता इटनारे, स्वाति बडगुजर, अनिता काले, बसंत काले, रामकृष्ण सहस्रबुद्धे, डॉ. रोशन राव इत्यादि विद्वानों ने रखा. प्रो. शाक्य ने भाषा विज्ञान और डॉ. गवली ने बौद्ध दर्शन का समाज और अर्थतंत्र को प्रभावित करने वाला दर्शन बताया. सहस्रबुद्धे ने इसे दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद से जोड़कर अपना शोधपत्र रखा. डॉ. राव ने हिंदी में हजारी प्रसाद द्विवेदी, यशपाल, महादेवी, प्रसाद के साहित्य पर बौद्ध दर्शन का प्रभाव दर्शाया. इसी तरह से अन्य विद्वानों ने कई भाषाओं पर बौद्ध दर्शन की बात की. संगोष्ठी के आयोजन में बी. जे. डोंगरे के साथ महाविद्यालय और अहिसास के पदाधिकारियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.