‘उन’ दोनों बच्चियों के शवों पर हुआ अंतिम संस्कार
विरुल रोंघे गांव में अब भी शोक व संताप की लहर
* दो दिन से गांव के किसी भी घर में नहीं जला चूल्हा
अमरावती/धामणगांव रेल्वे/दि.6- गत रोज धामणगांव रेल्वे तहसील अंतर्गत विरुल रोंघे गांव में विषबाधा व अतिसार जैसे लक्षणों से पीडित रहने के चलते दो सगी चचेरी बहनों की मौत हो जाने तथा उन्हीं के दो भाई-बहनों के गंभीर स्थिति में पहुंच जाने का मामला सामने आया था. जिससे विरुल रोंघे गांव व धामणगांव रेल्वे तहसील सहित पूरे जिले में अच्छा खासा हडकंप मच गया था. पश्चात कल दोपहर तक दोनों बच्चियों के शवों का पोस्टामार्टम करने के उपरान्त दोनों शव उनके परिजनों के हवाले कर दिये गये. जिसके बाद दोनों बच्चियों के शवों का अंतिम संस्कार किया गया. इस घटना के चलते विरुल रोंघे गांव में जबर्दस्त शोक की लहर व्याप्त है. जिसकी वजह से विगत दो दिनों से विरुल रोंघे गांव के किसी भी घर में चूल्हा तक नहीं जला.
बता दें कि, चांदूर रेल्वे थाना क्षेत्र अंतर्गत आने वाले विरुल रोंघे गांव में बस स्टैंड के पास रहने वाले साव परिवार के सभी सदस्यों ने विगत गुुरुवार की रात हमेशा की तरह भोजन किया. जिसके बाद नंदीनी प्रवीण साव (10) व चैताली राजेंद्र साव (11) को देर रात अचानक ही पेटदर्द होने लगा. जिसके चलते नंदीनी को रात में ही धामणगांव रेल्वे के डॉ. गुल्हाने के निजी अस्पताल में इलाज हेतु ले जाया गया और दवाखाने से प्राथमिक इलाज करने के बाद घर वापिस ला लिया गया. इस समय तक चैताली की हालत बिगडनी शुरु हो गई थी. जिसे तडके 4 बजे के आसपास धामणगांव रेल्वे स्थित डॉ. अप्तूरकर के दवाखाने ले जाया गया. लेकिन इलाज जारी रहने के दौरान ही चैताली की मौत हो गई. उधर रात में इलाज कर घर ले जायी गई नंदीनी की सुबह तक एक बार फिर हालत बिगडनी शुरु हो गई. जिसे सुबह दुबारा अस्पताल ले जाया गया. लेकिन उसने भी रास्ते में ही दम तोड दिया. इसी दौरान साव परिवार में दिव्यांशू राजेंद्र साव (3) तथा भावना प्रवीण साव (6) नामक दो बच्चों को भी पेटदर्द की शिकायत होने लगी. जिसके चलते इन दोनों बच्चों को भी डॉ. अप्तूरकर के अस्पताल में इलाज हेतु भर्ती कराया गया था. जिन्हें इलाज के बाद स्थिति सामान्य हो जाने के चलते गत रोज ही डिस्चार्ज दे दिया गया था.
इस घटना के सामने आते ही कल पूरा दिन धामणगांव रेल्वे तहसील क्षेत्र में अच्छा खासा हडकंप मचा रहा. वहीं पुलिस ने मामले की जानकारी मिलते ही अप्तूरकर अस्पताल पहुंचकर दोनों शवों को अपने कब्जे में लिया तथा दोनों शवों को पोस्टमार्टम की प्रक्रिया हेतु चांदूर रेल्वे के सरकारी अस्पताल में लाया गया. जहां पर पोस्टमार्टम की प्रक्रिया पूरी होने के बाद दोनों शवों को बच्चियों के परिजनों के हवाले कर दिया गया. जिसके उपरान्त विरुल रोंघे गांव में सैकडों लोगों की उपस्थिति के बीच दोनों बच्चियों के शवों पर अंतिम संस्कार किये गये.
* मौत की वजह विषबाधा या अतिसार?
यहां यह विशेष उल्लेखनीय है कि, विरुल रोंघे गांव में रहने वाले एक ही परिवार के चारों बच्चों को भोजन के जरिए विषबाधा हुई थी, या फिर दूषित पानी पीने की वजह से वे अतिसार के शिकार हुए थे. इसे लेकर कई तरह की चर्चाएं चल रही है. इस संदर्भ में जारी चर्चाओं के मुताबिक साव परिवार के घर में जाने वाली जलापूर्ति योजना के पाइप लाइन में लिकेज है तथा लिकेज के पास ही गंदे जल की निकासी का गड्ढा बना हुआ है. ऐसे में बहुत हद तक संभव है कि, साव परिवार के घर में इस पाइप लाइन के जरिए गंदे जल की आपूर्ति हुई. जिसे पीने की वजह से परिवार के 4 बच्चे अतिसार का शिकार हो गये और अतिसार के तीव्र लक्षण रहने के चलते दो बच्चियों की मौत हो गई.
* पहले अस्पताल में हुए प्राथमिक इलाज पर भी उठ रहे सवाल
जानकारी के मुताबिक गुरुवार की रात तबीयत बिगडते ही नंदीनी साव को परिजनों ने तुरंत धामणगांव रेल्वे ले जाकर डॉ. गुल्हाने को दिखाया था और डॉ. गुल्हाने द्वारा किये गये प्रथमोपचार के बाद नंदीनी को घर पर वापिस लाया गया था. जिस की सुबह तक एक बार फिर हालत बिगड गई और दोबारा अस्पताल ले जाये जाते समय उसने रास्ते में दम तोड दिया. वहीं इसी दौरान चैताली साव की हालत बिगडनी शुरु हुई थी. जिसे तडके 4 बजे के आसपास अस्पताल में भर्ती कराने हेतु धामणगांव में ले जाया गया, लेकिन उसने अस्पताल पहुंचने से पहले ही दम तोड दिया. इसके बाद परिवार के दो अन्य बच्चों की हालत बिगडने पर उन्हें धामणगांव रेल्वे स्थित डॉ. अप्तूरकर के दवाखाने ले जाया गया. ऐसे में कई गांववासी नंदीनी पर डॉ. गुल्हाने द्वारा किये गये प्रथमोपचार को लेकर भी सवाल उठा रहे है. गांववासियों का कहना है कि, यदि समय रहते नंदीनी में दिखाई दे रहे विषबाधा व अतिसार के लक्षणों को पकड लिया जाता और उसे अस्पताल में ही भर्ती करते हुए उसका इलाज किया जाता, तो शायद उसकी जान बच सकती थी. साथ ही उसमें दिखाई दे रहे लक्षणों को देखते हुए चैताली को भी तुरंत ही अस्पताल में भर्ती कराना संभव हो पाता, तो शायद उसे भी बचा लिया जाता. वहीं दूसरी ओर डॉ. अप्तूरकर के अस्पताल में भर्ती कराये गये दोनों बच्चों की जान बच गई है और उन्हें गत रोज ही अस्पताल से डिस्चार्ज करते हुए उनके घर भेज दिया गया है.