विद्यापीठ के विद्वत परिषद के गठन का मुद्दा अटक न्यायालयीन लडाई में
अति महत्व के विषय के लिए ‘12-7’ आपातकालिन अधिकार का इस्तेमाल
अमरावती/दि.16– संत गाडगेबाबा अमरावती विद्यापीठ के विद्वत परिषद का गठन न्यायालयीन लडाई में अटकने से परिषद का कामकाज पिछले 6 माह से ठप है. इस कारण अधिसभा और व्यवस्थापन परिषद द्वारा पारित किए गए अनेक विषयों की आगामी कार्रवाई भी ठप हो गई है. अति महत्व के विषयों के लिए कुलगुरु ‘12-7’ यह आपातकालिन अधिकार का इस्तेमाल कर रहे है.
सिनेट और व्यवस्थापन परिषद की बैठक में पारित किए गए कुछ विषयों पर विद्वत परिषद को अंतिम निर्णय देना रहता है. बीच की अवधि में व्यवस्थापन परिषद की आधा डजन से अधिक और सिनेट की तीन सभा हुई. इस सभा में कुछ निर्णय पारित कर वह विद्वत परिषद के पास भेजे भी गए. लेकिन विद्वत परिषद की बैठक ही न होने से इस बाबत का अंतिम निर्णय अभी अटका हुआ है. इस संदर्भ में न्यायालय में तारीख पर तारीख चल रही है. विद्वत परिषद के वनस्पति शास्त्र अभ्यास मंडल के अध्यक्ष पद का विवाद न्यायालय में पहुंचने से यह नौबत आ गई है. इस मंडल के अध्यक्ष पद पर प्रा. प्रशांत गावंडे की नियुक्ति हुई थी. नियुक्ति के बाद उन्होंने इस अभ्यास मंडल की दो बैठक भी आयोजित की. लेकिन बाद में पराजित उम्मीदवार प्रा. दिनेश खेडकर ने कुलगुरु के पास शिकायत दर्ज कर चुनाव बैठक के कामकाज पर आपत्ति ली. इस आपत्ति को मंजूर कर कुलगुरु डॉ. प्रमोद येवले ने इस बैठक का निर्णय बदलकर प्रा. खेडकर अध्यक्ष रहने की बात घोषित की. इस निर्णय को प्रा. गावंडे ने मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ में चुनौति दी है. लेकिन अब तक इस प्रकरण का फैसला नहीं हुआ है. इस कारण अथक प्रयास से गठित हुई विद्वत परिषद के गठन का मुद्दा न्यायालयीन लडाई में अटका हुआ है. इस मुद्दे को हल करने के लिए प्रा. गावंडे और प्रा. खेडकर प्रकरण का फैसला जल्द होना आवश्यक है. जो विषय काफी महत्व के है इसके लिए डॉ. मिलिंद बारहाते यह संविधान ने उन्हें बहाल किए ‘12-7’ के अध्यादेश का इस्तेमाल कर आगे जा रहे है. लेकिन उन्होंने ऐसे अधिकारों का इस्तेमाल और कितने समय तक करना, ऐसा प्रश्न अन्य प्राधिकारिणी के सदस्यों ने उपस्थित किया है. गत 31 दिसंबर को कुलगुरु डॉ. प्रमोद येवले सेवानिवृत्त हो गए. लेकिन उनके हस्ताक्षर से हुए एक निर्णय के कारण रुका हुआ विद्वत परिषद का कामकाज अभी भी ठप है.
* बृहत प्रारुप 12-7 में
नए राष्ट्रीय शैक्षणिक नीति की पृष्ठभूमि पर विद्यापीठ को अभ्यासक्रम संबंध में बृहत प्रारुप पारित करना था. विद्वत परिषद का गठन अधूरा रहने से बैठक लेना भी संभव नहीं था. आखिरकार 12-7 का आधार लेकर कुलगुरु ने यह विषय निपटाया.
* परिषद गठन का मुद्दा अभी भी अधर में
विद्वत परिषद के गठन पर से उच्च न्यायालय में पहुंचा प्रकरण अभी भी न्यायप्रविष्ठ है. इस कारण विद्वत परिषद की बैठक नहीं हो सकती, ऐसी स्थिति में विद्यापीठ को ‘12-7’ में अति महत्व के निर्णय लेने पड रहे है.
– डॉ. तुषार देशमुख, कुलसचिव, अमरावती विद्यापीठ.