आतंकवादियों द्वारा शहीदों का अपमान किया जाना अत्यंत चिंताजनक – निर्मल रानी
अमरावती/प्रतिनिधि दि.१ – विवादित, अनैतिक, अमर्यादित तथा असंवैधानिक बयान देना इन दिनों एक फैशन सा बन चुका है. खास तौर पर ऐसे लोगों ने जिन्होने लोकसेवा क्षेत्र में ऐसा कोई उल्लेखनीय कार्य न किया हो जिसकी वजह से उन्हें शोहरत मिल सके, इस श्रेणी के लोग समय समय पर कुछ कुछ ऐसे बयान देते रहते है जो विवादित व अमर्यादित होने के बावजूद टी आर पी परस्त मीडिया में छा जाते है और बैठे बिठाए ऐसे नेताओं को सफल होने का अवसर मिल जाता है और जब ऐसा व्यक्ति सत्ता से सांसद/ विधायक के रूप में न केवल सत्ता के शीर्ष से जुडा हो बल्कि उसकी संकीर्ण वैचारिक सोच का भी वाहक हो फिर तो वह राष्ट्रपति महात्मा गांधी को अपमानित करे, चाहे गांधी के हत्यारे को नाथूराम गोडसे को महिमा मंडन करे या पाकिस्तान प्रेषित आतंकवादियों की गोली से शहीद होनेवाले किसी अशोक चक्र से सम्मानित होनेवाले शहीद को अपमानित करे या लोकतांत्रिक तरीके से चुनी जानेवाली सरकार व उस राज्य के मतदाताओं का अपमान करे.
भोपाल से सांसद प्रज्ञा ठाकुर ऐसे ही कई सांसदों में एक है. जो प्राय : अपने विवादित बयानों की वजह से सुर्खिया बटोरती रही है. सांसद चुने जाने से पहले भी वे दंगे फसाद भडकानेवाले अनेक भाषण दे चुकी है. उनकी प्रसिध्दि का कारण यह था कि वे मालेगांव बम ब्लास्ट की मुख्य आरोपी थी और लंबे समय तक जेल में भी रही. उन्हें अनेक सबूतों के आधार पर गिरफ्तार किया गया था. शायद इसी विशेषता के चलते भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें भोपाल से लोकसभा का प्रत्याशी बनाया था.
पिछले दिनों बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस की सरकार क्या बन गई कि प्रज्ञा ने ममता की तुलना ताडका से कर डाली और भी अनेक असंसदीय व अमर्यादित शब्दों का प्रयोग उन्होंने ममता बनर्जी व बंगाल के मतदाताओं के प्रति किया. प्रज्ञा ठाकुर द्वारा बार बार इस तरह की घटिया भाषा बोलना और प्रधानमंत्री द्वारा उनके प्रति रोषपूर्ण वक्तव्य देना, परंतु इन सब बातों की परवाह किए बिना बार बार इसी तरह की भाषा का इस्तेमाल करते रहना, इससे तो ऐसा ही प्रतीत होता है कि उन्हें उच्चस्तरीय वैचारिक संरक्षण हासिल है अन्यथा हेमंत जैसे महान शहीद की शहादत का अपमान करने का साहस देश के किसी नेता में नहीं है. करकरे की शहादत्त पर प्रज्ञा ठाकुर के आपत्तिजनक बयान और उस पर भाजपा नेताओं की खामोाशी और ऐसे लोगों के विरूध्द कोई कार्रवाई न करने से यह सवाल जरूर उठता है कि कहीं ऐसे बयानों के लिए पार्टी की ही मूक सहमति तो नहीं?