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बाघ का शिकार कर उसके 3 पंजे व नाखून काटकर ले गये शिकारी

मेलघाट वनविभाग अंतर्गत अंजनगांव वनपरिक्षेत्र के पांढरा खडक सर्कल में मिला बाघ का सडा-गला शव

* 8 दिन पहले बाघ की मौत होने का अनुमान, मृत्यु की वजह अज्ञात
* टी-88 के तौर पर हुई बाघ की शिनाख्त, एक साल के भीतर मेलघाट में दूसरे बाघ की मौत
* पानी में विष प्रयोग कर बाघ का शिकार किये जाने की आशंका, जांच जारी
* वनविभाग की गश्त पर लगे सवालिया निशान, 8 दिन तक घटना का पता ही नहीं चला
अमरावती/दि.28 – मेलघाट प्रादेशिक वनविभाग अंतर्गत अंजनगांव वन परिक्षेत्र के पांढरा खडक सर्कुल की वस्तापुर बीट में मंगलवार की शाम एक बाघ का सडा-गला शव बरामद हुआ. जिसके 4 में से 3 पंजे गायब थे. साथ ही चौथे पंजे के नाखून भी तोडे गये थे. जिससे स्पष्ट हुआ है कि, इस बाघ का शिकार करते हुए उसके अवयवों को निकालकर तस्करी की गई है. यानि मेलघाट के जंगलों में वन्यजीवन तस्कर पूरी तरह से सक्रिय है. इस घटना का खुलासा तब हुआ, जब पूरे परिसर में बाघ के सडे-गले शव की वजह से भयानक दुर्गंध फैल गई थी. पश्चात वनविभाग द्वारा घटनास्थल का पंचनामा करते हुए बाघ का मौके पर ही पोस्टमार्टम किये जाने से स्पष्ट हुआ कि, इस बाघ की मौत संभवत: 7-8 दिन पहले ही हो चुकी है और अब करीब एक हफ्ते बाद इस घटना का खुलासा हुआ है. ऐसे मेें इस बीट अंतर्गत वनविभाग के कर्मियों द्वारा लगाये जाने वाली गश्त पर सवालियां निशान लगते नजर आ रहे है. वहीं वनविभाग द्वारा की गई पडताल के बाद मृत बाघ की शिनाख्त टी-88 के तौर पर हुई है.
बता दें कि, मंगलवार की शाम वस्तापुर बीट में कुछ वन मजदूर अपने कामकाज के निमित्त गये हुए थे. जिन्हें एक स्थान पर तीव्र दुर्गंध महसूस हुई. जिसके बारे में खोजबीन करने पर उन्हें एक बाघ मृत पडा दिखाई दिया. जिसका शव लगभग पूरी तरह से सड-गल चुका था. ऐसे में वन मजदूरों ने तुरंत इसकी जानकारी वनविभाग के वरिष्ठ अधिकारियों को दी. जानकारी मिलते ही अंजनगांव के वन परिक्षेत्र अधिकारी पी. पी. बावनेर, परतवाडा के सहायक वन संरक्षक सुहास चव्हाण, मेलघाट प्रादेशिक वनविभाग के उपवन संरक्षक अग्रीम सैनी, मेलघाट व्याघ्र प्रकल्प के पशु वैद्यकीय अधिकारी डॉ. चंद्रशेखर धंदर, पशुधन विकास अधिकारी डॉ. एस. आर. टाले (अंजनगांव सुर्जी) तथा मानद वन्यजीव रक्षक सावन देशुमख व अल्केश ठाकरे तुरंत ही मौके पर पहुंचे. इस समय तक रात और अंधेरा हो जाने के चलते अगले दिन की सुबह होने का इंतजार किया गया और बुधवार की सुबह पंचनामे की कार्रवाई पूरी करते हुए मौके पर ही उक्त मृत बाघ के शव का पोस्टमार्टम किया गया. पश्चात सभी वन अधिकारियोंव कर्मचारियों की मौजूदगी के बीच उक्त मृतक बाघ का अंतिम संस्कार भी कर दिया गया.
इस पूरी घटना को लेकर विश्वासनीय सूत्रों के जरिए मिली जानकारी के मुताबिक उक्त बाघ को मेलघाट टाइगर रिजर्व में टी-88 के नाम से दर्ज किया गया है. जिसकी मौत हुए करीब 7 से 8 दिन हो चुके है और उसका शव बफर झोन में पाया गया है. आशंका जतायी गई है कि, जंगल में स्थित किसी जलस्त्रोत में शिकारियों द्वारा जहर मिला दिया गया था और उक्त जहरीला पानी पीने की वजह से टी-88 नामक पूर्णवयस्क बाघ की मौत हुई. जिसके बाद उसके तीन पंजों सहित चौथे पंजे के नाखूनों को काटकर शिकारी अपने साथ ले गये. बता दें कि, बाघ का शिकार करने वाले शिकारियों द्वारा हमेशा ही बाघों के नाखून, दांत, मुछ और चमडे जैसे अंगों को निकालकर उनकी तस्करी की जाती है. खास बात यह भी है कि, मेलघाट प्रादेशिक वनविभाग के परतवाडा वन परिक्षेत्र अंतर्गत विगत एक साल के दौरान दो बाघों के शव बरामद हो चुके है और दोनों बाघों की मौतें संदेहास्पद बतायी गई है.

* जंगलों में बढा इंसानी दखल
इन दिनों मेलघाट प्रादेशिक वनविभाग अंतर्गत जंगल से बाहर रहने वाले लोगों की आवाजाही काफी अधिक बढ गई है. जिसके चलते कई लोग अपने पालतू मवेशियों को चराई हेतु जंगल परिसर में घूस आते है. जिसकी तरफ वन कर्मचारियों द्वारा अनदेखी की जाती है. इस बात का फायदा वन्यजीव व वनसंपदा तस्करों द्वारा जमकर उठाया जाता है. यही वजह है कि, इन दिनों मेलघाट के जंगलों में गोंद की तस्करी सहित अवैध वृक्ष कटाई जमकर बढ गई है. साथ ही साथ तस्कारों द्वारा अब बाघों को भी अपना निशाना बनाया जा रहा है.

* पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिलने का इंतजार
कल बुधवार 27 नवंबर को एनटीसीए के मार्गदर्शक निर्देशानुसान मृत पाये गये बाघ का पोस्टमार्टम किया गया है. जिसकी रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद बाघ की मौत की वजह स्पष्ट होगी. ज्ञात रहे कि, प्रादेशिक वनविभाग अंतर्गत बाघ का शव पाये जाने पर पोस्टमार्टम पश्चात उसके शरीर के कुछ हिस्सों को जांच हेतु प्रयोगशाला में भिजवाया जाता है. लेकिन प्रयोगशाला से अक्सर समय पर रिपोर्ट नहीं आती और जल्द से जल्द रिपोर्ट प्राप्त करने के लिए वन अधिकारी भी कोई विशेष प्रयास नहीं करते. ऐसे संबंधित मामलों की फाईलें विभागीय कार्यालय में ही धूल खाती पडी रहती है.

* गांव छोडकर शहर में बनाया अपना कार्यालय
दहीगांव वन परिक्षेत्र के कार्यालय हेतु अंजनगांव सुर्जी तहसील के दहीगांव में सरकारी जमीन पर सरकारी इमारत बनाई गई है, लेकिन मौजूदा वनपरिक्षेत्र अधिकारी ने इसे छोडकर अंजनगांव सुर्जी शहर में अपना कार्यालय स्थापित किया है और वे अपना कार्यक्षेत्र छोडकर परतवाडा वनपरिक्षेत्र परिसर में रहते हुए अपना कामकाज करते है. जिसके चलते दहीगांव वनपरिक्षेत्र परिसर एक तरह से भगवान भरोसे पडा हुआ है. इस बात का फायदा वन्यजीव एवं वनसंपदा तस्करों द्वारा जमकर उठाया जा रहा है.

* 8 दिन तक वनविभाग को बाघ के शिकार की हवा तक नहीं लगी
उल्लेखनीय है कि, बाघों एवं जंगलों के संरक्षण हेतु सरकार द्वारा प्रतिवर्ष करोडों रुपए खर्च किये जाते है. जिसके तहत जंगलों में गश्त लगाने हेतु कर्मचारियों की नियुक्ति करने के साथ ही उन पर नजर रखने के लिए अधिकारियों की नियुक्ति की जाती है. लेकिन इसके बावजूद बफर झोन में एक बार की शिकार होने और उसका शव जंगल में पडा रहने की बात वनविभाग के अधिकारियों व कर्मचारियों को अगले 8 दिनों तक पता ही नहीं चली. जब बाघ का शव पूरी तरह से सड-गल गया और उससे दुर्गंध उठने लगी, तब कही जाकर इस घटना का खुलासा हुआ. ऐसे में सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि, अंजनगांव वन परिक्षेत्र में वन कर्मचारियों द्वारा कितनी गंभीरता के साथ गश्त लगाई जाती होगी.
बाघों की संख्या बढाने के लिए चल रहे प्रयास
ज्ञात रहे कि, देश में बाघों की संख्या बढे, इस हेतु केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा बडे पैमाने पर अलग-अलग पद्धति से प्रयास किये जा रहे है. इसके लिए तरह-तरह के उपक्रम भी चलाये जाते है. जिन पर हजारों-करोडों रुपयों की निधि भी खर्च की जाती है. लेकिन वहीं दूसरी ओर यदि इस तरह से बाघों का शिकार किया जाता है और ऐसी घटनाओं को लेकर वनविभाग की ओर से कोई गंभीरता भी नहीं दिखाई जाती, तो फिर बाघों की संख्या बढाने हेतु किये जाने वाले प्रयासों का क्या औचित्य है, ऐसा सवाल वन्यजीव प्रेमियों द्वारा पूछा जा रहा है.

* प्राथमिक अनुमान के मुताबिक शिकार का ही मामला
विभागीय वन अधिकारी (दक्षता) किरण पाटिल के मुताबिक इस घटना में प्रथम दर्शनी तो यही महसूस हो रहा है कि, टी-88 बाघ पर विष प्रयोग करते हुए उसकी जान ली गई. ऐसे में यह शिकार का ही मामला लग रहा है. क्योंकि टी-88 बाघ के तीन पंजे गायब है और चौथे पंजे के भी दो नाखून टूटे हुए है. ऐसे में मामले की जांच हेतु एक समिति गठित की गई है. जिसके द्वारा जांच की जा रही है कि, इस बाघ के पंजों के अलावा अन्य कुछ अंगों को भी मृतक बाघ के शरीर से निकाला तो नहीं गया. साथ ही मृतक बाघ का पोस्टमार्टम करते हुए उसका विसरा जांच हेतु प्रयोग शाला में भिजवाया गया है. जहां से रिपोर्ट मिलने पर आगे की कार्रवाई की जाएगी.

* शिकारियों की वनविभाग कर चुका शिनाख्त, जल्द आएंगे पकड में
वहीं इस बीच वनविभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि, टी-88 बाघ का शिकार करने वाले शिकारी इस तरह के मामलों के लिहाज से क्षेत्र से काफी नये है और यह संभवत: उनके द्वारा इस परिसर में की गई पहली शिकार है. वनविभाग द्वारा उन शिकारियों की पहचान को सुनिश्चित कर लिया गया है और अब जल्द ही उन शिकारियों को पकड भी लिया जाएगा.

* 3 माह पहले ही वस्तापुर बीट में आया था टी-88
वनविभाग के सूत्रों द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक टी-88 की पहचान रखने वाला यह पूर्ण वयस्क बाघ इससे पहले वाण अभयारण्य में रहा करता था, जो कुछ समय पहले वाण से निकलकर अकोट वन्य क्षेत्र के बफर झोन में आया और लगभग 3 माह पहले इस बाघ ने अंजनगांव तहसील अंतर्गत वस्तापुर के वन्य परिसर में अपना अधिवास बनाया था.

* खुद शिकार होने से पहले एक बकरी का किया था शिकार
जानकारी यह भी मिली है कि, जिस स्थान पर टी-88 बाघ का शव मिला है, उसके पास ही एक बकरी के कुछ अवशेष भी पाये गये. जिससे अनुमान लगाया कि, टी-88 ने खुद शिकारियों के हाथों शिकार होने से पहले एक बकरी का शिकार किया था और उसके बाद वह खुद पर जहर का असर होने के चलते मारा गया.

* डीसीएफ अग्रीम सैनी कर रहे मामले की जांच
टी-88 बाघ का पोस्टमार्टम करे हए उसके विसरा को जांच हेतु नागपुर की प्रयोगशाला में भिजवाने के साथ मेलघाट प्रादेशिक वनविभाग के उपवन संरक्षक अग्रीम सैनी के नेतृत्व में इस मामले की जांच पडताल की जा रही है. डीसीएफ सैनी का मानना है कि, इस बाघ का शिकार करने वाले आरोपी संभवता इसी परिसर के निवासी है. यदि वे शातीर शिकारी होते, तो बाघ की खाल भी मौके पर सडने के लिए नहीं छोडते, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में बाघ की खाल को लेकर काफी उंचे दाम मिलते है और बाघ की खाल की अच्छी खासी मांग भी रहती है. जबकि इस घटना में बाघ की मौत के बाद शिकारियों द्वारा उसके पंजे व नाखून भी काटकर अपने साथ ले जाये गये.

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