* दौडभाग भरे जीवन में तेजी से जगह बना रहे तनाव व निराशा
* आज विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर विशेष
अमरावती/दि.10- इन दिनों आपाधापी एवं दौडभाग भरे जीवन में सभी लोगों को विशेषकर युवाओं को मानसिक स्वास्थ्य से अधिक कई तरह की समस्याओं का सामना करना पडता है. जिसके तहत तनाव व निराशा का बढना, लगातार मूड बदलना तथा नींद नहीं आना या बहुत अधिक नींद आने जैसी शिकायतें बडे पैमाने पर सामने आने लगी है. ऐसे में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरुक रहने वाले कई लोग इस बारे में किसी मानसोपचार विशेषज्ञ से सलाह लेते है. परंतु कई लोग खुद ही इससे कोई रास्ता निकालने का प्रयास करने लगते है. जिसके तहत लोगों द्बारा अपने ही मन से ‘फील गुड’ कराने वाली दवाओं का सेवन किया जाता है. जिसके चलते इन दिनों बाजार में ‘फील गुड’ वाली दवाईयों की मांग बढ गई है.
इस संदर्भ में मानसशास्त्र विशेषज्ञों का भी मानना है कि, विगत कुछ वर्षों के दौरान ऐसी दवाओं को लेने की मानसिकता बढ गई है. जबकि मानसिक अनारोग्य पर झटपट उपाय खोजने की बजाय पोषक आहार, पर्याप्त नींद व व्यायाम का समावेश अपनी जीवनशैली में करना जरुरी होता है. जिसके जरिए जीवन मेें सकारात्मक परिणाम दिखाई दे सकते है. वहीं मानसशास्त्र विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि, जीवन में हमेशा ही अलग-अलग तरह की समस्याएं व दिक्कतें आती ही रहती है. जिनका सामना सकारात्मक दृष्टिकोण से किया जाना चाहिए. कई लोग मानसिक स्वास्थ्य को लेकर कोई भी समस्या या दिक्कत आने पर किसी योग्य डॉक्टर से मिलकर इस बारे में सलाह व मार्गदर्शन लेते है और डॉक्टर द्बारा उन्हें कुछ समय के लिहाज से पर्ची पर दवाई लिखकर दी जाती है. डॉक्टर द्बारा दी गई चिट्ठी पर स्पष्ट उल्लेख होता है कि, संबंधित दवाई कितने दिनों तक कितने प्रमाण में लेनी है. ऐसे में दवा विक्रेताओं ने भी उतने निश्चित दिनों के लिए ही दवा देनी चाहिए और दवा विक्री के पश्चात डॉक्टर की चिट्ठी को या तो अपने पास जमा कर लेना चाहिए. या फिर उस पर काट मारते हुए मुहर लगा देनी चाहिए. परंतु अमूमन ऐसा नहीं होता. जिसके चलते एक ही पर्ची को दिखाकर लोगों द्बारा बार-बार वहीं दवा खरीदी जाती है और उसका सेवन किया जाता है. जिसका दुष्परिणाम धीरे-धीरे शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर दिखाई देने लगता है. वहीं कई लोग ऐसे भी होते है जो किसी भी तरह की मानसिक समस्या व दिक्कत होने पर किसी डॉक्टर से मिलकर सलाह लेने की बजाय गूगल अथवा यूट्यूब के जरिए जानकारी हासिल करते हुए अपने ही मन से दवाई खरीदकर उसका सेवन करते है. परंतु ऐसा करना तो और भी अधिक खतरनाक साबित हो सकता है तथा ऐसा करने के चलते उल्टे लेने के देने पड सकते है. क्योंकि कई बार ऐसी दवाईयों का इफेक्ट होने की बजाय साइड इफेक्ट भी हो सकता है. ऐसे में बेहद जरुरी है कि, किसी भी तरह की मानसिक समस्या या दिक्कत होने पर सबसे पहले किसी योग्य मानस समुपदेशक से मिलकर समुपदेशन करवाया जाए और यदि समुपदेशन से बात नहीं बनती है, तब उसके बाद समुपदेशक की सलाह से किसी मानसरोग विशेषज्ञ डॉक्टर से मिलकर उनकी सलाह के अनुरुप दवाईयां ली जाए.
* युवा करते है ‘फील गुड’ दवाईयों का सर्वाधिक सेवन
एक अध्ययन के मुताबिक 15 से 35 वर्ष आयु गुट वाले युवा अपनी पढाई-लिखाई अथवा कामकाज को लेकर कई बार निराशा एवं तनाव जैसी समस्याओं का सामना करते है. जिससे निजात पाने हेतु वे यूट्यूब व गूगल पर दवाईयों की जानकारी खंगालते है. साथ ही कई बार तो ऑनलाइन मंगवा भी लेते है. वहीं यदि ऐसी दवाईयों को ऑनलाइन मंगवाने का पर्याय उपलब्ध नहीं होता, तो वे स्थानीय स्तर पर अतिरिक्त रकम अदा करते हुए ऐसी दवाईयां खरीदने की तैयारी में भी रहते है. इनमें से कई युवाओं ने समुपदेशन करवाने को लेकर अपनी सहमति दर्शायी. परंतु यह भी स्वीकार किया कि, समूपदेशन से मानसिक राहत मिलने में थोडा वक्त लगता है, ऐसे में त्वरित उपाय के तौर पर वे ‘फील गुड’ कराने वाली दवाईयों का प्रयोग करते है.
* मोबाइल की वजह से भी बढ रही मानसिक समस्याएं
– बच्चे आ रहे बडे पैमाने पर मोबाइल फोबिया के दायरे में
वहीं इन दिनों मोबाइल भी मानसिक समस्याओं की सबसे बडी वजह बनता जा रहा है. विशेष तौर पर किशोरवयीन लडके व लडकियां मोबाइल की लत का बडे पैमाने पर शिकार होते जा रहे है. साथ ही साथ कई अभिभावक अपने छोटे बच्चे को भी उनका मन बहलाने के लिए मोबाइल पकडा देते है. जिसके दुष्परिणाम आगे चलकर सामने आते है. पूरा समय मोबाइल पर चिपके रहने की वजह से जहां एक ओर छोटे बच्चे के हाथ व कलाई के जोडों, गर्दन की हड्डी और आंखों को लेकर शारीरिक दिक्कतें पैदा होनी शुरु होती है. वहीं दूसरी ओर पूरा समय मोबाइल में मगन रहने तथा इस दौरान किसी से बात नहीं करने की आदत हो जाने के चलते बच्चों की भाषा विकसित नहीं हो पाती और वे काफी हद तक जिद्दी भी हो जाते है. ऐसे में जहां तक संभव हो, 16 से 18 वर्ष की आयु तक बच्चों को मोबाइल से दूर ही रखा जाना चाहिए.
* क्यों मनाया जाता है विश्व स्वास्थ्य दिवस?
मानसिक स्वास्थ्य को लेकर व्यापक स्तर पर जनजागृति करने हेतु प्रतिवर्ष 10 अक्तूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है. वर्ष 1992 में विश्व मानसिक स्वास्थ्य संगठन की पहल पर पहली बार यह दिन मनाया गया था और आज दुनिया के 150 से अधिक देशों में मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है. वहीं ऑस्टेलिया में मानसिक स्वास्थ्य सप्ताह मनाने की परंपरा है.
* योग्य व संतुलित जीवनशैली जरुरी
जिस तरह से हम अपने शारीरिक स्वास्थ्य व सौंदर्य को लेकर काफी हद तक जागरुक व सतर्क रहते हैं. उसी तरह प्रत्येक व्यक्ति ने अपने मानसिक स्वास्थ्य और मनोभावों को लेकर भी जागरुक रहना चाहिए. साथ ही यदि मानसिक स्वास्थ्य अथवा मनोभावों को लेकर किसी भी तरह की कोई दिक्कत या समस्या है, तो तुरंत किसी योग्य मानस समुपदेशक अथवा मानसोपचार विशेषज्ञ से संपर्क करते हुए मार्गदर्शन व सलाह लेनी चाहिए. आधे से अधिक मानसिक समस्याओं का समाधान समुपदेशन से ही होना संभव होता है. वहीं बेहद जरुरी होने पर ड्रग थेरेपी का सहारा भी लिया जा सकता है. परंतु अपने ही मन से मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित किसी भी तरह की दवाई अथवा गोली का सेवन करना किसी भी लिहाज से ठीक नहीं है. प्रत्येक व्यक्ति ने यह समझना चाहिए कि, कोई भी बाहरी वस्तु आप को भीतरी खुशी अथवा प्रसन्नता नहीं दे सकती. अत: प्रत्येक व्यक्ति ने अपनी खुशियों व आनंद के लिए अपने अंतस की खोज करनी चाहिए.
– अमिता दुबे,
क्लिनिकल साइकॉलॉजीस्ट,
संचालिका, अस्तित्व परामर्श केंद्र
* अपने मन से कोई भी दवाई लेना बेहद खतरनाक
इन दिनों लोगबाग किसी भी तरह की शारीरिक अथवा मानसिक समस्या या दिक्कत होने पर अपने ही मन से आधी-अधूरी जानकारी के आधार पर कोई दवाई खरीद लेते है और मनमाने ढंग से उस दवाई का डोज लेते है. इसे काफी हद तक खतरनाक कहा जा सकता है. विशेष तौर पर मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित मामलों में ऐसा करना तो बेहद घातक साबित हो सकता है. ऐसे में लोगों को चाहिए कि, यदि उन्हें किसी भी तरह की कोई मानसिक समस्या या दिक्कत है, तो वे उसके बारे में किसी योग्य मानस विशेषज्ञ से मिलकर बात करें और उनकी सलाह के अनुरुप जरुरत होने पर दवाईयां ले. वहीं इन दिनों जिस तरह से जीवन में आपाधापी बढ गई है, उसे देखते हुए उसकी वजह से मानसिक समस्याएं भी निश्चित तौर पर बढी है. जिसे लेकर समय रहते जागरुक व सतर्क रहना बेहद जरुरी है.
– डॉ. विद्युत खांदेवाले,
मनोरोग विशेषज्ञ