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भाजपाइयों के नाराजगी प्रदर्शन से ही मुरझाया कमल

अमरावती लोकसभा चुनाव नतीजे का विश्लेषण

अमरावती/दि. 4 – लोकसभा चुनाव की प्रतिष्ठापूर्ण लडाई में भाजपा द्वारा आरंभ में ही नवनीत राणा की उम्मीदवारी का विरोध प्रदर्शन कदाचित राणा को भारी पडा. इस तरह का निचोड राजनीतिक जानकार व्यक्त कर रहे हैं. उनका चुनाव नतीजे पर तात्कालिक विश्लेषण भी कह रहा है कि, बाद में भाजपा द्वारा की गई डैमेज कंट्रोल की कोशिशो में न केवल विलंब हो गया बल्कि कई क्षेत्र में अंतिम क्षणों तक तालमेल भी न रहा. भाजपा अमरावती में पहले शिक्षक और फिर स्नातक विधान परिषद सीट के बाद अब लोकसभा में भी पराजित हो गई है.
अमरावती की लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के व्यक्ति हेतु आरक्षित है. ऐसे में निवर्तमान सांसद नवनीत राणा के यहां से तीसरी बार चुनाव लडने की पूरी संभावना थी. उन्होेंने गत चार वर्षो से केंद्र की भाजपा नीत सरकार का समर्थन किया. अमरावती में विकास योजनाएं लाने का प्रयत्न किया. जिससे उनके भाजपा के टिकट पर इस बार चुनाव लडने की संभावना व्यक्त की जा रही थी. भाजपा ने भी उम्मीदवारी देने की तैयारी दर्शायी थी.
अमरावती के भाजपा पदाधिकारियों ने राणा की उम्मीदवारी का विरोध किया था. जिसके पीछे हाईकोर्ट में राणा का जाति प्रमाणपत्र रद्द होने का कारण बताया जा रहा था. राणा का सुप्रीम कोर्ट में इस विषय को लेकर निर्णय प्रलंबित था. राणा के पक्ष में एन नामांकन के समय सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आया. जिसके बाद भाजपा ने उन्हें उम्मीदवार घोषित किया. उपरांत उन्होंने रातोरात नागपुर जाकर भाजपा में प्रवेश किया.
नवनीत राणा की उम्मीदवारी का भाजपा के एक खेमे से खासा और कडा विरोध हो रहा था. उन्होंने पोस्टर और मीडिया के अन्य साधनों से अपने विरोध को व्यक्त भी किया. तथापि पार्टी के शहर और जिलाध्यक्ष दोनों ही डॉ. अनिल बोंडे एवं प्रवीण पोटे पाटिल ने राणा के फेवर में खूब मेहनत की. जिसके कारण पार्टी के अधिकांश पदाधिकारी जी जान से जुट गए थे. उसी प्रकार राणा के लिए गृह मंत्री अमित शाह भी अमरावती आए थे. प्रचार के अंतिम दिन सायंसकोर पर उन्होंने जंगी सभा ली थी. मगर सियासत के जानकार मानते हैं कि, आरंभिक विरोध के स्वर नवनीत राणा के लिए भारी पड गए. बाद में किया गया डैमेज कंट्रोल काम नहीं आया.

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