विदर्भ के प्रादेशिक असंतुलन का मुद्दा फिर चर्चा में
पूर्व विदर्भ की तुलना में पश्चिम विदर्भ में उद्योग काफी कम
* सिंचन अनुशेष के लिए अभी भी करना पड रहा इंतजार
अमरावती/दि.8– महावितरण कंपनी ने पूर्व विदर्भ के पांच जिलों में किसानों के जिए 12 घंटे बिजली आपूर्ति करने का निर्णय लिया हैं. लेकिन पश्चिम विदर्भ के सिंचन, पानी की उपलब्धता, प्रति व्यक्ति आय, सडक, उद्योग, शिक्षा संस्था, प्रति व्यक्ति बिजली का इस्तेमाल आदि सभी बातों में पश्चिम विदर्भ यह पूर्व विदर्भ की तुलना में पिछडता जाने की भावना निर्माण होने लगी हैं.
एक तरफ पूर्व विदर्भ के पांच जिलों में 12 घंटे बिजली आपूर्ति की जाती रहते पश्चिम विदर्भ के अमरावती, अकोला, बुलढाणा, वाशिम और यवतमाल व नागपुर विभाग के वर्धा ऐसे छह जिलोें को चार दिन रात और दिन में तीन दिन बिजली आपूर्ति की जा रही हैं. इस कारण किसानों के बुरे हाल हैं. विदर्भ के दो विभागों के लिए महावितरण का अलग-अलग मापदंड यह पूर्व और पश्चिम विदर्भ का भेदभाव करने वाला रहने की भावना पश्चिम विदर्भ के किसानों में निर्माण हुई हैं. पश्चिम विदर्भ के सिंचन का मुद्दा लगातार चर्चा मेें हैं. भाजपा-शिवसेना गठबंधन सरकार 1995 से 1999 और वर्ष 2014 से 2019 ऐसे 10 साल सत्ता में थी. भाजपा सरकार के कार्यकाल में पूर्व विदर्भ को झुकता माप देने की बात कही गई और पूर्व व पश्चिम विदर्भ के विकास का असमतोल पिछले कुछ वर्षो में विशेष रुप से दिखाई दे रहा हैं. शेष महाराष्ट्र की तुलना में विदर्भ के सर्वाधिक अनुशेष सिंचन और सडकों के संदर्भ में था. अब पूर्व विदर्भ की तुलना में पश्चिम विदर्भ की तरफ अनदेखी होती दिखाई दे रही हैं. पूर्व विदर्भ में 24 हजार दलघमी पानी उपलब्ध हैं वहीं पश्चिम विदर्भ में केवल 9800 दलघमी पानी उपलब्ध हैं. पूर्व विदर्भ में पश्चिम विदर्भ की तुलना में ढाई गुना पानी उपलब्ध रहते खेती के लिए उचित जमीन पश्चिम विदर्भ में अधिक हैं. उत्पादन के लिए उचित जमीन अधिक लेकिन पानी की उपलब्धता कम ऐसी विषम परिस्थिति हैं.
पश्चिम विदर्भ की 1994 की स्थिति के आधार पर निकाला गया सिंचन का अनुशेष अभी भी दूर नहीं हो पाया हैं. 1 लाख 79 हजार हेक्टेयर क्षेत्र का शेष अनुशेष निकालने के लिए और भी काफी समय इंतजार करना पड सकता हैं. पश्चिम विदर्भ के कृषि पंप का अनुशेष भी करीबन 2 लाख 54 हजार हैं. उसे दूर करने के लिए 3 हजार करोड रुपए की आवश्यकता लगने वाली हैं. पिछले 6 वर्षो में मध्यम लघु और छोटे यानि एमएसएमई उद्योग में हुए महाराष्ट्र के कुल निवेश में से केवल 3 प्रतिशत निवेश अमरावती विभाग के पांच जिलों में हुआ हैं. निवेश के बाबत यह विभाग राज्य में काफी निचे हैं. ग्रामीण इलाकों में औद्योगिक निवेश का और खेती के अलावा अन्य रोजगार का अभाव यह विदर्भ के पिछडेपन का महत्वपूर्ण कारण रहने की बात सामने आई हैं. एमएसएमई उद्योग का क्षेत्र रोजगार निर्मिती का आधार माना जाता हैं. इस पृष्ठभूमि पर निवेश का चित्र पहले से ही पिछडे रहे इस इलाके पर अन्याय करने वाला हैं. पश्चिम विदर्भ के अनुशेष का एक नया प्रकार इससे तैयार हुआ हैं.
* बडे प्रकल्प नहीं
कम मूल्य में भूखंड, कामगार, उद्योग निर्माण करने के लिए आवश्यक सभी घटक उपलब्ध रहते हुए भी अमरावती विभाग में उद्योग उस तुलना में हो नहीं पाए हैं. एमआईडीसी की अवस्था 50 वर्ष पूर्व जैसी ही हैं. राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में बडे और मध्यम औद्योगिक प्रकल्प अमरावती विभाग में ना आने की वास्तविकता हैं. अमरावती के वस्त्राद्योग उद्यान में कुछ उद्योग जरुर शुरु हुए लेकिन औद्योगिक क्षेत्र के सबसे पिछडे विभाग के रुप में अमरावती विभाग का नाम औद्योगिक नक्शे पर कायम हैं. अमरावती विभाग में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उपक्रमों की संख्या 14 हजार 510 हैं. राज्य के उद्योगों की तुलना में यह प्रमाण केवल 5.9 प्रतिशत हैं. बेरोजगारी की समस्या अमरावती विभाग में सबसे बडी हैं. इस विभाग के उद्योगों से रोजगार का अधिक अवसर उपलब्ध नहीं हैं. सभी तरह के उद्योगोें से केवल 1.14 लाख लोगों को यानि केवल 3.9 प्रतिशत रोजगार मिल रहा हैं. सिंचन, पानी की उपलब्धता, प्रति व्यक्ति आय, सडक, उद्योग, शैक्षणिक संस्था, प्रति व्यक्ति बिजली का इस्तेमाल इन सभी बातों में पश्चिम विदर्भ यह पूर्व विदर्भ की तुलना में काफी पिछडा हैं. अनुकूल परिस्थिति के कारण पूर्व विदर्भ के जिले तेज गति से