अमरावती/दि.25 – साहित्य हजारों सालों तक मरता नहीं और न ही उसे मरने दिया जाता है. एक समय ऐसा था जब कागज का अविष्कार नहीं हुआ था तब साहित्यकार पत्थरों पर लिखकर अपनी भावनाएं व्यक्त करते थे. सम्राट अशोक के काल में अनेको शिलालेख लिखे गए है. उस काल में लिखे गए शिलालेख की वजह से हमें तत्कालीन सांस्कृतिक इतिहास की जानकारी प्राप्त हुई है. साहित्य में संस्कृति के प्राण बसते है ऐसा प्रतिपादन जेष्ठ आंबेडकरी विचारक डॉ. वसंत शेंडे ने व्यक्त किया.
डॉ. वसंत शेंडे ‘आशय’ संस्था व्दारा आयोजित अखिल भारतीय आंबेडकरी साहित्य व संस्कृति महामंडल के तीसरे आंबेडकरी संवाद सम्मेलन में बतौर अध्यक्ष के रुप में बोल रहे थे. इस अवसर पर डॉ. वामन गवई, डॉ. मनोहर नाईक, डॉ. चंद्रकांत सरदार, एड. अभय लोखंडे ने भी अपने विचार व्यक्त किए कार्यक्रम का संचालन संघपाल सरदार ने किया तथा आभार धर्मशील गेडाम ने माना. इस समय डॉ. सीमा मोरे, प्रशांत वंजारे, संजय मोखडे, कुंदा सोनुले, अन्ना वैद्य, विक्रांत मेश्राम आदि उपस्थित थे.