राष्ट्रसंत के खंजिरी भजन से राष्ट्रपिता ने छोडा था मौन
सेवाग्राम आश्रम में महात्मा गांधी के साथ रुके थे तुकडोजी महाराज
गुरुकुंज मोझरी/दि.1– राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज की प्रभावी व ओजस्वी वाणी से निकलने वाले शब्द राष्ट्रपिता महात्मा गांधी पर मानो मोहिनी डाला करते थे. जब राष्ट्रसंत प्रार्थना हेतु बैठते थे, तो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी उन्हें सुनते हुए तल्लीन हो जाया करते थे. नागपुर में जब राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज के साथ महात्मा गांधी की पहली मुलाकात हुई, तो उस समय गांधीजी ने मौनव्रत धारण कर रखा था और गांधीजी के मौनव्रत को काफी कठोर माना जाता था. उस समय राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज ने गांधीजी के समक्ष ‘किस्मत से राम मिले जिनको, उसने ये तीन जगह पायी’ भजन गाना शुुरु किया और भजन समाप्त होने पर वे रुक गए. इस समय भजन सुनते हुए महात्मा गांधी इतने तल्लीन हो गए थे कि, भजन के बोल खत्म होते ही उनके मुंह से शब्द निकल पडे कि, ‘रुको मत, और भजन कहो.’ इसके साथ ही महात्मा गांधी का मौनव्रत भी टूट गया.
उल्लेखनीय है कि, महात्मा गांधी व राष्ट्रसंत की पहली मुलाकात नागपुर में एक गलतफहमी के चलते हुई थी. उस समय महात्मा गांधी के पास कुछ लोगों ने शिकायत की थी कि, राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज बुवाबाजी व अंंधश्रद्धा फैलाते है. जिसके बाद 30 मार्च 1936 को नागपुर के धंतोरी परिसर स्थित गणपतराव टिकेकर के बंगले पर राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पहली मुलाकात हुई थी. इस समय गांधीजी ने तुकडोजी महाराज से भजन सुनाने का निवेदन किया. भजन सुनते समय और राष्ट्रसंत के चेहरे पर रहने वाले दिव्य तेज को देखते हुए महात्मा गांधी को यह विश्वास हो गया कि, इस व्यक्ति का किसी भी तरह की अंधश्रद्धा और बुवाबाजी से कोई लेना-देना नहीं. पश्चात इस पहली मुलाकात का आगे चलकर मैत्री में रुपांतरण हुआ. इसके बाद 14 जुलाई 1936 को जब महात्मा गांधी वर्धा के सेवाग्राम आश्रम पहुंचे, तो उन्होंने राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज से प्रभावित होकर उन्हें अपने पास बुलाया और उनके निवेदन को स्वीकार करते हुए राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज भी गांधीजी से मिलने सेवाग्राम आश्रम पहुंचे.
जिसके बाद महात्मा गांधी, सरहद गांधी के रुप में विख्यात खान अब्दूल गफ्फार खान और राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज करीब एक माह तक वर्धा के सेवाग्राम आश्रम स्थित आदि निवास कुटी में रहे. उस समय अपने दैनिक दिनक्रम के तहत राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज लगभग रोजाना ही भजन लिखा करते थे और वहीं भजन शाम के समय प्रार्थना भूमि पर गाया जाता था. जिन्हे सुनकर महात्मा गांधी तल्लीन हो जाया करते थे और उनका राष्ट्रसंत के प्रति स्नेह बढता चला गया. इस दौरान राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज को कई स्थानों से आमंत्रण व निमंत्रण आया करते थे. लेकिन हर बार महात्मा गांधी उनसे और कुछ दिन रुक जाने का आग्रह किया करते थे. ऐसा करते-करते एक के पीछे एक दिन बितता चला गया तथा भजनों व विचारों से यह मैत्री और अधिक दृढ होती चली गई. साथ ही देखते ही देखते राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज का वर्धा के सेवाग्राम आश्रम में करीब एक माह तक मुक्काम रहा. इस दौरान केवल भजन व कीर्तन की साधना ही नहीं हुई, बल्कि देश को आजादी दिलाने के काम को भी गति मिली. इसी एक महिने के दौरान कई महत्वपूर्ण बैठके हुई और अनेकों दिग्गजों की उपस्थिति में स्वाधिनता संग्राम के लिए रणनीति तैयार की गई.