अकोला/दि.2 – छोटे बच्चों को भगा ले जाने तथा नाबालिग बच्चों पर अत्याचार करने के मामले में अकोली के अतिरिक्त जिला व अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश एस. जे. शर्मा की अदालत ने वर्धा जिले के लादगढ निवासी कुख्यात अपराधी सुधाकर उर्फ शंकर उर्फ चंद्र्या जंगलजी उईके (38) को 20 साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई है. विशेष उल्लेखनीय है कि, सुधाकर उईके को इससे पहले भी वर्धा की अदालत ने बच्चे भगा ले जाने के आरोप में ढाई साल के कारावास की सजा सुनाई थी.
पता चला है कि, सुधाकर उइके मूलत: वर्धा जिले का निवासी है. लेकिन शेगांव में कचरा बिनने और भिख मांगने का काम किया करता था. कोविड व लॉकडाउन काल के दौरान 22 अगस्त 2020 को सुधाकर उइके 15 वर्षीय नाबालिग बच्ची के साथ अकोला रेल्वे स्टेशन के प्लेटफार्म क्रमांक-6 पर संदेहास्पद स्थिति में चाइल्ड लाइन के सदस्यों द्वारा पकडा गया था. जिसकी जानकारी रेल्वे पुलिस को देने के साथ ही आरोपी को कब्जे में लेकर उक्त नाबालिग बच्ची को बाल कल्याण समिति के समक्ष पेश किया गया था, जो वैद्यकीय जांच के बाद गर्भवती पायी गई थी. ऐसे में सुधाकर उईके के खिलाफ अपराधिक मामला दर्ज किया गया था. परंतु लॉकडाउन की वजह से वैद्यकीय सहित अन्य रिपोर्ट मिलने में देरी होने का फायदा उठाकर सुधाकर उईके फरार हो गया था. जिसे पुलिस ने दुबारा वर्धा से गिरफ्तार किया और उसके खिलाफ अदालत में चार्जशीट पेश की गई. परंतु मामले की सुनवाई के दौरान कई बार प्रयास करने के बावजूद पीडिता का कही कोई पता नहीं चला. ऐसे में पीडिता की गवाही के बिना अन्य सबूतों के आधार पर आरोपियों को दोषी ठहराया गया और उसे भादंवि एवं पोक्सों एक्ट की धाराओं के तहत 20 वर्ष के कारावास और 30 हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनवाई गई. जुर्माने की रकम पीडिता के बच्चे को देने और उसके वयस्क होने तक उसके नाम पर राष्ट्रीयकृत बैंक में रखने का आदेश अदालत द्वारा दिया गया है.
इस मामले में डीएनए रिपोर्ट सबसे महत्वपूर्ण साबित हुई. 15 वर्षीय पीडिता ने गोंदिया जिले में रहने वाले अपने बहन व जिजा के घर जाकर एक बच्चे को जन्म दिया तथा अपने रिश्तेदारों की मदद से अपना बच्चा किसी को गोद देने का भी प्रयास किया. पश्चात पुलिस ने पीडिता व बच्चे को खोजकर वैद्यकीय जांच हेतु अकोला लाया. जहां पर डीएनए जांच के लिए रक्त के सौंपल लिए गए और बच्चे को शिशुगृह में रखा गया. पश्चात अमरावती स्थित फॉरेसिंग लैब से मिली रिपोर्ट के जरिए यह साबित हुआ कि, आरोपी सुधाकर उइके व उक्त 15 वर्षीय पीडिता ही उस नवजात बच्चे के जैविक माता-पिता है. जिसके आधार पर अदालत ने सुधाकर उइके को नाबालिग बच्ची के साथ दुराचार का दोषी ठहराया.